गीता का पंद्रहवां अध्याय और विश्व समाज जो लोग अपनी ज्ञान रूपी खडग़ से या तलवार से संसार वृक्ष की जड़ों को काट लेते हैं और विषयों के विशाल भ्रमचक्र से मुक्त हो जाते हैं- उनके लिए गीता कहती है कि ऐसे लोग अभिमान और मोह से मुक्त हो गये हैं, उन्होंने आसक्ति के दोषों […]
Category: गीता का कर्मयोग और आज का विश्व
गीता का पंद्रहवां अध्याय और विश्व समाज यह जो प्रकृति निर्मित भौतिक संसार हमें दिखायी देता है-यह नाशवान है। इसका नाश होना निश्चित है। यही कारण है कि गीता के पन्द्रहवें अध्याय में प्रकृति को ‘क्षर’ कहा गया है। इससे जो कुछ बनता है वह क्षरण को प्राप्त होता है। बच्चा जन्म लेता है, फिर […]
गीता का चौदहवां अध्याय और विश्व समाज क्या है त्रिगुणातीत? जब श्रीकृष्णजी ने त्रिगुणों की चर्चा की और लगभग त्रिगुणातीत बनकर आत्म विजय के मार्ग को अपनाकर जीवन को उन्नत बनाने का प्रस्ताव अर्जुन के सामने रखा तो अर्जुन की जिज्ञासा मुखरित हो उठी। उसने अन्त:प्रेरणा से प्रेरित होकर श्रीकृष्णजी के सामने अपनी जिज्ञासा प्रकट […]
गीता का चौदहवां अध्याय और विश्व समाज मलीन बस्तियों में रहने वाले लोगों को हमें उनके भाग्य भरोसे भी नहीं छोडऩा चाहिए। उनके उत्थान व कल्याण के लिए सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर कार्य होते रहने चाहिएं। उनके विषय में हमने जो कुछ कहा है वह उनकी दयनीय अवस्था को ज्यों का त्यों बनाये […]
गीता का चौदहवां अध्याय और विश्व समाज श्रीकृष्णजी कहते हैं कि प्रकृति से उत्पन्न होने वाले सत्व, रज, तम-गुण इस अविनाशी देही को अर्थात आत्मा को शरीर में या क्षेत्र में बांध लेते हैं। इससे एक बात स्पष्ट होती है कि संसार की हर वस्तु में ब्रह्म का बीज है। वह बीज ही हमें विकसित […]
गीता का चौदहवां अध्याय और विश्व समाज गीता निष्कामता और फलासक्ति के त्याग को अपना प्रतिपाद्य विषय लेकर चल रही है। हर अध्याय का निचोड़ गीता के इसी प्रतिपाद्य विषय के आसपास ही आकर ठहरता है। अब जो विषय चल रहा है, वह यही है कि- रूह अलग है देह से देह करे व्यापार। खेत […]
गीता का तेरहवां अध्याय और विश्व समाज संसार के जितने भर भी चमकते हुए पदार्थ हैं-उनमें वह परमपिता परमेश्वर ज्योति की ज्योति अर्थात परम-ज्योति बनकर विराजमान है। यही वेद कहता है -‘ज्योतिषां ज्योतिरेकम्।’ वह अंधकार से परे है-वेद भी कहता है-‘तम स: परस्तात्’- श्रीकृष्ण जी भी उस ‘ज्ञेय’ का अर्जुन को कुछ ऐसा ही पता […]
गीता का तेरहवां अध्याय और विश्व समाज ब्रहमाण्ड का क्षेत्रज्ञ कौन है? अब श्रीकृष्णजी कहते हैं कि अर्जुन! अब मैं तुझे यह बतलाऊं कि ‘ज्ञेय’ क्या है? अर्थात जानने योग्य क्या है? वह क्या है जिसे जान लेने पर अमृत की प्राप्ति की जाती है? इस ‘ज्ञेय’ के विषय में बताते हुए श्रीकृष्णजी कहते हैं […]
गीता का तेरहवां अध्याय और विश्व समाज इस प्रकार श्रीकृष्णजी ने इन चौबीस तत्वों से ब्रह्माण्ड तथा पिण्ड के क्षेत्र को बना हुआ माना है। जैसे खेत में खरपतवार उग आता है वैसे ही इच्छा, द्वेष, सुख-दु:खादि पिण्ड रूपी क्षेत्र केे खरपतवार या विकार हैं। यह खरपतवार पिण्ड रूपी क्षेत्र की सद्भावों की फसल को […]
गीता का तेरहवां अध्याय और विश्व समाज जैसे एक खेत का स्वामी अपने खेत के कोने-कोने से परिचित होता है कि खेत में कहां कुंआ है? कहां उसमें ऊंचाई है? कहां नीचा है? उसकी मिट्टी कैसी है? उसमें कौन सी फसल बोयी जानी उचित होगी?-इत्यादि। वैसे ही हममें से अधिकांश लोग संसार में शरीर धारी […]