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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

दारा शिकोह के कारण गुरू हरिराय पर किये गये तीन आक्रमण

‘सर्व संप्रदाय समभाव’ में विश्वास रखने वाला दारा दाराशिकोह का नाम मुगल वंश के एक ऐसे नक्षत्र का नाम है जिसने विपरीत, परिस्थितियों और विपरीत परिवेश मंज जन्म लेकर भी ‘सर्व संप्रदाय समभाव’ की मानवोचित और राजोचित व्यवस्था में अपना विश्वास व्यक्त किया था और उसके विषय में यह भी सत्य है कि अपने इसी […]

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शिवाजी का व्यक्तित्व आज भी हर भारतीय को देता है प्रेरणा

स्वजनों का रक्त पिपासु -औरंगजेब औरंगजेब के काल की ही घटना है। धौलपुर के मैदान में औरंगजेब और दाराशिकोह की सेनाएं आमने-सामने आ गयीं। यह युद्घ हिन्दुस्थान पर राज करने के लिए व मुगल तख्त का उत्तराधिकारी बनने के लिए लड़ा जा रहा था। औरंगजेब किसी भी मूल्य पर किसी भी ऐसे व्यक्ति को जीवित […]

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हठ करके बलिदान देने की रही है भारत की अनूठी परंपरा

‘सदगुण विकृति’ करती रही हमारा पीछा औरंगजेब ने अपने शासनकाल में चित्तौड़ पर कई आक्रमण किये, पर इस बार के आक्रमण की विशेषता यह थी कि बादशाह स्वयं सेना लेकर युद्घ करने के लिए आया था। मुगलों का दुर्भाग्य रहा कि बादशाह की उत्साहवर्धक उपस्थित भी युद्घ का परिणाम मुगलों के पक्ष में नही ला […]

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शिवाजी ने अपने कृतित्व से सिद्घ किया कि वह उस समय के नायक थे

शिवाजी के राज्य विषयक सिद्घांत शिवाजी के राज्य विषयक सिद्घांत ‘आज्ञापत्र’ या ‘शिवराज की राजनीति’ से स्पष्ट होते हैं। उसके अध्याय 3 में कहा गया है-”परस्पर विरोध उत्पन्न होकर जिससे विनाश हो ऐसा नही करना चाहिए। सकल प्रजा सुरक्षित और संरक्षित रहनी चाहिए। धर्म पथ-प्रवत्र्तक बनना चाहिए। इस प्रजा की करूणा के लिए ईश्वर ने […]

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स्वदेशी राज्य की स्थापना कर शिवाजी ने बना दिया असंभव को संभव

निराले व्यक्तित्व के धनी शिवाजी शिवाजी भारतीयता का प्रतीक थे, वीरता के पुंज थे और इसके उपरांत भी युद्घ में वह दुष्ट के साथ दुष्टता के तो पक्षधर थे, परंतु अपनी ओर से दुष्टता की पहल करने के विरोधी थे। इस भावना को आप युद्घ में सतर्कतापूर्ण मानवीय व्यवहार के रूप में समाहित कर सकते […]

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औरंगजेब के सामने भी सुरक्षित रखा था शिवाजी ने स्वाभिमान

शिवाजी के पत्र का जयसिंह पर नही पड़ा कोई प्रभाव हमने पिछले आलेख में शिवाजी के उस पत्र को उल्लेखित किया था, जो उन्होंने जयपुर के राजा जयसिंह के लिए लिखा था। उस पत्र के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि शिवाजी मराठाभक्त नहीं हिंदू और हिंदूस्थान के भक्त थे। पर दुर्भाग्य की बात […]

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जब शिवाजी ने लिखा था जयसिंह को देशभक्ति भरा पत्र

भारत के राष्ट्रनायकों और इतिहास पुरूषों के साथ जो अन्याय हमारे इतिहासकारों और आज तक के दुर्बल नेतृत्व ने किया है, संभवत: उसी के विषय किसी कवि ने कितना सुंदर कहा है- ”धरती की सुलगती छाती के बेचैन शरारे पूछते हैं, जो लोग तुम्हें दिखला न सके, वो खून के धारे पूछते हैं अंबर की […]

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शिवाजी ने आत्मरक्षा में ही अफजल का वध किया था

देशद्रोही राजा चंद्रराव और शिवाजी शिवाजी राजा चंद्रराव की दूषित और राष्ट्रद्रोही मानसिकता से क्षुब्ध रहने लगे। षडय़ंत्रों और छल कपट से भरी उस समय की राजनीति में कुछ भी संभव था, इसलिए शिवाजी राजा चंद्रराव की राष्ट्रद्रोही मानसिकता के प्रति मौन तो थे पर असावधान किंचित भी नही थे। वह जानते थे कि राष्ट्रद्रोही […]

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दुर्गादास राठौर ने मल्लिका गुलनार के सामने रख दिया था अपना सिर

वेदों में नारी का सम्मान वेद ने नारी को अप्रतिम और अतुलित सम्मान दिया है। इसका कारण यही है कि नारी जगन्नियंता ईश्वर की विधाता और सर्जनायुक्त शक्ति का नाम है। ऋग्वेद (1/113/12) में कहा गया है- यावयद्द्वेषा ऋतपा ऋतेजा: सुम्नावरी सूनृता ईरयंती। सुमंगलीर्विभूति देवती तिमिहाद्योष: श्रेष्ठतया व्युच्छ।। अर्थात-”हे श्रेष्ठतम ऊषा! तू अपनी छटा को […]

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हिन्दू शक्ति के नायक के रूप में उभरे छत्रपति शिवाजी

शिवाजी नाम की महिमा जब कभी भी भारतवर्ष के निष्पक्ष स्वातंत्र्य समर का इतिहास लिखा जाएगा तब भारत के महान सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज को उस समर के महानायकों में अवश्य ही स्थान मिलेगा। छत्रपति शिवाजी भारत के इतिहास के उस महान नक्षत्र का नाम है, जिससे औरंगजेब सबसे अधिक भय खाता था। उसे रात […]

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