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भयानक राजनीतिक षडयंत्र मुद्दा राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

वाह योगी जी वाह!

उत्तर प्रदेश को ‘उत्तम प्रदेश’ बनाने की बात कहने वाले ‘बीमार प्रदेश’ बनाकर छोडक़र गये हैं। साम्प्रदायिक आतंकवाद से जूझता रहा उत्तर प्रदेश ‘सरकारी आतंकवाद’ से भी जूझता रहा। यह ‘सरकारी आतंकवाद’ जातीय आधार पर अधिकारियों की नियुक्ति या पुलिस में भर्ती के रूप में तो देखा ही गया,  साथ ही अधिकारियों और पार्टी के […]

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मुद्दा

कश्मीर समस्या, प्रजातंत्र, जिहाद और नेहरू

‘जब हम हाथ में पत्थर या बंदूक उठाते हैं तो इसलिए नहीं कि हम कश्मीर के लिए ऐसा कर रहे हैं। हमारा एक ही मकसद होना चाहिए कि हम इस्लाम के लिए लड़ रहे हैं, ताकि हम शरीआ को बहाल कर सकें।’ तो दोस्तों कश्मीर घाटी में अमन-शांति खोजने से पहले इस कड़वे सच को […]

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मुद्दा

समय की आवश्यकता : घाटी में प्रेम मार्ग अपनाए सरकार

पीके खुराना जिन इलाकों में चरमपंथी गतिविधियां न हों, वहां आम्र्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट की जरूरत नहीं है। समय की मांग है कि प्रशासन लोगों से ज्यादा रू-ब-रू हो, उनके सुख-दुख में शामिल हो और अलगाववादियों की गतिविधियों, खासकर सोशल मीडिया की गतिविधियों पर गहरी निगाह रखी जाए। यदि हम ऐसा कर पाए तो […]

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मुद्दा संपादकीय

जे.एन.यू. और डी.यू. का डी.एन.ए.

भारत के छात्रों की राजनीति एक बार फिर गरमा रही है। जे.एन.यू. में कुछ दिनों पूर्व जो कुछ देखने को मिला था अब कुछ वैसा ही डी.यू. में देखने को मिला है-जहां कुछ छात्रों ने देशविरोधी नारे लगाये हैं, जिसका ए.बी.वी.पी. ने विरोध किया है। कम्युनिस्ट दलों के नेताओं सहित सभी धर्मनिरपेक्ष दलों ने न्यूनाधिक […]

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मुद्दा राजनीति

फतवों की राजनीति में सुराज्य की कल्पना कैसे साकार होगी

सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावों में धर्म, जाति, सम्प्रदाय या वर्ग विशेष के नाम पर वोट मांगने को या वोट देने के लिये प्रेरित करने को भ्रष्ट प्रक्रिया करार देकर भारतीय लोकतंत्र में पहली सबसे खतरनाक बीमारी को दूर करने का प्रयास किया है। बावजूद इसके दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी ने बहुजन […]

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मुद्दा संपादकीय समाज

देश को जाति युद्घ से बचाओ

हमारे संविधान निर्माताओं ने देश की आर्थिक प्रगति में सभी वर्गों और आंचलों के निवासियों को जोडऩे के लिए और आर्थिक नीतियों का सबको समान लाभ प्रदान करने के लिए ‘आरक्षण’ की व्यवस्था लागू की थी। आरक्षण की यह व्यवस्था पूर्णत: मानवीय ही थी-क्योंकि इसका उद्देश्य आर्थिक रूप से उपेक्षित रहे, दबे, कुचले लोगों को […]

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