गीता का दसवां अध्याय और विश्व समाज शस्त्रों में वज्र मैं हूं, गायों में कामधेनु मैं हूं, प्रजनन में कामदेव मैं हूं, सर्पों में वासुकि मैं हूं। यहां श्रीकृष्णजी किसी भी जाति में या पदार्थादि में सर्वोत्कृष्ट को अपना रूप बता रहे हैं। सर्वोत्कृष्ट के आते ही छोटे उसमें अपने आप आ जाते हैं। जैसे […]
Category: गीता का कर्मयोग और आज का विश्व
गीता का दसवां अध्याय और विश्व समाज ऐसी उत्कृष्ट श्रद्घाभावना के साथ जो लोग ईश भजन करते हैं-उनके लिए गीता का कहना है कि उन्हें मैं (भगवान) बुद्घि भी ऐसी प्रदान करता हूं कि जिसके द्वारा वे मेरे पास ही पहुंच जाते हैं। उन पर अपनी अनुकम्पा करने के लिए मैं उनके आत्मा के भाव […]
गीता का दसवां अध्याय और विश्व समाज ”पत्ते-पत्ते की कतरन न्यारी तेरे हाथ कतरनी कहीं नहीं-” कवि ने जब ये पंक्तियां लिखी होंगी तो उसने भगवान (प्रकत्र्ता) और प्रकृति को और उनके सम्बन्ध को बड़ी गहराई से पढ़ा व समझा होगा। हर पत्ते की कतरन न्यारी -न्यारी बनाने वाला अवश्य कोई है-पर वह दिखायी नहीं […]
गीता का नौवां अध्याय और विश्व समाज अन्य देवोपासक और भक्तिमार्गी पीछे हम कह रहे थे कि गीता बहुदेवतावाद की विरोधी है और एकेश्वरवाद की समर्थक है। यहां पुन: उसी बात को श्रीकृष्ण जी दोहरा रहे हैं, पर शब्द कुछ दूसरे हैं। जिन्हें सुनकर लगता है कि वे बहुदेवतावाद को बढ़ावा दे रहे हैं। वह […]
गीता का नौवां अध्याय और विश्व समाज इस प्रकार ईश्वर को एक देशीय न मानना स्वयं अपने बौद्घिक विकास के लिए भी आवश्यक है। आज का मनुष्य धर्म में भी व्यापार करता है। इसलिए हम उसे व्यापार में मुनाफे का एक सौदा बता रहे हैं कि वह ईश्वर को सर्वव्यापक सर्वान्तर्यामी माने और परिणाम में […]
गीता का नौवां अध्याय और विश्व समाज इससे अगले श्लोक में श्रीकृष्णजी कहते हैं कि इस संसार में लोग किसी को ब्राह्मïण, किसी को बड़ा, किसी को चाण्डाल तो किसी को छोटा कहते हैं। जबकि सभी मनुष्यों में ‘मैं’ ही समाया होता हूं। इसका भाव यह है कि आत्मा को ही परमात्मा मानने का व्यवहार […]
गीता का नौवां अध्याय और विश्व समाज गुरू अद्भुत दर्शनीय मिले अर्जुन हुआ निहाल। अतुलित ज्ञान गाम्भीर्य व्यक्तित्व बड़ा विशाल।। ऐसे अद्भुत दर्शनीय गुरू श्रीकृष्ण जी अपने शिष्य अर्जुन को बताने लगे कि अर्जुन! अब मैं तुझे पवित्रतम और अति उत्तम प्रत्यक्ष फल देने वाली, धर्म के सर्वथा अनुकूल और साधन करने में बड़ी सुगम […]
गीता का आठवां अध्याय और विश्व समाज उत्तरायण प्रकाश है दक्षिणायन अंधकार। शुक्लपक्ष प्रकाश है कृष्णपक्ष अंधकार।। उत्तरायण प्रकाशकाल है तो दक्षिणायन अंधकारकाल है। इन दोनों प्रकार के मार्गों को जीवन पर लाकर तोलते समय ध्यान देना चाहिए कि शुक्ल पक्ष और उत्तरायण काल का अर्थ प्रकाशमान से है। अत: जिसका जीवन शुभ कार्मों से […]
गीता का आठवां अध्याय और विश्व समाज मोक्ष कब तक मिला रहता है अब हम इस विषय पर विचार करते हैं कि मनुष्य को मोक्ष कब मिलता है? गीता के आठवें अध्याय में ही इस पर प्रकाश डालते हुए योगीराज श्रीकृष्णजी ने स्पष्ट किया कि ब्रह्म का एक दिन मानव के एक हजार युगों का […]
गीता का आठवां अध्याय और विश्व समाज परमपुरूष अर्थात परमात्मा को पाने का सच्चा साधन योगेश्वर श्रीकृष्ण ‘अभ्यास योग’ को ही बताते हैं। वह कहते हैं कि जो साधक ‘अभ्यास योग’ के माध्यम से चित्त को एकाग्र कर उसे कहीं दूसरी जगह भागने नहीं देता है-वह निरन्तर चिन्तन करते रहने से दिव्य परमपुरूष को पा […]