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संपादकीय

नेहरू, चीन और शांतिपूर्ण सह -अस्तित्व की अवधारणा

पंडित नेहरू अपने इस महान देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे। इनके शासनकाल में राष्ट्र ने नये युग में प्रवेश किया था। परतंत्रता की लंबी अवधि राष्ट्र के शोषण, आर्थिक संसाधनों के दोहन और पतन का कारण बन गयी थी। सन 1947 ई. में जब  राष्ट्र स्वतंत्र हुआ तो वह टूटा हुआ जर्जरित और थका हुआ […]

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संपादकीय

क्षेत्रीय दल और राष्ट्रीयता

हमारे यहां पर क्षेत्रीय दल कुकुरमुत्तों की भांति हैं। ये दल वर्ग संघर्ष,  प्रांतवाद और भाषावाद के जनक हैं। कुछ दल वर्ग संघर्ष को तो कुछ दल प्रांतवाद और भाषावाद को प्रोत्साहित करने वाले बन गये हैं। इनकी तर्ज पर जो भी दल कार्य कर रहे हैं उनकी ओर एक विशेष वर्ग के लोग आकर्षित […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

राष्ट्र के जागरूक पुरोहित बाबा रामदेव

वेद का आदेश है- वयं राष्ट्रे जागृयाम् पुरोहिता:।। ‘अर्थात हम अपने राष्ट्र में जागरूक रहते हुए अग्रणी बनें। राष्ट्र का नेतृत्व करें।’ जो जागरूकों में भी जागरूक होता है, वही राष्ट्रनायक होता है, वही पुरोहित होता है। यज्ञ पर पुरोहित वही बन सकता है जो जागरूकों में भी जागरूक है, सचेत है, सजग है, सावधान […]

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संपादकीय

निजी अनुभवों की सांझ-9

उनका दृष्टिकोण हुआ करता था कि पैसा यदि लिया भी जाए तो सही काम का लिया जाए, फिर ऐसी स्थिति आयी कि जो भी दे जाए उसी का काम कर दो। इसका अभिप्राय था कि दो पक्षों में एक गलत पक्ष का व्यक्ति यदि दे जाए तो उसी का काम कर दो। किंतु आज स्थिति […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

चीन भारत और दलाईलामा

चीन भारत और दलाईलामा चीन हमारा प्राचीन पड़ोसी देश है। इसे धर्म की दृष्टि देने वाला भारत है। इन दोनों देशों का बहुत कुछ सांझा है। यदि अतीत के पन्ने पलटे जाएं और उस पर ईमानदारी से कार्य हो तो पता चलेगा कि चीन भी कभी आर्यावत्र्त के अंतर्गत ही आता था। आज चीन ने […]

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राजनीति संपादकीय

राष्ट्र के ब्रह्मा, विष्णु, महेश

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में  कई चीजें  बेतरतीब रूप में देखी गयीं। उन सब में प्रमुख थी किसी भी सरकारी विज्ञापन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ-साथ कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी के चित्र का लगा होना। यह लोकतंत्र और लोकतंत्र की भावना के विरूद्ध किया गया कांग्रेसी आचरण था। […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

कम्युनिस्ट और नक्सलवाद

भारत में नक्सलवाद को कम्युनिस्ट आंदोलन की देन माना जा सकता है। वास्तव में कम्युनिस्ट अब एक आंदोलन नहीं रह गया है। यह अब एक मृत विचारधारा बन चुका है और विश्वशांति के समर्थक किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए अब ‘कम्युनिज्म’ में कोई आकर्षण नही रहा है। इसका कारण है कि साम्यवादी विचारधारा अपने […]

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संपादकीय

निजी अनुभवों की सांझ-8

ऐसा कब होता है? जब कत्र्तव्य बोध से लेाग च्युत हो जाते हैं और जब राष्ट्रबोध से लोग विमुख हो जाते हैं, तब ‘कमीशन’ और ‘पैसा’ कर्तव्य बोध और राष्ट्रबोध को भी लील जाता है। आज हमें यही  ‘कमीशन’ और पैसा हमें लील रहा है। प्राकृतिक प्रकोप हमारी अपनी बदलती प्रकृति और प्रवृत्ति के परिणाम […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

…कितना बदला इंसान

हरियाणा के पानीपत का रोंगटे खड़ा कर देने वाला प्रकरण सामने आया है। जहां के एक फार्महाउस के मालिक ने अपने जर्मनी मूल के कुत्ते से अपने नौकर मनीराम को नोंच-नोंच कर मरवा डाला है। नौकर का दोष केवल यह था कि वह अपने मालिक की नौकरी छोडऩे का मन बना रहा था, जबकि मालिक […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र मुद्दा राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

वाह योगी जी वाह!

उत्तर प्रदेश को ‘उत्तम प्रदेश’ बनाने की बात कहने वाले ‘बीमार प्रदेश’ बनाकर छोडक़र गये हैं। साम्प्रदायिक आतंकवाद से जूझता रहा उत्तर प्रदेश ‘सरकारी आतंकवाद’ से भी जूझता रहा। यह ‘सरकारी आतंकवाद’ जातीय आधार पर अधिकारियों की नियुक्ति या पुलिस में भर्ती के रूप में तो देखा ही गया,  साथ ही अधिकारियों और पार्टी के […]

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