बुर्के को लेकर डॉ. अंबेडकर के क्या विचार थे? इस विषय पर मेरा लेख ‘अमर उजाला’ में प्रकाशित हुआ है। – पर्दाप्रथा की वजह से मुस्लिम महिलाओं में दासता और हीनता की मनोवृत्ति बनी रहती है – डॉ. अंबेडकर – पर्दाप्रथा की वजह से मुस्लिम नौजवानों में यौनाचार के प्रति ऐसी अस्वस्थ प्रवृत्ति का सृजन […]
Category: इतिहास के पन्नों से
प्रणय कुमार जिनका नाम लेते ही नस-नस में बिजलियाँ-सी कौंध जाती हो; धमनियों में उत्साह, शौर्य और पराक्रम का रक्त प्रवाहित होने लगता हो; मस्तक गर्व और स्वाभिमान से ऊँचा हो उठता हो- ऐसे परम प्रतापी महाराणा प्रताप की आज जयंती है।आज का दिवस मूल्यांकन-विश्लेषण का दिवस है।क्या हम अपने गौरव, अपनी धरोहर, अपने अतीत […]
प्रणय कुमार विनायक दामोदर सावरकर यानी स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर एक विचारधारा विशेष के लोग आरोप लगाते रहे हैं| उनका आरोप है कि वीर सावरकर ने तत्कालीन ब्रितानी हुकूमत से माफ़ी माँगी थी और उनकी शान में क़सीदे पढ़े थे। यद्यपि राजनीतिक क्षेत्र में आरोप लगाओ और भाग जाओ की प्रवृत्ति प्रचलित रही है।उसके लिए आवश्यक […]
चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण! ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान!! वसंत पंचमी का दिन हमें “हिन्दशिरोमणि पृथ्वीराज चौहान” की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो […]
अनुराग भारद्वाज यह किस्सा तबका है जब लाल बहादुर शास्त्री गृह मंत्री थे।एक बार वे और मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर दिल्ली के क़ुतुब एन्क्लेव इलाके से वापस आ रहे थे।दिल्ली के एम्स के पास एक रेलवे फाटक था। ट्रेन आने वाली थी।फाटक बंद था।गृह मंत्री की गाड़ी रुक गयी।कार के बगल में गन्ने वाले को […]
नेहा शर्मा भारत के सविधान के अनुसार भारत का राष्ट्रपति देश का मुखिया तथा प्रथम नागरिक कहा जाता है।भारत के राष्ट्रपति के पास असीमित शक्तिया होती है परंतु राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का इस्तेमाल स्वयं नहीं कर सकता है। उसको अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने के लिए प्रधानमंत्री और उसके मंत्री परिषद् पर निर्भर करता है। राष्ट्रपति तीनो सेनाओ का कमांडर […]
दुनिया में देखें तो इतिहास वाम धूर्तों का प्रिय विषय रहा है हमेशा से। क्योंकि इतिहास के पुनरलेखन या पुनरपाठ के जरिए समाज में संघर्ष के बीज बोने की क्षमताएं असीम हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय को ही देख लें। वहां इतिहास पढ़ने वाले खुद को थोड़ा आभिजात्य मानते हैं। रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा, हरबंश […]
डॉ.प्रवीण तिवारी आधुनिक इतिहासकारों का भारत के विषय में सबसे बड़ा गड़बड़झाला ये सामने आता है कि वे सिंधुघाटी सभ्यता को दुनिया की पहली विकसित नगरीय सभ्यता मानते हैं, लेकिन वैदिक सभ्यता को इसके बाद का मानते हैं। पाश्चात्य जगत के इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को बहुत असमंजस में रखा। समस्या यह थी कि वह […]
प्रेषकः डॉ विवेक आर्य जिन्होंने इतिहास के उन पन्नों को पलटा है, जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहे थे, तब उन्होंने आर्थिक सहायता के लिये अभ्यर्थना भारत से की | उन दिनों गुरुकुल कांगड़ी में २-३ अंग्रेजी अख़बार आते थे | स्वामी श्रद्धानंद ने उन अखबारों के आधार पर […]
#स्वर्णिम अध्याय जो इतिहास से महरूम रहा 😌 एक आम लोकभाषा की कहावत होती थी “जहाँ ना पहुंचे रेलगाड़ी, वहां पहुंचे मारवाड़ी” ! दूर-दराज के क्षेत्रों तक जा पहुँचने और अपनी कर्मठता से अपने व्यवसायों को स्थापित करने के कारण मारवाड़ी, भारत भर में जाने जाते हैं। उनके हर जगह फैलने का नतीजा ये हुआ […]