1990 के पश्चात वैश्विक तापवृद्घि निरंतर बढ़ती जा रही है। 2003 में तो यूरोप में ‘लू’ के प्रकोप से लगभग 35,000 लोगों की मृत्यु हो गयी थी। इस प्रकार की तापवृद्घि के परिणामस्वरूप धु्रवों की बरफ पिछल रही है और पर्वतों पर ग्लेशियर घट रहे हैं। जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। समुद्री स्तर […]
Category: पर्यावरण
प्रमोद भार्गव संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 19.5 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं। दुनिया के कुपोषितों में यह अनुपात करीब 25 प्रतिशत है। यदि बच्चों के स्तर पर बात करें तो देश के 10 बच्चों में से चार कुपोषित हैं। यह स्थिति उस कृषि-प्रधान देश की है, जो खाद्यान्न उत्पादन […]
ओ३म् ========== वैदिक धर्म ही एक मात्र ऐसा धर्म है जिसके पास परमात्मा का सृष्टि के आरम्भ में दिया हुआ वेद ज्ञान उपलब्ध है। सृष्टि की उत्पत्ति 1.96 अरब वर्ष पूर्व तिब्बत में हुई थी। परमात्मा ने प्रथम बार अमैथुनी सृष्टि करके स्त्री व पुरुषों को युवावस्था में उत्पन्न किया था। यह मान्यता ऋषि दयानन्द […]
मौजूदा विकास बनाम पर्यावरण
राजू पांडेय वर्ष 2018 के द्विवार्षिक ‘एनवायरनमेंटल परफॉर्मेन्स इंडेक्स’ में भारत 180 देशों में 177वें स्थान पर रहा। दो वर्ष पहले हम 141वें स्थान पर थे। रिपोर्ट यह बताती है कि सरकार के प्रयास ठोस र्इंधन, कोयला और फसल अवशेष को जलाने से उत्पन्न वायु प्रदूषण को रोकने में नाकाफी रहे हैं। मोटर वाहनों द्वारा […]
जीने का अधिकार और पानी का प्रश्न
रमेश सर्राफ धमोरा जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मनुष्य चांद से लेकर मंगल तक की सतह पर पानी तलाशने की कवायद में लगा है, ताकि वहां जीवन की संभावना तलाशी जा सके। पानी की महत्ता को हमारे पूर्वज भी अच्छी तरह जानते थे। जीवन के लिए इसकी आवश्यकता और […]
धुंध के लिए सिर्फ किसान जिम्मेवार नहीं
पूरे उत्तर भारत को घनी धुंध ने घेर रखा है और इसने लोगों का जीना दूभर कर दिया है। इसकी चपेट में पड़ोसी पाकिस्तान भी है। गांव के मुकाबले शहरों में रहने वालों की मुश्किलें ज्यादा बढ़ी हैं। सडक़ों पर निकलना मुश्किल है। रेलगाडिय़ां घंटों विलंब से चल रही हैं। दूसरी तरफ दिल्ली से उत्तर […]
सुरेश उपाध्याय आधुनिकता की दौड़ में जब योजनाओं को कुछ ज्यादा व्यवस्थित होना चाहिए था, तब सब कुछ राम भरोसे छोड़ दिया गया। मलमूत्र, औद्योगिक कचरे और तमाम तरह के अवशिष्टों ने खान नदी को तबाह कर डाला है। नदी जलसंग्रहण क्षेत्र में पेड़ों की कटाई की गई और जहां भी लोगों ने चाहा, मनमाने […]
आज हमें देश के सामने खड़ी चुनौतियों के नये -नये स्वरूपों पर चिंतन करना है। प्रमादी, आलसी, निष्क्रिय होकर किसी ‘अवतार’ की प्रतीक्षा में नहीं बैठना है, अपितु क्रियात्मक रूप में कार्य करना है। क्रियात्मक रूप में जिसका वर्तमान सो जाता है, उसका भविष्य उजड़ जाया करता है। इसलिए हमें सोना नहीं है। हमें कर्मठता […]
अकर्मण्यता हमारा लक्ष्य न हो प्रकृति अपना कार्य कर रही है, इतिहास अपना कार्य कर रहा है। कालचक्र अपनी गति से घूम रहा है। तीनों बातें भारत के पक्ष में हैं। किंतु इसका अभिप्राय यह कदापि नहीं है कि हम हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाएं या अकर्मण्यता को गले लगाकर अपने दुर्भाग्य की पटकथा […]
विश्व में ईसाइयत और इस्लाम के मध्य उभरता अंतद्र्वन्द हमारा ध्यान इन जातियों के पतन की ओर दिलाता है। इतिहास ने ‘ओसामा बिन लादेन’ और ‘जार्ज डब्ल्यू बुश’ को पतन के मुखौटे के रूप में तैयार कर दिया है। इनके पश्चात इनके उत्तराधिकारी आते रहेंगे और पतन की दलदल में ये और भी धंसते चले […]