लेखक: सहदेव समर्पित, संपादक शांतिधर्मी मासिक, जींद 9416253826 स्वराज्य तभी संभव हो सकता है जब हिन्दू इतने अद्दिक संगठित और शक्तिशाली हो जाएँ कि नौकरशाही तथा मुस्लिम धर्मोन्माद का मुकाबला कर सकें। -स्वामी श्रद्धानन्द मृतप्रायः हिन्दू जाति की रगों मेें नये रक्त का संचार करने वाले, अपनी सिंह-गर्जना से देश और धर्म के दुश्मनों को […]
Category: हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष
सिंहावलोकन श्रीराम को भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की चेतना का एक महत्वपूर्ण स्रोत कहा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि श्रीराम ही इस चेतना के एकमात्र स्रोत हैं। क्योंकि भारतीय चेतना का यह स्रोत तो सृष्टि के आदि से प्रवाहित होता चला आ रहा है। इसके महत्वपूर्ण संरक्षक के रूप में श्रीराम हमारे लिए बहुत […]
उगता भारत ब्यूरो कोलकाता में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई हिंसा में मंगलवार को कॉलेज परिसर में स्थित महान दार्शनिक, समाजसुधारक और लेखक ईश्वरचंद विद्यासागर की मूर्ति तोड़ दी गई थी। जिसके लिए टीएमसी ने भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर आरोप लगाया है। इसी घटना का विरोध जताते हुए सांकेतिक […]
किसी जालिम का नाम लेते समय अक्सर उसकी तुलना नादिर शाह से की जाती है. लेकिन नादिर शाह के अधिनस्त नबाब / सूबेदार लोग भी कोई कम जालिम और अधर्मी नहीं थे. लाहौर का सूबेदार जकारिया खान बहुत ही जालिम और अधर्मी था. उसने सिक्खों पर बहुत जुल्म किये. सिक्खों का सर काटकर लाने वालों […]
-पंकज मिश्रा उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में एक आर्यसमाजी विचारधारा के समर्थक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को पहली विधानसभा चुनाव में एमएलए बनने का जनादेश मिला था। इन्होंने एमएलए बनने से पहले अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भरी थी। वह ऐतिहासिक मंदिर के तहखाने से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अखबार का प्रकाशन भी चोरीछिपे करते […]
17 दिसम्बर 1927 को गोण्डा के जिला कारागार में अपने साथियों से दो दिन पहले उन्हें फाँसी दे दी गयी। पठन पाठन की अत्यधिक रूचि तथा बाँग्ला साहित्य के प्रति स्वाभाविक प्रेम के कारण लाहिड़ी अपने भाइयों के साथ मिलकर अपनी माता की स्मृति में बसंतकुमारी नाम का एक पारिवारिक पुस्तकालय स्थापित कर लिया था। […]
श्रीराम का औदार्य धर्म भारतीय जन गण में आज भी बहुत सम्मान प्राप्त करता है। जब कोई व्यक्ति किसी गलत कार्य में फँसता या फँसाया जाता है तो लोग उसको धर्म की सौगंध उठाकर अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए कहते हैं । यदि ऐसा व्यक्ति धर्म की सौगंध उठाकर अपनी बात कह देता है […]
संदीप सृजन भारतीय लोक परंपरा के जनकवियों में संत कबीर का नाम सबसे अग्रणी है । कबीर गृहस्थ संत थे, भक्त थे ,कवि थे जीवन चर्या के लिए जुलाहे थे । पर इन सबसे अलग वे चिंतक थे, स्पस्टवादी थे ,युग दृष्टा थे और तर्क की कसौटी पर हर बात को कसने वाले थे । […]
श्रीराम का औदार्य जिस समय भरत और शत्रुघ्न अपनी ननिहाल से अयोध्या पहुंचकर वहां अपनी अनुपस्थिति में घटी सारी घटनाओं से परिचित होते हैं तो रामचंद्र जी की उदारता का उल्लेख करते हुए भरत अपने भाई शत्रुघ्न से कहते हैं कि -” स्त्रियां अवध्य होती हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो मैं पापी दुष्टाचारिणी […]
ललित गर्ग स्वामी विवेकानंद भारतीय संस्कृति एवं भारतीयता के प्रखर प्रवक्ता, युगीन समस्याओं के समाधायक, अध्यात्म और विज्ञान के समन्वयक एवं आध्यात्मिक सोच के साथ पूरी दुनिया को वेदों और शास्त्रों का ज्ञान देने वाले एक महामनीषी युगपुरुष थे। लेकिन 40 साल से भी कम उम्र में उनकी मौत आज भी कइयों के लिए एक […]