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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

गुर्जर प्रतीहारों ने रखा था 300 वर्ष तक देश सुरक्षित

सम्मान, संपत्ति, सत्ता और शक्ति के लिए विश्व के पिछले दो हजार वर्ष के युद्घ हुए हैं। इन युद्घों को लड़ते-लड़ते एक धारणा रूढ़ हो गयी, या स्थापित कर दी गयी कि जर, जोरू और जमीन के लिए तो सभी लड़ते हैं। जबकि ऐसा कहना समस्या का समाधान नही है, अपितु समस्या को और भी […]

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मथुरा नरेश कुलचंद का वो अप्रितम बलिदान

बात सन 986-987 की है। भारत पर उस समय आक्रमण करने की एक श्रंखला को महमूद गजनवी अभी आरंभ कर नही पाया था। तब प्रतीहार वंश भारत में पतनोन्मुख हो चला था, यद्यपि यह वंश भारत के लिए बहुत ही गौरव प्रदान कराने वाला रहा था। ऐसा गौरव जिसे देखकर इतिहासकारों की मान्यता बनी कि […]

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जब गुजरात की भूमि ने कुतुबुद्दीन ऐबक को चटाई थी धूल

गुजरात का प्राचीन काल से ही भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह प्रांत वीर गुर्जर जाति का निवास स्थान रहा है। गुर्जर जाति ने इस प्रांत से देश विदेश के बहुत बड़े भूभाग पर शासन किया और मां भारती के यश और शौर्य की गाथा का डिण्डिम घोष किया। डॉ॰ राकेश […]

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सूफी परंपरा ने हमें पराजित घोषित कराया

प्रसिद्घ दार्शनिक सुकरात को शीशा देखने का बड़ा चाव था। नित्य की भांति वह उस दिन भी शीशा देख रहे थे, तो उन्हें शीशा देखते हुए उनके एक शिष्य ने देख लिया। शिष्य अपने कुरूप गुरू को शीशा देखते हुए देखकर मुस्कराने लगा। उसकी मुस्कुराहट ने दार्शनिक सुकरात को समझा दिया कि वह क्यों हंस […]

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गंग, हांसी, तरावड़ी और विजयराव के वो अविस्मरणीय बलिदान

जब विदेशियों ने भारत के इतिहास लेखन के लिए लेखनी उठाई तो उन्होंने भारतीय समाज की तत्कालीन कई दुर्बलताओं को दुर्बलता के रूप में स्थापित ना करके उन्हें भारतीय संस्कृति का अविभाज्य अंग मानकर स्थापित किया। जैसे भारत में मूर्तिपूजा ने भारत के लोगों को भाग्यवादी बनाने में सहयोग दिया, यद्यपि मूलरूप में भारत भाग्यवादी […]

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जब भाग्यवादिता भी हमारे लिए वरदान बन गयी

तुर्कों के भारत में आकर यहां के कुछ क्षेत्र पर बलात अपना नियंत्रण स्थापित कराने में इस्लाम की धार्मिक (पंथीय या साम्प्रदायिक कहना और भी उचित रहेगा) मान्यताओं ने प्रमुख भूमिका निभाई। इन मान्यताओं के अनुसार इस्लाम संपूर्ण मानवता को दो भागों में विभाजित करके देखता है, सर्वप्रथम है-‘दारूल-इस्लाम’ अर्थात वो देश जिनका इस्लामीकरण किया […]

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हमारी ‘पराजय’ के कुछ अवर्णित सैनिक कारण

जिस प्रकार  हमारे पतन के राजनैतिक कारणों में कुछ काल्पनिक कारण समाहित किये गये हैं और वास्तविक कारणों को वर्णित नही किया गया है, उसी प्रकार हमारे पतन  के लिए कुछ काल्पनिक सैनिक कारण भी गिनाये जाते हैं। पर इन सैनिक  कारणों को गिनाते समय भी हमारे अतीत का ध्यान नही रखा जाता है और […]

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भयंकर झंझावातों के मध्य भी हमारी जीवन्तता बनी रही

जब तुर्कों के सामने राजपूतों की पराजय के कारणों का उल्लेख किया जाता है, तो सामान्यतया भारतीयों की जातिगत सामाजिक व्यवस्था को भी हर इतिहासकार दोषी मानता है। डा. ईश्वरी प्रसाद लिखते हैं :-”इन दोनों जातियों का संघर्ष दो भिन्न सामाजिक व्यवस्थाओं का संघर्ष था। एक पुरानी व्यवस्था (हिन्दुत्व) पतनोन्मुख थी, और दूसरी यौवनपूर्ण तथा […]

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अंतिम विजय के लिए सतत संघर्ष का प्रवाह ‘पराजय’ में भी बना रहा

राजपूतों की पराजय के राजनीतिक कारणों पर विचार करते हुए हमें प्रचलित इतिहास में जो कारण पढ़ाए जाते हैं, उनमें प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं :- -भारत में राजनीतिक एकता का अभाव होना। -मुसलमानों में एकता की प्रबलता का पाया जाना। -तुर्कों की हिंदुओं से अच्छी शासन व्यवस्था का होना। -राजपूतों की लोक कल्याण की […]

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महारानी संयोगिता व हजारों बलिदानियों के बलिदान का स्मारक-लालकिला

राकेश कुमार आर्यसज्जन और सप्तपदीकहा जाता है कि ”सतां सप्तपदी मैत्री” अर्थात सज्जनों में सात पद चलते ही मैत्री हो जाती है। ये सात पद मानो सात लोक हैं, प्रत्येक पद से एक लोक की यात्रा हो जाती है। अत: सात पद किसी के साथ चलने का अर्थ है कि मैंने आपकी मित्रता स्वीकार की। […]

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