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पर्यावरण

उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन तथा जलवैज्ञानिकों की रिपोर्ट

लेखक:- डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-3 भारत के लगभग 5 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में स्थित उत्तर पश्चिम से उत्तर पूर्व तक फैली हिमालय की पर्वत शृंखलाएं न केवल प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल, वनस्पति‚ वन्यजीव, खनिज पदार्थ जड़ी-बूटियों का विशाल भंडार हैं, बल्कि देश में होने वाली मानसूनी वर्षा तथा तथा विभिन्न ऋतुओं […]

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पर्यावरण

*बन्दर कभी बीमार नहीं होता*

किसी भी चिड़िया को डायबिटीज नहीं होती। किसी भी बन्दर को हार्ट अटैक नहीं आता । कोई भी जानवर न तो आयोडीन नमक खाता है और न ब्रश करता है, फिर भी किसी को थायराइड नहीं होता और न दांत खराब होता है । बन्दर शरीर संरचना में मनुष्य के सबसे नजदीक है, बस बंदर […]

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पर्यावरण

पहाड़ मनोरंजन के लिए नहीं

माना कि भारत का संविधान हर नागरिक को मौलिक अधिकारों के तहत देश में कहीं भी घूमने फिरने पर्यटन की आजादी देता है |संसार के पुस्तकालय की सबसे प्राचीन पुस्तक सृष्टि का सविधान वेद कहता है…….. उपह्वरे च गिरीणां संगमे च नदीनां | धिया विप्रो अजायत || ऋग्वेद 8 |6 |28 “पहाड़ों की गुफाओं में […]

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पर्यावरण

चक्रपाणि मिश्र के अनुसार जलाशयों के विविध प्रकार

लेखक:- डॉ. मोहन चंद तिवारी चक्रपाणि मिश्र ने ‘विश्वल्लभवृक्षायुर्वेद’ नामक अपने ग्रन्थ में कूप,वापी,सरोवर, तालाब‚ कुण्ड‚ महातड़ाग आदि अनेक जलाश्रय निकायों की निर्माण पद्धति तथा उनके विविध प्रकारों का वर्णन किया है,जो वर्त्तमान सन्दर्भ में परंपरागत जलनिकायों के जलवैज्ञानिक स्वरूप को जानने और समझने की दृष्टि से भी बहुत उपयोगी है. यहां बताना चाहेंगे कि […]

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पर्यावरण

जलाशय निर्माण में वास्तु संरचना और ग्रह-नक्षत्रों की भूमिका

लेखक:- डॉ. मोहन चंद तिवारी हमारे देश के प्राचीन जल वैज्ञानिकों ने वास्तुशास्त्र की दृष्टि से भी जलाशय निर्माण के सम्बन्ध में विशेष मान्यताएं स्थापित की हैं. हालांकि इस सम्बंध में प्राचीन आचार्यों और वास्तु शास्त्र के विद्वानों के अलग अलग मत और सिद्धांत हैं. मूल अवधारणा यह है कि जिस स्थान पर जल के […]

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पर्यावरण

“बृहत्संहिता में जलाशय निर्माण की पारम्परिक तकनीक”

लेखक:-डॉ. मोहन चंद तिवारी पिछले लेखों में बताया गया है कि एक पर्यावरणवादी जलवैज्ञानिक के रूप में आचार्य वराहमिहिर द्वारा किस प्रकार से वृक्ष-वनस्पतियों की निशानदेही करते हुए, जलाशय के उत्खनन स्थानों को चिह्नित करने के वैज्ञानिक तरीके आविष्कृत किए गए और उत्खनन के दौरान भूमिगत जल को ऊपर उठाने वाले जीवजंतुओं के बारे में […]

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पर्यावरण

जैव विविधता के संरक्षण के बिना विकास का कोई महत्व नहीं है

<img src="https://www.ugtabharat.com/wp-content/uploads/2022/06/images-2022-06-26T073234.870-300×158.jpeg" alt="" width="300" height="158" class="alignright size-medium wp-image-59797" / प्रह्लाद सबनानी  जैव विविधता का संरक्षण करना अब बहुत जरूरी हो गया है। हमारा जीवन प्रकृति का अनुपम उपहार है। अत: पेड़-पौधे, अनेक प्रकार के जीव-जंतु, मिट्टी, हवा, पानी, महासागर-पठार, समुद्र-नदियां इन सभी का संरक्षण जरूरी है क्योंकि ये सभी हमारे अस्तित्व एवं विकास के लिए […]

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पर्यावरण

वैश्विक तापमान में वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप मौसमी परिवर्तन

दो बूंद गंगाजल अरुण तिवारी (वैश्विक तापमान में वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप मौसमी परिवर्तन। निःसंदेह, वृद्धि और परिवर्तन के कारण स्थानीय भी हैं, किंतु राजसत्ता अभी भी ऐसे कारणों को राजनीति और अर्थशास्त्र के फौरी लाभ के तराजू पर तौलकर मुनाफे की बंदरबांट में मगन दिखाई दे रही है। जन-जागरण के सरकारी व स्वयंसेवी प्रयासों […]

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पर्यावरण

मनुष्य को प्रकृति के साथ जोड़ना समय की आवश्यकता

प्रह्लाद सबनानी  शहरों को प्लास्टिक मुक्त करना भी पर्यावरण में सुधार का एक अच्छा तरीका है, और संघ जैसे स्वयंसेवी संगठन, समाज के विभिन्न वर्गों को अपने साथ लेकर, देश के पर्यावरण को शुद्ध करने हेतु प्रयास कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य भारत प्रांत द्वारा पर्यावरण में सुधार के उद्देश्य से “प्लास्टिक […]

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पर्यावरण

वराहमिहिर की ‘बृहत्संहिता’ में भूमिगत जलशिराओं का सिद्धान्त”

लेखक:- डॉ. मोहन चंद तिवारी (12मार्च, 2014 को ‘उत्तराखंड संस्कृत अकादमी’, हरिद्वार द्वारा ‘आईआईटी’ रुड़की में आयोजित विज्ञान से जुड़े छात्रों और जलविज्ञान के अनुसंधानकर्ता विद्वानों के समक्ष मेरे द्वारा दिए गए वक्तव्य ‘प्राचीन भारत में जलविज्ञान‚ जलसंरक्षण और जलप्रबंधन’ से सम्बद्ध चर्चित और संशोधित लेख) प्राचीन काल के कुएं बावड़ियां,नौले आदि जो आज भी […]

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