महर्षि दयानंद ने कहा था- ”यदि अब भी यज्ञों का प्रचार-प्रसार हो जाए तो राष्ट्र और विश्व पुन: समृद्घिशाली व ऐश्वर्यों से पूरित हो जाएगा।” इस बात से लगता है कि भारत सरकार से पहले इसे विश्व ने समझ लिया है। देखिये-फ्रांसीसी वैज्ञानिक प्रो. टिलवट ने कहा है- ”जलती हुई खाण्ड के धुएं में पर्यावरण […]
श्रेणी: पर्यावरण
अन्नोत्पादन से कितने ही जीवों की हत्या हलादि से होती है। वनों का संकुचन होता है। फलत: पर्यावरण का संकट आ खड़ा होता है। इसलिए प्राकृतिक और स्वाभाविक रूप से जो कुछ हमें मिल रहा है वही हमारा स्वाभाविक भोजन है। अत: अन्न से रोटी बनाना और उसे भोजन में ग्रहण करना तो एक बनावट […]
समय सिंह मीना हाल ही में नाभिकीय हथियारों को प्रतिबंधित करने के लिए बाध्यकारी समझौते के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित बहुपक्षीय वार्ता जून–जुलाई २०१७ तक समझौते का प्रारूप विकसित कर लेने की उम्मीदों के साथ समाप्त हो गई। यह वार्ता संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रथम समिति, जो कि नि:शस्त्रीकरण तथा […]
हमारा तो पूरा प्राचीन संस्कृत साहित्य वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत और पुराण, सभी नदियों की बहती संगीतमयी स्वरलहरियों की गूंज में ऋषि-मुनियों ने रचे। आज हमारे नीति और प्रकृति को बचाने के जितने भी उपाय हैं, उनके संस्कार हमने इन्हीं ग्रंथों से लिए हैं। इनके प्रति समाज का जो भी सम्मान भाव है, वह इसी […]
अरविंद कुमार सिंह पिछले दिनों परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा मुंबई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) में आयोजित पांच दिवसीय कार्यशाला में भारत के परमाणु वैज्ञानिकों के इस दावे पर– कि हमारे यहां किसी भी परमाणु हादसे की आशंका बेहद कम है और देश के परमाणु रिएक्टर बेहद सुरक्षित हैं– भरोसा करना इसलिए कठिन है […]
अशोक प्रवृद्ध पूर्णत: मानसून पर निर्भर हमारे देश भारत में वर्षा अर्थात बारिश को सदैव से ही ईश्वर की वरदान के रूप में देखा जाता रहा है, परन्तु अब बारिश के बाद शहरों व गांवों में जो हालात पैदा होने लगे हैं उससे यह वरदान अभिशाप साबित होने लगा है और बारिश होने के साथ […]