ये रुपाणि प्रतिमुञ्चमाना असुराः सन्तः स्वधया चरन्ति । परापुरो निपुरो ये भरन्त्यग्निष्टाँल्लोकात् प्रणुदात्यस्मात् ।। -(यजुर्वेद २/३०) अर्थ:- जो दुष्ट मनुष्य अपने मन, वचन और शरीर से झूठे आचरण करते हुए अन्याय से अन्य प्राणियों को पीड़ा देकर अपने सुख के लिए दूसरों के पदार्थों को ग्रहण कर लेते हैं, ईश्वर उनको दुःखयुक्त करता है और […]
*कर्मफल व पुनर्जन्म*
