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इतिहास के पन्नों से

कम्युनिस्ट ना तो देश के कभी हुए हैं और ना हो सकेंगे

कम्युनिस्ट न देश के थे, न होंगे मार्क्सवाद के प्रणेता कार्ल माक्र्स की समग्र रचनाओं में “राष्ट्र” नामक इकाई के लिए कोई स्थान नहीं है। मार्क्सवादी तो केवल सर्वहारा को जानता है, जिसे मार्क्स ने “प्रोलेतेरियत” कहकर पुकारा है और जो उसके अनुसार भौतिक द्वंद्ववाद के आधार पर हो रहे ऐतिहासिक विकास-क्रम में पूंजीवाद की […]

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इतिहास के पन्नों से

देश के महान शासक छत्रपति शिवाजी महाराज को ऐसे मिली थी छत्रपति की उपाधि

अनन्या मिश्रा छत्रपति शिवाजी महाराज की 3 अप्रैल को मौत हो गई थी। वह अपनी बहादुरी, रणनीति और प्रशासनिक कौशल के लिए प्रसिद्ध थे। शिवाजी ने अपना पूरा जीवन स्वराज्य और मराठा विरासत पर ध्यान केंद्रित किया था। शिवाजी अपनी गुरिल्ला युद्ध कला से दुश्मनों को धूल चटाते थे। एक वीर योद्धा, सैन्य रणनीतिकार, एक […]

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इतिहास के पन्नों से कविता

बलिदानी रामप्रसाद बिस्मिल के अंतिम हृदय उद्गार*_______

हाय! जननी जन्मभूमि छोड़कर जाते हैं हम | वश नहीं चलता है रह-रह कर पछताते हैं हम || स्वर्ग के सुख से भी ज्यादा सुख मिला हमको यहां| इसलिए तजते इसे हर बार शरमाते हैं हम || ऐ नदी, नालों, दरख्तो , ये मेरा कसूर , माफ करना जोड़ ,कर ,तुमसे फरमाते हैं हम| मातृभूमि! […]

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इतिहास के पन्नों से

शिवाजी महाराज की पुण्यतिथि पर विशेष: अंग्रेजों और मराठों के संघर्ष

अभी 3 अप्रैल को हमने छत्रपति शिवाजी महाराज की पुण्यतिथि पर उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की है। आज का यह लेख हम उन्हीं को समर्पित कर रहे हैं। जिससे यह स्पष्ट होगा कि उनकी मृत्यु के बाद भी बहुत देर तक उनके वंशज और देश के क्रांतिकारी उनसे किस प्रकार प्रेरणा लेते रहे थे ? […]

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इतिहास के पन्नों से हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

राष्ट्रीय अखण्डता और महर्षि दयानन्द

लेखक- डॉ. भवानीलाल भारतीय भारतीय नवजागरण के अग्रदूत महर्षि दयानन्द द्वारा प्रतिपादित विचारों की भारत की राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने तथा देश की अखण्डता की रक्षा में क्या उपयोगिता है? यदि हम संसार के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ वेदों का अवलोकन करें, तो हमें विदित होता है कि वैदिक वाङ्‌मय में सर्वप्रथम राष्ट्र की विस्तृत […]

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इतिहास के पन्नों से

मेवाड़ के महाराणा और उनकी गौरव गाथा अध्याय – 32 उत्तरवर्ती राणा शासक

उत्तरवर्ती राणा शासक महाराणा राज सिंह के पश्चात उनके पुत्र महाराणा जय सिंह ने 1680 से 1698 ई0 तक शासन किया। इस महाराणा का समकालीन मुगल शासक औरंगजेब था। कुछ देर तक महाराणा ने इस मुगल शासक से युद्ध किया पर अपने विलासी स्वभाव के कारण अधिक देर तक युद्ध जारी नहीं रख सका और […]

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इतिहास के पन्नों से

रामनवमी पर विशेष: मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम हैं भारत के राष्ट्रपिता

आज राम नवमी का पर्व है। इस ऐतिहासिक पर्व की आप सबके लिए हार्दिक शुभकामनाएं। संपूर्ण भूमंडलवासियों के लिए इस पर्व का विशेष महत्व है। क्योंकि इस दिन संपूर्ण भूमंडल से राक्षसवृत्तियों का विनाश करके अपने जीवन को आदर्श बनाने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म हुआ था। संपूर्ण मंडल के संताप निवारक श्रीराम […]

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मेवाड़ के महाराणा और उनकी गौरव गाथा अध्याय – 31 महाराणा राज सिंह का औरंगजेब को पत्र

महाराणा राज सिंह का औरंगजेब को पत्र महाराणा राज सिंह अपने समय में वैदिक हिंदू धर्म के रक्षक के रूप में काम कर रहे थे। उन्होंने हर उस असहाय भारतवासी की आवाज बनने का प्रयास किया जो उस समय क्रूर मुगल शासक औरंगजेब के अत्याचारों का शिकार हो रहा था। अपने देश, धर्म व संस्कृति […]

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इतिहास के पन्नों से

मेवाड़ के महाराणा और उनकी गौरव गाथा अध्याय – 30 ( ख ) महाराणा राज सिंह का राज्य विस्तार

महाराणा राज सिंह का राज्य विस्तार महाराणा ने टोडा, मालपुरा, टोंक, चाकसू, लालसोट को लूटा और मेवाड़ के खोये हुए भागों पर पुनः अधिकार कर लिया। जब इस प्रकार की सूचनाएं मुगल दरबार में पहुंची तो चित्तौड़ के विरुद्ध वहां पर फिर साजिश रची जाने लगी। वास्तव में महाराणा राज सिंह अपने खोए हुए राज्य […]

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इतिहास के पन्नों से

मेवाड़ के महाराणा और उनकी गौरव गाथा अध्याय – 30 ( क ) महाराणा राजसिंह प्रथम ( 1652 – 1680 ई० )

महाराणा राज सिंह के शासनकाल में मेवाड़ ने फिर अपने उत्थान और उत्कर्ष की ओर बढ़ना आरंभ किया। इनके शासनकाल के प्रारम्भिक 6 वर्षों में दिल्ली पर मुगल शासक शाहजहां का शासन था, जबकि उसके पश्चात के शेष शासनकाल में औरंगजेब का शासन रहा। महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब जैसे क्रूर बादशाह मुगल शासक से लोहा […]

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