यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक परिवार है तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का छात्र समूह इस परिवार का युवावर्ग है। इस युववर्ग के आदर्श स्वामी विवेकानंद हैं। संघ ने अपने परिवार के इस युवा सदस्य को जो सिखाया है, उसका मूल यही है – काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी […]
Category: शिक्षा/रोजगार
सिमरन सहनी मुजफ्फरपुर, बिहार हम वैश्विक स्तर पर सुपर पावर बनने की होड़ में हैं. लेकिन लैंगिक असमानता आज भी हमारे समक्ष चुनौतियों के रूप में मौजूद है. यहां तक कि देश में कामकाजी शहरी महिलाएं भी लैंगिक पूर्वाग्रह व असमानता का शिकार बन रही हैं जबकि देश की प्रगति में महिला श्रमबल का बहुत […]
आर्यसमाज और भारतीय शिक्षा पद्धति
लेखक – डॉ० भवानीलाल भारतीय अजमेर स्त्रोत – सुधारक (गुरुकुल झज्जर का मासिक पत्र) जुलाई 1976 प्रस्तुतकर्ता – अमित सिवाहा लाला लाजपतराय ने अपनी पुस्तक ‘ दुःखी भारत ‘ ( Unhappy India ) में यह बताया है कि अंग्रेजों के भारत में आगमन से पूर्व भारत में एक व्यवस्थित शिक्षा प्रणाली प्रचलित थी । गांव […]
सारी बुराईयों का मार्ग – ‘वर्तमान शिक्षा’ विद्यार्थी सत्यपाल आर्य आर्ष गुरुकुल टटेसर जोन्ती – दिल्ली- 41 स्त्रोत – समाज संदेश जुलाई 1974 यह दुःख का विषय है कि हमारा आजका विद्य जीवन बड़ा ही विकृत और अस्वस्थ रूप लिए है । आज विद्यार्थियों को जो शिक्षा प्रदान की जाती है. वह कोरे पुस्तक ज्ञान […]
भारतीय शिक्षा नीति : दिशा और दशा
रामेश्वर मिश्र पंकज पूरी दुनिया में शिक्षा का लक्ष्य यही है कि पूर्वजों द्वारा संचित ज्ञान राशि को नई पीढ़ी को सौंप दिया जाए। इसके लिए सबसे पहले ज्ञान के विविध रूपों की स्मृति तथा बोध और संभावनाओं को नई पीढ़ी के मन बुद्धि और चित्त पर अंकित कराना होता है और उसके लिए अभ्यास […]
दुलमेरा, लूणकरणसर बीकानेर, राजस्थान डिजिटल टेक्नोलॉजी की धमक के बावजूद कुछ चीजें ऐसी हैं जिनका महत्त्व कभी ख़त्म नहीं होगा. इन्हीं में एक लाइब्रेरी यानि पुस्तकालय भी हैं. जिनका हमारे जीवन में बहुत ही महत्व है और सदैव रहेगा. दरअसल इसके पीछे सबसे बड़ी वजह वहां सभी प्रकार की पुस्तकों का उपलब्ध होना है. कई […]
शिक्षा को नेचुरल ही रहने दो*
कोचिंग का इंजेक्शन लगा कर लौकी की तरह भावी इंजीनियर और डॉक्टर की पैदावार की जाती है। अब नेचुरल देसी नस्ल छोटी रह जाती है जो तनाव में आकर या तो मुरझा जाती है या बाजार में बिकने लायक ही नही रहती। अब मैं आपको बीस साल पहले ले जाता हूँ जब सरकारी स्कूलों का […]
हरीश कुमार पुंछ, जम्मू हाल के समय में समाज में एक धारणा तेज़ी से प्रचलित हुई है कि सरकारी स्कूलों के बजाय निजी स्कूलों में शिक्षा का स्तर थोड़ा ऊंचा है. इसी कारण माता पिता अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाना बेहतर समझते हैं. हालांकि आज के समय में सरकारी स्कूलों में भी गुणवत्तापूर्ण […]
समाज की सोच को बदलती लड़कियां
सपना कुमारी मुजफ्फरपुर, बिहार लड़कों पर नाज करने वाला समाज अब लड़कियों की कामयाबी पर गर्व महसूस कर रहा है. जिन्होंने अपनी मेहनत, जुनून और जज्बे से पितृसत्तात्मक समाज की उस धारणा को ध्वस्त किया है कि महिलाएं पुरुषों से कमजोर और कम प्रतिभाशाली होती हैं. आज कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें लड़कियों ने […]
अश्विनी उपाध्याय आरक्षण से 75 साल में नहीं बल्कि 7500 साल में भी सबको समान अवसर नहीं मिलेगा। सबको समान अवसर उपलब्ध कराना है तो 12वीं तक समान शिक्षा (एक देश एक शिक्षा बोर्ड और एक देश एक पाठ्यक्रम) लागू करना होगा। देखा जाये तो स्कूल माफियाओं के दबाव में 12वीं तक एक देश एक […]