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समाज का पुराण वर्णित अन्ध विश्वासों का आचरण

मनमोहन सिंह आर्य सृष्टि की रचना करने के बाद से ईश्वर मनुष्यों को जन्म देता, पालन करता व उनकी सभी सुख सुविधा की व्यवस्थायें करता चला आ रहा है। हमारी यह सृष्टि लगभग 1 अरब 96 करोड़ वर्ष पूर्व ईश्वर के द्वारा अस्तित्व में आई है। सृष्टि को बनाकर ईश्वर ने वनस्पतियों व प्राणीजगत को […]

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सप्तऋषियों और चतुष्टय वेदज्ञों में एक महर्षि अंगिरा

अशोक प्रवृद्ध दिव्य अध्यात्मज्ञान, योगबल, तप-साधना एवं मन्त्रशक्ति के लिए विशेष रूप से प्रतिष्ठित महर्षि अंगिरा भारतीय सनातन वैदिक परम्परा के आदि पुरूषों में से एक हैं, जिन्हें सृष्टि के आदि काल में वेद ज्ञान को सुनने , समझने और आदिपुरूष ब्रह्मा को समझाने का सौभाग्य प्राप्त है ।पुरातन ग्रंथों के अनुसार महर्षि अंगिरा ब्रह्मा […]

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कृषकों की आत्महत्त्याएं कैसे रुकेगी?

डॉ. मधुसूदन 1. कृषकों की आत्महत्त्याओं को घटाने के लिए।प्रायः ६० करोड की कृषक जनसंख्या, सकल घरेलु उत्पाद का केवल १५ % का योगदान करती है। और उसीपर जीविका चलाती है।विचारक विचार करें।अर्थात, भारत की प्रायः आधी जनसंख्या और, केवल १५% सकल घरेलु उत्पाद? बस? जब वर्षा अनियमित होती है, तब इन का उत्पाद घट कर […]

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वेदों का ज्ञान और समाज का पुराण वर्णित अन्ध विश्वासों का आचरण

सृष्टि की रचना करने के बाद से ईश्वर मनुष्यों को जन्म देता, पालन करता व उनकी सभी सुख सुविधा की व्यवस्थायें करता चला आ रहा है। हमारी यह सृष्टि लगभग 1 अरब 96 करोड़ वर्ष पूर्व ईश्वर के द्वारा अस्तित्व में आई है। सृष्टि को बनाकर ईश्वर ने वनस्पतियों व प्राणीजगत को बनाया और इसमें […]

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निर्माण एवं सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा

मृत्युजंय दीक्षित श्रेष्ठश्रम को  साधना और समर्पण वृद्धि की जोड़ मिले तो समाज में नि:संदेह समृद्धि पैदा होगी। श्रम से अर्थोत्पादन होता है और अर्थ ही इच्छापूर्ति का साधन  है। श्रम ही यज्ञ है साधन और अनुसंधान उसके उपचार हैं। कुशलता इस साधन की उपलब्धि है। भगवान विश्वकर्मा जी ने अपने श्रेष्ठ कार्यो के द्वारा […]

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सर्वप्रथम हृदय से आर्य समाज ने ही अपनाया था हिन्दी को

आर्य समाज की स्थापना गुजरात में जन्में स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने 10 अप्रैल, सन्  1875 को मुम्बई नगरी में की थी। आर्यसमाज क्या है? यह एक धार्मिक संस्था है जिसका उद्देश्य धर्म, समाज व राजनीति के क्षेत्र से असत्य को दूर करना व उसके स्थान पर सत्य को स्थापित करना है। क्या धर्म, समाज […]

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जीवित माता-पिता की सेवा

(यह आलेख हम पूज्य पिता महाशय राजेन्द्र आर्य जी की 24वीं पुण्यतिथि-13 सितंबर 2015 के अवसर पर प्रकाशित कर रहे हैं। अब से कुछ समय पश्चात श्राद्घ आरंभ होंगे। जिसे पितृकाल भी कहा जाता है। ऐसे अवसर पर यह आलेख समसामयिक है। (प्रस्तुति: सूबेदार मेजर वीर सिंह आर्य) आर्य समाज के पथ-प्रदर्शक एवं प्रवत्र्तक महर्षि […]

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पुण्यतिथि पर विशेष: हिंदी साहित्य में नारी चेतना महादेवी वर्मा

मृत्युंजय दीक्षित हिंदी साहितय जगत की महान लेखिका महादेवी वर्मा का साहित्य जगत में उसी प्रकार से नाम है जैसे कि मुंशी प्रेमचंद व अन्य साहित्यकारों का। महादेवी वर्मा ने केवल साहित्य ही नहीं अपितु काव्य समालोचना संस्मरण संपादन तथा निबंध लेंखन के क्षेत्र मं प्रचुरकार्य कया है अपित इसके साथ ही वे एक अप्रतिम […]

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ग्लोबल वार्मिंग से संकट में खाद्य सुरक्षा

डा. भरत झुनझुनवाला यूरोप तथा उत्तरी अमरीका के देशों की कृषि के लिए ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव सकारात्मक होगा। वर्तमान में यहां ठंड ज्यादा पड़ती है। तापमान में कुछ वृद्धि से इन देशों का मौसम कृषि के अनुकूल हो जाएगा। अत: विकसित देशों का पलड़ा भारी हो जाएगा। उनके यहां खाद्यान्न उत्पादन बढ़ेगा, जबकि हमारे […]

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वैदिक ग्रन्थों में चिकित्सा शास्त्र

अशोक प्रवृद्ध वैदिक मान्यतानुसार सृष्टि का उषाकाल वेद का आविर्भाव काल माना जाता है। भारतीय परम्परा के अनुसार वेदों को सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञान का मूल स्रोत माना जाता है।मनुस्मृति में मनु महाराज ने घोषणा की है- यद्भूतं भव्यं भविष्यच्च सर्वं वेदात् प्रसिध्यति। – मनुस्मृति 12.97 अर्थात- जो कुछ ज्ञान-विज्ञान इस धरा पर अभिव्यक्त हो चुका है […]

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