हमारा राष्ट्रीय जीवन और व्यक्तिगत जीवन हमारे व्यक्तिगत जीवन की भांति हमारा एक राष्ट्रीय जीवन भी होता है। जैसे हम व्यक्तिगत जीवन में कभी अपने शुभकार्यों के परिणाम के आने पर प्रसन्नता और अशुभकार्यों के परिणाम के आने पर अप्रसन्नता प्रकट करते हैं, वैसे ही हमारे राष्ट्रीय जीवन में भी कभी-कभी ऐसे क्षण आते हैं-जब […]
श्रेणी: संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा
पुन: मेवाड़ की ओर अब हम एक बार पुन: राजस्थान के मेवाड़ के उस गौरवशाली राजवंश की ओर चलते हैं जिसकी गौरव गाथाओं को सुन-सुनकर प्रत्येक भारतवासी के हृदय में देशभक्ति मचलने लगती है। जी हां, हमारा संकेत महाराणा राजवंश की ओर ही है। जिसके राणा प्रताप के विषय में 1913 ई. में अपनी पत्रिका […]
हिंदुत्व से मुस्लिम बादशाहों की घृणा डा. ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है-”विदेशी हमले के जवाब में मध्यकाल के हिंदुओं की व्यवस्थित सुसंस्कृत और राष्ट्रीय शक्ति का शानदार संघर्ष, देश की सांस्कृतिक अस्मिता को बचाने का प्रेरणा स्रोत रहेगा।” इस टिप्पणी के आलोक में या संदर्भ में हमें शाहिद रहीम साहब का यह कथन भी ध्यान […]
हिंदू प्रतिभा और पराक्रम मुगलकाल का विधिवत आरंभ अकबर के काल से माना जाता है। अकबर को भी उस समय हेमू जैसे वीर योद्घा के प्रबल प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। इस महान योद्घा के विषय में डा. आर.सी. मजूमदार लिखते हैं :- ”मध्यकालीन और आधुनिक इतिहासकारों ने हेमू के साथ न्याय नहीं किया […]
सृष्टि नियमों के विरूद्घ मिथ्या सिद्घांत स्वतंत्रता सच्चिदानंद ईश्वरीय व्यवस्था का स्वाभाविक विधान है। संसार में कोई भी जीव ऐसा नही है और ना ही कोई वनस्पति ऐसी है जो किसी अन्य जीव या वनस्पति के आधीन करके ईश्वर ने उत्पन्न किया हो। ‘जीवम् जीवस्य भोजनम्’ का त्रुटिपूर्ण अर्थ करके यह मिथ्या और भ्रामक प्रचार […]
बंदा बैरागी ने इतिहास को करवट दिला दी वीर सावरकर ने लिखा है-”सत्रहवीं शती के प्रारंभ से अर्थात प्राय: शिवाजी के जन्म से ही हिंदू मुसलमानों के संघर्ष में रणदेवता के निर्णय में एक आश्चर्यजनक परिवर्तन देखा जाने लगा। पहले जहां हिंदू मुस्लिम संघर्ष में अंतिम पराजय हिंदुओं की हुआ करती थी, वहीं अब ठीक […]
रोगग्रस्त हो गया दिल्ली दरबार बादशाह बहादुरशाह की मृत्यु के उपरांत दिल्ली दरबार उत्तराधिकार के युद्घ के कारण रोगग्रस्त हो गया। उसकी इस अवस्था का लाभ वीर वैरागी को मिला। मुसलमानों के लिए ‘गुरूभूमि’ पंजाब जिस प्रकार की चुनौती प्रस्तुत कर रही थी-वह दिल्ली के लिए गले की हड्डी बन चुकी थी। वीर वैरागी को […]
राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुओं का सैनिकीकरण बन्दा बैरागी और गुरू गोविन्दसिंह जैसे महापुरूष हिंदुओं का और सिखों का सैनिकीकरण करने के पक्षधर थे। उन्हीं का चिंतन प्रबल होते-होते आगे चलकर वीर सावरकर जैसे लोगों की लेखनी से जब मथा गया तो उसी से यह अमृतवाक्य हमें प्राप्त हुआ कि ‘राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुओं […]
यह सोच हमें छलती है यदि कोई हमसे यह कहे कि भारत के इतिहास में कहीं थोड़ा बहुत तथ्यात्मक परिवर्तन हो भी गया है तो इससे अंतर ही क्या आया है? वही विश्व है, वही धरती है, वही सूर्य है और वही चंद्रमा है। जब सब कुछ वही है तो इस बात को लेकर रोने […]
गुरूजी ने औरंगजेब के लिए एक पत्र लिखा जिस समय गुरू गोविन्द सिंह को अपने दो सुपुत्रों को दीवार में चुनवाने का समाचार मिला था, उस समय गुरूदेव रामकोट में थे। तब उन्होंने औरंगजेब के लिए एक पत्र लिखा। जिसे उन्होंने ‘शायरी’ के रूप में लिखा था उस पत्र के कुछ अंश इस प्रकार थे- […]