आज आर्य जगत के एक महान शिक्षाशास्त्री महात्मा हंसराज जी के सुपुत्र बलराज भल्ला का जन्म दिवस है । बलराज भल्ला एक ऐसे क्रांतिकारी हैं जिनका नाम इतिहास से पूर्णतया गायब कर दिया गया है । 10 जुलाई 1888 को गुजरान्वाला पंजाब में जन्मे बलराज भल्ला को 1919 में वायसराय की गाड़ी पर बम फेंकने […]
श्रेणी: हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष
” हम युद्ध नहीं करेंगे ” – ऐसी जिनकी घोषणा को उनसे वह कौन डरेगा ? — सावरकर मित्रो ! सावरकर जी नेहरू सरकार की ढुलमुल विदेश नीति के विरोधी थे । नेहरू सरकार पड़ोसी देशों से अपने भूभाग की सुरक्षा करने में निरंतर असफल हो रही थी। पहले टूटा फूटा हिंदुस्तान लेकर 15 अगस्त […]
मित्रो ! आज 29 जून है । आज सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी की जयंती है । आज ही के दिन 1901 में इस मां भारती के महान सपूत का जन्म बंगाल (अब बांग्लादेश) के पबना जिले में माता वसंतकुमारी और पिता क्षिति मोहन लाहिड़ी के घर हुआ था । इनके पिताजी व बड़े भाई […]
जन डोले जीवन डोले और डोला सब संसार रे जब बजी वेद की बांसुरिया रे 1. परमेश्वर की अनुकम्पा से एक तपस्वी आया। जिसने जनता को नवयुग का नव संदेश सुनाया हो प्यारे नव संदेश सुनाया रे…. जब…. 2. जनता जागी निद्रा त्यगी सुमिर-सुमिर ओंकार रे…. जब बजी वेद की… सब पाखण्डी कुरीतियों से उडक़र […]
स्वामी दयानन्द जन्मजात दार्शनिक थे, इस कारण नहीं कि वे प्रारम्भ से मूडी या उदासमुख थे, अपितु इस कारण कि भावी दार्शनिक की भांति बाल्यकाल से उनकी आत्मा में जीवन की जटिल समस्याओं का हल खोजने की ललक थी। इस प्रयोजन से उनके जीवन की दो घटनायें प्रस्तुत की जा रही हैं जो भविष्य में […]
संतोष सिन्हा श्री रामनाथ लूथरा एक हिंदूवादी चिन्तक हैं जो कि भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास के लिए विशेष कार्य करते रहते हैं। इनका मानना है कि महर्षि दयानंद के पुरूषार्थ से यह देश कभी भी उऋण नहीं हो सकेगा। श्री लूथरा ने ‘उगता भारत’ के साथ एक विशेष बातचीत में कहा कि महर्षि दयानंद […]
भारत के स्वाधीनता संग्राम की शांतिधारा और क्रान्तिधारा दो धाराओं का अक्सर उल्लेख किया जाता है। शांतिधारा से ही नरम दलीय और गरम दलीय दो विचारधाराओं का जन्म हुआ-जन्म हुआ-ऐसा भी माना जाता है। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज इन दोनों ही विचारधाराओं के जनक होने से भारतीय स्वाधीनता संग्राम के किस प्रकार ‘प्रपितामह’ हो […]
जिस वर्ष आर्य समाज की स्थापना हुई उसी वर्ष 1875 में अमेरिका के न्यूयार्क नगर में कुछ लोगों ने आत्मचिंतन के लिए एक सभा बनाने का निश्चय किया और इसे थियोसोफिकल सोसाइटी का नाम दिया। दो मास के अंदर ही इस सभा के सभासदों में परस्पर विग्रह उत्पन्न हो गया, तब यह विचार हुआ कि […]
स्वामी दयानन्द ने अपने लेखन में अनेक स्थलों पर इस आरोपण का खण्डन किया है कि वेद बहुदेववाद, एकाधिदेववाद अथवा देवतावाद का प्रतिपादन करते हैं। डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भी उनसे सहमति जताते हुए लिखते हैं-”एक महत्वपूर्ण बात ध्यान में रखनी चाहिए कि ‘देव’ शब्द एकार्थी नहीं, अनेकार्थी है। देव वह है जो मनुष्य को देता […]
एकतत्त्ववाद बनाम त्रैतवाद स्वामी दयानन्द एकेश्वरवाद को मानते हैं, जिसका अर्थ है कि ईश्वर एक है। वस्तुत: अनेकता की धारणा ईश्वर-विचार के विरूद्घ है। नव्य वेदांत की धारणा भी वेद में नहीं है। नव्य-वेदान्त का सिद्घान्त तो अनिर्वचनीय माया के वर्णन के बिना स्थापित ही नहीं होता। वेदों में माया शब्द का प्रयोग अविद्या अथवा […]