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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

प्रांतीय स्तर पर भी निरंतर जारी रहा स्वतंत्रता संग्राम

रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं….. राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी पुस्तक ‘संस्कृति के चार अध्याय’ में लिखा है-‘‘लड़ाई मारकाट के दृश्य तो हिंदुओं ने बहुत देखे थे। परंतु उन्हें सपने में भी उम्मीद न थी कि संसार में एकाध जाति ऐसी हो सकती है, जो मूर्तियों को तोडऩे और मंदिरों को भ्रष्ट करने […]

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स्वतंत्रता के परमोपासक महाराणा मोकल और कुम्भा

वास्तव में  हम 1400 ई. से 1526 ई. तक (जब तक कि बाबर न आ गया था) के काल में उत्तर भारत में अपने-अपने साम्राज्य विस्तार के लिए विभिन्न शक्तियों के मध्य हो रहे संघर्ष की स्थिति देखते हैं। इसी संघर्ष की स्थिति से गुजरात, मालवा और मेवाड़ निकल रहे थे। ये एक दूसरे से आगे निकलने और एक दूसरे […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

तब हम बुद्घ के नही युद्घ के उपासक बन इतिहास बना रहे थे

जिस प्रकार कटेहर ने ताजुल मुल्क और उसके सुल्तान को आनंद की नींद नही सोने दिया और लगभग हर वर्ष कटेहर के स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए दिल्ली के सुल्तान को भारी सेना भेज-भेजकर अपनी विवशता का प्रदर्शन करना पड़ा। वही स्थिति दोआब ने भी सुल्तान के लिए बनाये रखी। पिछले पृष्ठों पर भी […]

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कटेहर नरेश हरिसिंह ने मनवाया सुल्तानों सेे अपनी वीरता का लोहा

स्वतंत्रता, हमारी सांस्कृतिक धरोहर अग्नि का स्वाभाविक गुण (धर्म) जलाना है, इसलिए अग्नि से किसी को ये कहना नही पड़ता कि-‘हे, अग्निदेवता!  आप लकड़ी को जला डालो।’ इसके विपरीत बिना कहे अग्नि स्वयं ही लकड़ी को जला डालती है। इसी प्रकार भगवान की करूणा है, जिसे मांगा नही जाता। वह स्वयं ही हमें अपनी करूणा […]

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तुगलक वंश के अंतिम क्षणों तक सल्तनत को मिली हिंदू-चुनौती

हमारे दुर्भाग्य का दु:खद पहलू हम भारतीयों के दुर्भाग्य का सबसे दु:खद पहलू यह है कि हमारे देश का प्रचलित इतिहास इस देश की माटी से हमें नही जोड़ता। विदेशी इतिहासकारों ने इस पावन देश की पावन माटी से किसका संबंध है, यह प्रश्न भी उलझा दिया है-ये कह कर कि यहां जो भी लोग […]

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भारत में सर्वत्र हुआ था तैमूर का व्यापक प्रतिरोध

दिल्ली यूं तो अब से पूर्व कई विदेशी आक्रांता या बलात् अधिकार कर दिल्ली के सुल्तान बन बैठे शासकों के आतंक और अत्याचार का शिकार कई बार बन चुकी थी, पर इस बार का विदेशी आक्रांता और भी अधिक क्रूरता की वर्षा करने के लिए आ रहा था। हिंदू प्रतिरोध यद्यपि निरंतर जारी था, परंतु […]

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हिन्दू क्रांति के बन गये थे विभिन्न केन्द्र

1857 ई. की क्रांति की बात तो हमने सुनी है कि उस समय किस प्रकार क्रांति के विभिन्न केन्द्र देश में बन गये थे? इस रोमांचकारी घटना से भी हम लोग परिचित ना होते, यदि उसके विषय में स्वातंत्रय वीर सावरकर जैसे लोग हमें ना बताते कि यह विद्रोह नही, अपितु भारतीयों का स्वातंत्रय समर […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

हिन्दू शक्ति ने बढ़ाई दिल्ली की मुस्लिम राजनीति में रूचि

जब किसी मुस्लिम राजवंश का पतन होता था तो स्वाभाविक रूप से अंतिम समय के सुल्तानों का अपने शासन पर नियंत्रण शिथिल हो जाता था। शासन की इस शिथिलता का लाभ हमारे तत्कालीन हिंदू वीर अवश्य उठाते थे। यह क्रम 1206 ई. से लेकर अब तक (तुगलक वंश के अंतिम दिनों तक) यथावत चला आ […]

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फीरोजशाह तुगलक के काल में भी चले स्वतंत्रता आंदोलन

सिमट गया  साम्राज्य अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में सल्तनत साम्राज्य पर्याप्त विस्तार ले गया था, वह तुगलक काल में सिमटकर छोटा गया। अफगानिस्तान और आज के पाकिस्तान का बहुत बड़ा भाग, जम्मू कश्मीर, राजस्थान का बहुत बड़ा भाग, उत्तराखण्ड, नेपाल, भूटान, सिक्किम, बंगाल और सारा पूर्वाेत्तर भारत, उड़ीसा, तेलंगाना, आंध्र और कर्नाटक महाराष्ट्र से […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

कराजल ने ली एक लाख शत्रुओं की बलि, और जैसलमेर हुआ स्वतंत्र

इस्लामी लेखकों की विश्वसनीयता?सल्तनत काल में मुस्लिम लेखकों को हर क्षण अपने प्राणों की चिंता रहती थी। सच कहने या लिखने पर उनकी आत्मा भी कांप उठती थी। क्योंकि वह अपने नायकों की क्रूरता से इतने भयभीत रहते थे कि पता नही कब किस बात पर उसका क्रोध उनके प्राण ले ले? वैसे भी मुस्लिम […]

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