राकेश कुमार आर्यतराइन का युद्घक्षेत्र पुन: दो सेनाओं की भयंकर भिड़ंत का साक्षी बन रहा था। भारत के भविष्य और भाग्य के लिए यह युद्घ बहुत ही महत्वपूर्ण होने जा रहा था। भारत अपने महान पराक्रमी सम्राट के नेतृत्व में धर्मयुद्घ कर रहा था, जबकि विदेशी आततायी सेना अपने सुल्तान के नेतृत्व में भारत की […]
Category: संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा
पृथ्वीराज चौहान भारतीय त्याग, तपस्या, साधना और पौरूष का प्रतीक है। वह अपने गुणा- अवगुणों से तत्कालीन हिंदू राजाओं में से कई के लिए ईष्र्या और द्वेष का कारण बन गया था। कई इतिहासकारों ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान के एक से अधिक विवाहों के होने का उल्लेख किया है। अत: थोड़ी सी असावधानी से एक […]
पृथ्वीराज चौहान से पराजित होकर मौहम्मद गौरी रह-रहकर अपने दुर्भाग्य को कोस रहा था। गौरी स्वयं को बहुत ही अपमानित अनुभव कर रहा था। यह उसका सौभाग्य रहा और राजपूतों का प्रमाद कि जब वह युद्घक्षेत्र में घायल पड़ा, अपने जीवन की अंतिम घडिय़ां गिन रहा था, तब उसे अपनी ‘सद्गुण विकृति’ से ग्रस्त राजपूतों […]
विश्वके ऐसे कितने ही देश हैं जिन्होंने दिन के प्रकाश में अपनी स्वतंत्रता को खो दिया और ऐसा खोया कि फिर कभी उसे प्राप्त न कर सके। ऐसी स्थिति उन्हीं लोगों की या देशों की हुआ करती है, जो अपनी जिजीविषा और जिज्ञासा को या तो शांत कर लेते हैं या उसे खो बैठते हैं। […]
चित्तौड़ का नाम आते ही हर भारतीय का मस्तक गर्व से उन्नत हो जाता है। चित्तौड़ सचमुच भारत की अस्मिता से जुड़ा एक ऐसा स्मारक है जहां भारत के पौरूष और शौर्य ने मिलकर इसकी मिट्टी को चंदन बना दिया है। जी हां, जिसे अपने माथे से लगाकर हर भारतीय गौरवान्वित हो जाता है, हर […]
‘लीग ऑफ नेशन्स’ और भारतप्रथम विश्वयुद्घ 1914ई. से 1919 ई. तक चला। तब भारतवर्ष की राजनीतिक सत्ता अंग्रेजों के आधीन थी। विश्वयुद्घ की समाप्ति पर ‘लीग ऑफ नेशन्स’ की स्थापना की गयी। तब पराधीन भारत इस नये वैश्विक संगठन का सदस्य अपने बल पर नही बन सकता था, क्योंकि वह तब ‘राष्ट्र’ नही था। ऐसी […]
राज्योत्पत्ति का भारतीय सिद्घांतभारत के विषय में पिछले लेख में हम उल्लेख कर रहे थे कि भारत प्राचीनकाल से ही स्वतंत्रता प्रेमी देश रहा है। एक समय ऐसा था जब आर्यावर्त्त में राज्य और राजा नही होते थे। देश का शासन धर्म से शासित होता था। शनै:-शनै: इस व्यवस्था में विकार उत्पन्न हुआ और समाज […]
भारतीय संस्कृति का विदेशों में प्रचार-प्रसार मानवता का प्रचार-प्रसार था। मेधा के उपासक रहे हमारे पूर्वजों ने विदेशों को भी मेधा का उपासक बनाकर सुशिक्षित और सुसंस्कारित विश्व समाज के बनाने में सहयोग दिया। जीतकर भी विनम्र और मर्यादित रहना भारत की ही परंपरा है, अन्यथा तो लोग जीत में आपा खो देते हैं, पराजित […]
जब हम भारत वर्ष क अतीत क विषय मं जानन की इच्छा करत हैं, तो हमाराप्रचलित इतिहास हमं आज क खण्डित भारत की सीमाओं मं रहन क लिए ही बाध्यकरता है। इतिहास स शत्रुलखकों न उन गौरवपूर्ण पृष्ठों को विलुप्त कर दियाहै, जो ‘वृहत्तर-भारत’ का आभापूर्ण और शोभायमान चित्र प्रस्तुत कर सकतहैं।वृहत्तर भारत का वह […]
राजाओं की गौरवपूर्ण श्रंखला से कश्मीर का इतिहास भरा पड़ा है। जब हम कश्मीर के इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों का अवलोकन करते हैं तो ज्ञात होता है कि भारतीय संस्कृति को अपनी गौरव-गरिमा से लाभान्वित करने में कश्मीर के राजाओं ने महत्वपूर्ण योगदान किया। चूंकि यह योगदान अब से 1000 वर्ष पूर्व या उससे भी […]