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मुद्दा विशेष संपादकीय संपादकीय

आवश्यकता जलस्रोतों के बचाव की

देश व प्रदेश में जलस्तर गिरता जा रहा है, जो कि एक चिंता का विषय है। उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने प्रदेश में जलस्रोत के नीचे खिसकने पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि खेत तालाब योजना के अंतर्गत 3338 तालाब खोदे जाएंगे। श्री शाही एक सुलझे हुए राजनीतिज्ञ हैं। वह […]

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संपादकीय

राष्ट्रघाती मुस्लिम तुष्टिकरण

जो बातें अंग्रेजों के काल में नहीं हो पायीं वे स्वतंत्र भारत में हो गयीं। यथा- नेहरू परिवार की व्यक्ति पूजा परक राजनीति। नेहरू परिवार की मुस्लिम परस्त राजनीति। नरसिम्हाराव के प्रधानमंत्री काल में मस्जिदों के मुल्लाओं का वेतन सरकारी कोष से दिये जाने की घोषणा। सन 1993 ई. में हज के लिए सरकारी सहायता […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

आवश्यकता है रामायण रेलमार्ग और उच्च राजपथ की

रामचंद्रजी महाराज भारत की संस्कृति के मर्यादा पुरूषोत्तम हैं, उनके बिना भारत की संस्कृति का जीवंत उदाहरण देना हमें कठिन हो जाएगा। भारत की मर्यादित संस्कृति की रक्षा कोई ऋषि, संत या महात्मा करे यह तो संभव है, पर इस कार्य को कोई राजवंशी राजपुरूष मर्यादित रहकर करे-यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण बात है। […]

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संपादकीय

लोकतंत्र में आलोचना

लोकतंत्र सचमुच सर्वोत्तम शासन प्रणाली है। इसकी सर्वोत्तमता का कारण यह नहीं है कि यह शासन प्रणाली मताधिकार के माध्यम से जनसाधारण की शासन में सहभागिता सुनिश्चित करती है, अपितु इसकी सर्वोत्तमता का वास्तविक रहस्य इसके द्वारा लोगों को और विशेषत: शासकवर्ग को एक दूसरे की आलोचना, प्रत्यालोचना और समालोचना करने का अधिकार भी देती […]

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मुद्दा राजनीति विधि-कानून विशेष संपादकीय संपादकीय

भूमि अधिग्रहण और किसानों की समस्याएं

कुछ समय पूर्व भूमि अधिग्रहण पर संसदीय समिति ने सिफारिश की थी कि किसी भी प्रकार की कृषि योग्य भूमि चाहे वह सिंचित हो या असिंचित के अधिग्रहण पर सरकार पूरी तरह रोक लगाये। संसदीय समिति का मानना है कि जब अमेरिका, इंग्लैंड, जापान, कनाडा जैसे विकसित राष्ट्रों में सरकारें निजी क्षेत्र के लिए जमीन […]

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राजनीति संपादकीय

साबरमती के संत का चमत्कार

साबरमती के संत का कमाल यही है कि उसकी नीतियों के सहारे लोग आज देश पर शासन करने में सफल हो रहे हैं। यह वास्तव में जनता की भावनाओं से किया गया खिलवाड़ है, जो हर बार और हर स्तर के चुनाव में किया जाता है। केवल भारत ही एक ऐसा देश है-जिसमें चुनाव को […]

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मुद्दा विशेष संपादकीय संपादकीय

पाकिस्तान : अन्त होने ही वाला है

हम क्या हैं? इसे हमें संसार नहीं बताएगा, अपितु हमें ही स्थापित करना पड़ेगा कि-‘हम ये हैं।’ जब तक कोई देश अपनी विदेश नीति को इस आधार पर निर्मित नहीं करता है- तब तक वह  एक याची के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मंचों और संस्था-संस्थानों पर खड़ा दिखायी देता है। पर जैसे ही वह देश वेद […]

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संपादकीय

भारत में राज्य और मुस्लिम महिलाएं-4

इस राष्ट्र के शासक सुधारक नहीं रहे हैं, यह बात सर्वमान्य हो चुकी है। ये सुधारों से डरकर इधर-उधर की बातों से जनता का मन बहलाकर मात्र समय व्यतीत कर रहे हैं। वे क्रांति की ओर हमारा ध्यान आकृष्टï कर रही है। इस क्रांति की रानी लक्ष्मीबाई बनकर, ‘तस्लीमा नसरीन’ और ‘जहांआरा बेगम’ जैसी कई […]

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मुद्दा राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

देशद्रोही कौन?

भारत में सर्वधर्म समभाव की बातें करते हुए हिंदू मुस्लिम ईसाई के भाई भाई होने की बात कही जाती है। इससे पूर्व भारत का आर्यत्व-हिंदुत्व इस पृथ्वी को एक राष्ट्र तथा इसके निवासियों को भूमिपुत्र कहकर भाई भाई मानता रहा है। हिंदुत्व ने संसार में मानवतावाद फैलाया और इसी को भारतीय धर्म के रूप में […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान और हिन्दू राष्ट्र

हिन्दुत्व के विषय में उच्चतम न्यायालय ने ‘शास्त्री यज्ञपुरूष दास और अन्य विरूद्घ मूलदास भूरदास वैश्य और अन्य (1966 एससीआर 242)’ में कहा है-”जब हम हिंदू धर्म के विषय में सोचते हैं तो हमें हिंदू धर्म को परिभाषित करने में कठिनाई अनुभव होती है। विश्व के अन्य मजहबों के विपरीत हिंदू धर्म किसी एक दूत […]

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