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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

बलबन के काल में हिन्दू राजाओं ने अपनायी आपराधिक तटस्थता

युवा जुड़ें अपने गौरवपूर्ण अतीत के साथ मैं अपने सुबुद्घ पाठकों से विनम्र अनुरोध करूंगा कि वे ‘इतिहास बोध’ के लिए अपने अतीत के साथ दृढ़ता से जुडऩे का संकल्प लें। क्योंकि अपने अतीत के गौरव को आप जितना ही आज में पकडक़र खड़े होंगे, आपका आगत (भविष्य) भी उतना ही गौरवमय और उज्ज्वल बनेगा। […]

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लाखों स्वतंत्रता सैनानियों की हत्या कर दी थी बलबन ने

गयासुद्दीन बलबन गुलाम वंश का सबसे प्रमुख सुल्तान था। नासिरूद्दीन के शासन काल में वह मुख्य सेनापति था और तब उसकी शक्ति में पर्याप्त वृद्घि हो गयी थी। बदायूंनी का कथन तो यह भी है कि सुल्तान नासिरूद्दीन ने राज्यसिंहासन पर बैठते ही उलुघ खां की उपाधि बलबन को दी थी और इस उपाधि को […]

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आसाम, मध्य प्रदेश, दोआब में चलता रहा स्वतंत्रता संघर्ष

महाभारत के वनपर्व में वर्णित नलोपाख्यान राजा नल के लिए आता है। उस समय इस राजा की राजधानी का नाम नलपुर था, जो कालांतर में नलपुर से नरवर शब्द से रूढ़ हो गयी। इसी नरवर में एक प्राचीन दुर्ग भी विद्यमान है, जो कि यहां की एक पहाड़ी पर स्थित है। इसलिए इस शहर को […]

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उलुध खां को यदुवंशी मेवों और हिन्दू वीर गक्खरों ने चबाए थे नाकों चने

जो जातियां विदेशी आक्रांताओं को लूट-पीटकर जंगलों में छिप जाती थीं, या जंगलों की ओर भाग जाती थीं, उसे विदेशी (वास्तविक लुटेरों) ने ‘लुटेरी जाति’ कहकर संबोधित किया और उसे ऐसा ही इतिहास में प्रसिद्घ किया। 1936 ई. में वर्तमान भारत को उसके अतीत से काटने के लिए एक ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ नामक संगठन ने […]

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रणथम्भौर का हिन्दूवीर शासक नाहर देव (जैत्रसिंह)

ऋषिजीवन की एकघटना: महर्षि दयानंद सरस्वती के जीवन की एक घटना है। महर्षि हरिद्वार के कुम्भ मेले में एक स्थान पर टिके हुए थे। उनके पास कुछ लोग बैठे थे, जिनमें से दो चार मुसलमान भी थे। उन लोगों का परस्पर वार्तालाप हो रहा था। तब एक मुसलमान ने किसी हिंदू से कहा कि तुम […]

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दलकी-मलकी की दलदल में फंस गया था बलबन

युग धर्म में आया परिवर्तनजैसी परिस्थितियां होती हैं-वैसा ही युग धर्म बन जाया करता है। जब भारत वर्ष में शांति का काल था, सर्वत्र उन्नति और आत्मविकास की बातें होती थीं तो यही देश जीवेम् शरद: शतं-का उपासक था। तब यहां शतायु होने का आशीर्वाद मिलता भी था और दिया भी जाता था। परंतु जब […]

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रजिया के शासन काल में भी जलती रही स्वतंत्रता की ज्योति

रजिया भारतवर्ष के तुर्क गुलाम वंश की नही अपितु पूरी सल्तनत काल में हुई एकमात्र मुस्लिम महिला सुल्तान है। कुछ लोगों ने हिंदू धर्म की अपेक्षा इस्लाम को अधिक प्रगतिशील माना है। परंतु इस कथित ‘प्रगतिशील धर्म’ ने अपनी इस महिला सुल्तान को अपना पूर्ण सहयोग और समर्थन प्रदान नही किया। फलस्वरूप ये मुस्लिम महिला […]

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अल्तमश के काल में धधकती रही सर्वत्र क्रांति की ज्वाला

क्या कहते हैं विदेशी विद्वान हमारे विषय मेंभारतीयों के विषय में प्रो. मैक्समूलर ने लिखा है:-‘‘मुस्लिम शासन के अत्याचार और वीभत्सता के वर्णन पढक़र मैं यही कह सकता हूं कि मुझे आश्चर्य है कि इतना सब होने पर भी हिंदुओं के चरित्र में उनके स्वाभाविक सदगुण एवं सच्चाई बनी रही।’’यहां मैक्समूलर ने मुस्लिम अत्याचारों की […]

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स्वतंत्रता के महायोद्घा:उदयसिंह, भरतपाल, वाग्भट, जैत्रसिंह एवं वीर नारायण

पिछले पृष्ठों पर हमने शाहिद रहीम साहब का उद्घरण प्रस्तुत किया था, जिसमें उन्होंने भारत के आर्यावत्र्तीय स्वरूप का उल्लेख किया है। अपने अतीत के गौरवमयी पृष्ठों के आख्यान के लिए उनका वह उद्घरण बड़ा ही अर्थपूर्ण और तर्कपूर्ण है। उनके इस तथ्य की पुष्टिके लिए मनुस्मृति (1.2.22.29) का यह श्लोक भी ध्यातव्य है- आ […]

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अल्तमश को गद्दी पर बैठते ही मिली चुनौती

प्रसिद्घ इतिहासकार एच. जी. वैल्स ने कहा है कि-‘‘शिक्षा समाज के हित का एक सामूहिक कार्य है, केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नही है। मानव इतिहास शिक्षा और विनाश के बीच होने वाली दौड़ है।’’इस इतिहासकार का यह कथन विचार करने योग्य है कि मानव इतिहास शिक्षा और विनाश के बीच होने वाली दौड़ है। भारत […]

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