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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

वैद्यराज श्री भट्ट के प्रयासों से कश्मीर फिर से बन गया था स्वर्ग

सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी कविता ‘जलियांवाले बाग में बसंत’ में लिखा है :- ‘‘यहां कोकिला नही, काक हंै शोर मचाते।काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।।कलियां भी अधखिली मिली हैं कंटक कुल से।वे पौधे, वे पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे।।परिमल हीन पराग दाग सा बना पड़ा है,हा यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा […]

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हिन्दुओं को मिले तीन विकल्प-इस्लाम, मृत्यु, कश्मीर छोड़ो

कश्मीर का सुल्तान सिकंदरकश्मीर दुर्भाग्य और दुर्दिनों से जूझ रहा था। धर्म नष्ट हो रहा था, और ‘दीन’ फैलता जा रहा था। अंधेरा गहराता जा रहा था, और दूर होने का नाम नही लेता था। इसी काल में कश्मीर का सुल्तान सिकंदर बन गया। इसने अपनी उपाधि ही ‘बुतशिकन’ (मूर्ति तोडऩे वाला) की रख छोड़ी […]

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स्थानीय हिन्दू शासक भी लड़ते रहे अपना स्वतंत्रता संग्राम

सिकंदर लोदी बना सुल्तान बहलोल लोदी की मृत्यु जुलाई 1489 ई. में हो गयी थी। तब उसके पश्चात दिल्ली का सुल्तान उसका पुत्र निजाम खां सिकंदर दिल्ली का सुल्तान बना। उस समय दिल्ली सल्तनत कोई विशेष बलशाली सल्तनत नही रह गयी थी। उसके विरूद्घ नित विद्रोह हो रहे थे और सुल्तानों की सारी शक्ति उन […]

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अत्याचारों की करूण गाथा के उस काल में भी आशा जीवित रही

सिकंदर के शासन काल में हिंदुओं की स्थिति कश्मीर में सिकंदर का शासन और हिंदुओं की स्थिति इस प्रकार थी कि सिकंदर का शासन मानो खौलते हुए तेल का कड़ाह था और हिंदू उसमें तला जाने वाला पकौड़ा। ऐसी अवस्था में बड़ी क्रूरता से हिंदुओं से जजिया वसूल किया जाता था। जजिया को जोनराज ने […]

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जब कश्मीर के राजा जशरथ ने बढ़ाया भारत का ‘यश’ रथ

संसार एक सागर है संसार एक सागर है, जिसमें अनंत लहरें उठती रहती हैं। ये लहरें कितने ही लोगों के लिए काल बन जाती हैं, तो कुछ ऐसे शूरवीर भी होते हैं जो इन लहरों से ही खेलते हैं और खेलते-खेलते लहरों को अपनी स्वर लहरियों पर नचाने भी लगते हैं। ऐसा संयोग इतिहास के दुर्लभतम क्षणों […]

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जब भारतवर्ष में मात्र 26 वर्ष में ही हो गये थे 20 स्वतंत्रता आंदोलन

आर्यधर्म की विशेषताएं जिस आर्य (हिन्दू) धर्म की रक्षार्थ लड़े गये लंबे स्वातंत्र्य समर की कहानी हम लिख रहे हैं उसके विषय में स्वामी विज्ञानानंद जी महाराज ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दू नाम की प्राचीनता और विशेषताएं’ के पृष्ठ भाग पर लिखा है कि-‘‘यह धर्म (अपने मूल स्वरूप में) जनतंत्रवादी है- अधिनायकवादी नही, बुद्घिवादी है-पैगंबरवादी नही, […]

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भारत के ‘गौरव’ को लौटाना चाहते थे राणा सांगा

महर्षि दयानंद का मत जिन लोगों ने विदेशियों का अंधानुकरण करते-करते स्वदेश और स्वदेशी की भावना को अपने लिए अपमानजनक समझकर उसे कोसना आरंभ किया, उन लोगों को देखकर महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज को असीम पीड़ा हुआ करती थी। उन्होंने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ समुल्लास-11 में लिखा है- ‘‘अपने देश की प्रशंसा वा पूर्वजों की बड़ाई […]

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छलपूर्ण प्रेम की आड़ में कश्मीर धर्मांतरण की ओर बढऩे लगा

‘कश्मीरी पंडित’ का वास्तविक अर्थ कश्मीर को पंडितों की भूमि कहा जाता है। पंडित का अर्थ यहां किसी जाति विशेष से न होकर विद्घानों से है। कश्मीर सदा से ही ऋषियों की तप: स्थली रहा है। यहां लोग लोक-परलोक को सुधारने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए आत्मसाधना हेतु जाया करते थे। इसलिए ऐसे आत्म […]

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भटनेर, सिरसा, लोनी में किया गया तैमूर का प्रतिरोध

पूर्णत: धर्मांध था तैमूर लंगतैमूर लंग ने भारत पर 1398 ई. में आक्रमण किया। इस विदेशी आततायी का उद्देश्य भी भारत के धर्म और संस्कृति को मिटाकर यहां इस्लाम का झण्डा फहराना था। इसमें कोई दो मत नही कि हिंदुओं के प्रति तैमूर अत्यंत क्रूर था। उसकी क्रूरता को सभी इतिहासकारों ने स्वीकार किया है, […]

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गांवों में मुकद्दम भी करते रहे स्वतंत्रता संघर्ष का नेतृत्व

पूर्व आलेख में प्रसंग इटावा का चल रहा था कि यहां के मुकद्दम या ग्राम्य मुखिया लोगों ने भी किस प्रकार स्वतंत्रता की ज्योति जलाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पूर्व आलेख में प्रसंग इटावा का चल रहा था कि यहां के मुकद्दम या ग्राम्य मुखिया लोगों ने भी किस प्रकार स्वतंत्रता की ज्योति जलाये […]

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