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ओ३म् -ऋषि दयानन्द बोधोत्सव (8-3-2024) पर- “शिवरात्रि पर ऋषि को हुए बोध ने वेदोद्धार कर अविद्या को दूर किया”

========= ऋषि दयानन्द ने देश-विदेश को एक नियम दिया है ‘अविद्या का नाश तथा विद्या की वृद्धि करनी चाहिये’। इस नियम को संसार के सभी वैज्ञानिक एवं सभी विद्वान मानते हैं। आर्यसमाज में सभी विद्वान अनुभव करते हैं कि देश में प्रचलित सभी मत-मतान्तर इस नियम का पालन करते हुए दिखाई नहीं देते। इसी कारण […]

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ओ३म् “वैदिक धर्म प्रचार आन्दोलन आर्यसमाज के प्रारम्भिक सुदृढ़ स्तम्भ”

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। वैदिक धर्म संसार का सबसे प्राचीन एवं एकमात्र धर्म है। अन्य धार्मिक संगठन धर्म न होकर मत व मतान्तर हैं। तथ्यों के आधार पर ज्ञात होता है कि सृष्टि के आरम्भ में ही वेदों वा वैदिक धर्म का प्रादुर्भाव ईश्वर से हुआ था। इससे सम्बन्धित जानकारी आर्यसमाज के संस्थापक ऋषि दयानन्द […]

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5 मार्च जयंती : राष्ट्रीयता के कवि सोहनलाल द्विवेदी

डॉ. हरिप्रसाद दुबे – विनायक फीचर्स राष्ट्रकवि पं. सोहनलाल द्विवेदी का जन्म 5 मार्च 1906 ई. को फतेहपुर जनपद के बिन्दकी गांव में हुआ था। उनके पिता पण्डित बिन्दाप्रसाद दुबे धार्मिक और सरल स्वभाव के थे। ग्राम परिवेश में प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद माध्यमिक और स्नातक परीक्षाएं उत्तीर्ण करके उन्होंने स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। कविता के माध्यम से सोहन लाल द्विवेदी ने राष्टï्रभारती की अनन्य आराधना की। इन्होंने बाल साहित्य की अनेक कृतियों का सृजन किया, जिनमें शिशु भारती, बॉंसुरी, बाल भारती, झरना और बच्चों के बापू प्रमुख हैं। काव्य के इतिहास पुरुष और स्वाधीनता आन्दोलन के मेरूदण्ड सोहन लाल द्विवेदी की रचनाओं ने जनमानस को विदेशी शक्तियों के विरुद्ध जूझने की शक्ति दी। उनकी सच्ची कविता ने प्रसुप्त हृदयों को जगाकर पथ प्रदर्शित कर ऊर्जावान होने के लिए प्रवृत्त किया। द्विवेदी जी कवियों की मणिमाला के जगमगाते रत्न थे। मातृभूमि के अनन्य उपासक सोहनलाल द्विवेदी की वन्दना की कामना भी अनूठी है। वे स्वातंत्र्य के महासंग्राम में प्राण प्रण समर्पित रहे। राष्टï्र के प्रति उच्च भावना थी। हिन्दी और संस्कृत के पारंगत विद्वान द्विवेदी जी निष्काम भाव से साहित्य सर्जना में आजीवन संम्पृक्त रहे। वे गांधीवादी विचार धारा के प्रतिनिधि कवि थे। राष्टï्रीय रचनाओं के साथ-साथ उनकी पौराणिक रचनाओं को भी आदर मिला। पूजा गीत, भैरवी, विषपान, वासवदत्ता और जय गांधी कृतियां हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। ‘युगावतार गांधीÓ रचना के राग, लय ने सोहनलाल जी के कृतित्व को उच्चता प्रदान की। युग पुरुष महात्मा गांधी के व्यक्तित्व को जितनी जीवन्तता उन्होंने दी वह अप्रतिम ही है। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद की परिस्थितियों पर राष्टï्रनिष्ठï पं. द्विवेदी को पीड़ा हुई, जिसे उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्त किया है। सोहनलाल द्विवेदी की अन्य कृतियों में हम बालवीर, गीत भारती, युगाधार, चित्रा, बासन्ती, प्रभाती, चेतना, कुणाल और संजीवनी आदि हैं। उनकी रचनाओं में अलग-अलग अनेक रंग हैं। इनकी काव्य-निर्झरिणी में अवगाहन करके जीवन पथ पर नये आयाम मिलते हैं। पं. द्विवेदी का कुणाल काव्य इतना श्रेष्ठï है कि यह उन्हें राष्टï्रीयता का अनन्य प्रेमी ही नहीं वीरोपासक कवि के रूप में स्थापित करता है। यह हिन्दी में राष्टï्रीय महाकाव्य की कमी पूर्ण करने में समर्थ है। अपने कवि कर्म के प्रति सजग रहे सोहनलाल द्विवेदी ने 1965 में देश पर आए अन्न संकट के समय कृषकों को जाग्रत करने वाली सर्जना की। बाल साहित्य की विशिष्टï सेवा के उत्तरप्रदेश शासन ने उन्हें पुरस्कृत किया। इसके पश्चात्ï दीर्घकालीन विशिष्टï उत्कृष्टï सारस्वत साधना पर उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान ने पन्द्रह हजार रुपए की धनराशि पुरस्कार स्वरूप प्रदान करके सम्मानित किया। भारत सरकार ने पं. सोहनलाल द्विवेदी की राष्टï्रीय एवं बाल साहित्य की सारस्वत सेवा पर उन्हें 1969 में पद्ïमश्री अलंकरण से विभूषित करके उनके अप्रतिम अवदान को प्रतिष्ठिïत किया। वे महान व्यक्ति थे।  रामायण एवं तुलसी मर्मज्ञ पं. बद्रीनारायण तिवारी उनके अनन्य प्रशंसक रहे हैं। वे लिखते हैं ‘तुलसीदलÓ में सहजता ही जिनकी प्रमुख विशेषता है। कवि, पत्रकार दोनों रूपों में यशस्वी स्थान रहा है। अपनी लेखनी से द्विवेदी जी ने देश के गौरव की चिन्ता की। उनकी रचना ‘जवानों ने विजयश्री से मुकुट मां का संवारा है। किसानों। अन्न धन से अब तुम्हें आंचल सजाना है। हमारी अन्नपूर्णा मां न मांगे अन्न की भिक्षा। करोड़ों हाथ से मां का नया संबल सजाना है।Ó जन-जन की कंठहार बन गई। मानवीय मूल्यों में वे मनीषी कवि थे। पं. सोहनलाल द्विवेदी अत्यन्त सहृदय और निश्छल स्वभाव के थे। पत्रों के उत्तर तुरन्त देने की अनूठी दृष्टि अन्य रचनाकारों से पृथक थी। उनमें परोपकार, दया, क्षमा और कुशाग्र दृष्टिï अन्तर्मन तक थी। जीवन उत्तराद्र्ध में जब भी अस्वस्थ हुए तो पं. बद्रीनारायण तिवारी को सूचित करने में कोई संकोच नहीं करते थे। हिन्दी युग पुरुष पं. नारायण चतुर्वेदी, श्रीपति मिश्र से भी सम्पृक्त रहे। कविवर विनोदचन्द्र पाण्डेय ‘विनोदÓ की सृजनात्मकता पर द्विवेदी जी मुग्ध थे। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का प्रभाव  द्विवेदी की तुलसीदल के प्रति साहित्यिक दृष्टिï से है- है शब्द-शब्द में भरा भाव, है छन्द-छन्द में भरा ज्ञान। है वाक्य-वाक्य में अमरवचन, वाणी में वीणा का विधान। अपनी रचनाओं में द्विवेदी जी विनम्रता का भाव भरते हैं- ‘मैं मंदिर का दीप तुम्हारा जैसे चाहो इसे जलाओ जैसे चाहो इसे बुझाओ इसमें क्या अधिकार हमारा जला करेगा ज्योति करेगा जीवनपथ का तिमिर हरेगा होगा पथ का एक सहारा बिना देह यह चल न सकेगा अधिक दिवस यह जल न सकेगा भरे रहो इसमें मधु धारा मैं मंदिर का दीप तुम्हारा॥‘ 1976 में सोहनलाल द्विवेदी ने तुलसीदल की अष्टदलीय भव्यमाला गूंथ के तुलसी की उद्भावनाएं प्रगट की हैं। कवि की उच्च दृष्टि इस प्रकार है- ‘गूंजो फिर बनकर रामनाम रणवीरों के मन से अकाम। नवराष्ट्र जागरण के युग में तुलसी गूंजो तुम धाम-धाम॥ दो हमको भूली कर्म शक्ति, दो हमको फिर से आत्मबोध। दो हमें राम के मानस का वह क्षत्रिय का अपमान क्रोध॥ कुलपति श्री गिरिजाप्रसाद पाण्डेय ने पं. द्विवेदी के अमृत महोत्सव अगस्त 1980 में लखनऊ वि.वि. में कहा था ‘राष्ट्रकवि पं. सोहनलाल द्विवेदी की रचनाएं आज भी उच्च सांस्कृतिक मूल्यों से जोडऩे में समर्थ हैं। द्विवेदीजी अपने युग की एक विभूति हैं।  ‘भैरवी’ की भूमिका डॉ. सम्पूर्णानन्द ने लिखी। राजस्थान विद्यापीठ ने 1973 में साहित्य चूड़ामणि कानपुर वि.वि. ने 1975 में डी.लिट्ï की मानद उपाधि प्रदान की। उनके समग्र साहित्य में मानवता की दृष्टि भरी है। राष्ट्रकवि द्विवेदी जी 1 मार्च 1988 को चल बसे। (विनायक फीचर्स)

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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

स्वामी भीष्म जी की एक रचना

  कैसे शिक्षा पुरानी भुलाई गई।।टेक।। गर्भ से अन्त्येष्टि तक संस्कार करते थे। पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य से प्यार करते थे। गुरुकुल में पढ़ते थे इकरार करते थे। गृहस्थी वेद विद्यालयों का उद्धार करते थे। जो भी जिस प्रकार गृहस्थी धन कमाते थे। नियम से दशमांश गुरुकुल में पहंुचाते थे। इसलिये निःशुल्क गुरुकुल में पढ़ाते […]

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समाज हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

महर्षि दयानन्द जी का स्वकथित जीवनचरित्र, भाग 5      सिद्धपुर के मेले में, अपनी भूल से पिता की कैद में-

सिद्धपुर के मेले में, अपनी भूल से पिता की कैद में कोट कांगड़े में मैंने सुना कि सिद्धपुर में कार्तिक का मेला होता है वहां कोई तो योगी अपने को मिलेगा और अमर होने का मार्ग बता देगा इस आशा से मैंने सिद्धपुर की बाट पकड़ी। मार्ग में मुझे थोड़ी दूर पर पास के एक […]

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महात्मा मुंशीराम जी की गुरुकुल कांगड़ी से जुदाई*

  पंडित सत्यदेव विद्यालंकार महात्मा मुंशीराम जी [बाद में स्वामी श्रद्धानंद जी] आपस के संघर्ष को टालने में सदा चतुराई से काम लिया करते थे। गुरुकुल को संस्कृत की पाठशाला बनाने किंवा विश्वविद्यालय बनाने का मतभेद दिन-पर-दिन जोर पकड़ता गया। यदि महात्मा जी गुरुकुल में बने रहते तो संभव था कि वह मतभेद संघर्ष में […]

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समाज हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

महर्षि दयानन्द जी का स्वकथित जीवनचरित्र, भाग 4

कुछ दिन पीछे मैंने कहा कि आप ने काशी जाने से रोका, इसमें मेरा कुछ आग्रह नहीं परन्तु यहां से तीन कोस पर अमुक ग्राम में जो बड़े वृद्ध और अपनी जाति के भारी विद्वान् रहते हैं और वहां हमारे घर की जमींदारी भी है, उनके पास जाकर पढ़ा करूं, इतना तो मान लीजिये । […]

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वीर सावरकर की माफ़ी और अंग्रेज

डॉविवेकआर्य (26 फरवरी को पुण्य तिथि के उपलक्ष पर प्रचारित) वीर सावरकर भारत देश के महान क्रांतिकारियों में से एक थे। कांग्रेस राज की बात है। मणिशंकर अय्यर ने मुस्लिम तुष्टिकरण को बढ़ावा देने के लिए अण्डेमान स्थित सेलुलर जेल से वीर सावरकर के स्मृति चिन्हों को हटवा दिया। यहाँ तक उन्हें अंग्रेजों से माफ़ी […]

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राम मंदिर के अमर बलिदानी राजा महताब सिंह

    अयोध्या में राम मंदिर बना है तो कई प्रकार की घटनाओं पर इस समय चर्चाएं चल रही हैं । कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने जिस प्रकार हमारे भारतीय वीर वीरांगनाओं के इतिहास को छुपाया अब उनके पाप उजागर होने लगे हैं । कई लोगों का ध्यान इतिहास की उन धूल फांकती पुस्तकों की ओर गया […]

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डॉ अंबेडकर के मतानुसार वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के मूलभूत अन्तर

  डॉ. अंबेडकर वर्ण व्यवस्था एवं जाति व्यवस्था को परस्पर विरोधी मानते हैं और वर्ण व्यवस्था के मूल तत्त्वों की प्रशंसा करते हैं। उन्हीं के शब्दों में उनके मत उद्धृत हैं- (क) ‘‘जाति का आधारभूत सिद्धान्त वर्ण के आधारभूत सिद्धान्त से मूल रूप से भिन्न है, न केवल मूल रूप से भिन्न है, बल्कि मूल […]

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