राजा और राजनीति को भारत में ईश्वर की न्याय-व्यवस्था को सुचारू रूप से जारी रखने के लिए स्थापित किया गया। अत: राजा और राजनीति का धर्म यह बताया गया कि तुम ऐसी राज्य व्यवस्था बनाओ जिससे लोगों में ‘पाप’ के प्रति घृणा और पुण्य के प्रति लगाव या आकर्षण उत्पन्न हो और वे स्वाभाविक रूप […]
श्रेणी: संपादकीय
सभी मनुष्यों को यह अधिकार है कि बुद्घि पूर्वक अपने जीवनोद्देश्य का निर्धारण करे। अपनी सामाजिक, शारीरिक व आत्मिक उन्नति करे, साथ ही परोपकारी बने रहकर अन्य जीवों के कल्याण की योजनाओं में भी लगा रहे, विद्या प्राप्ति करे और अज्ञान से युक्त होकर अपनी शारीरिक रक्षा करने व भोजन वस्त्र और आवास की आवश्यकताओं […]
इन नास्तिकों की बात तो कहीं तक ठीक थी कि राजनीति और साम्प्रदायिकता को अलग करो, परंतु इनसे दो भूले हुईं-एक तो यह कि ये लोग साम्प्रदायिकता और धार्मिकता को एक ही समझ बैठे-उनमें ये अंतर नहीं कर पाये। इसलिए इन लोगों ने संसार के लिए परमावश्यक धार्मिकता को भी गोली मारने और गाली मारने […]
एक मां के गर्भ में आना दूसरे के यहां पैदा होना, देश छोडक़र भेजा जाना, रास्ते में नदी की सूचना, तत्कालीन राजा द्वारा बच्चों का वध गौ और मधु दोनों का प्रेम यह कृष्ण और क्राइस्ट की सब समान गाथाएं हैं। पर वध की कहानी कंस से मिलती है। क्राइस्ट की शिक्षाओं में वैष्णव परम्परा […]
आज की शिक्षा बच्चे को बड़ा होकर धनी बनाने के लिए दिलायी जाती है, जबकि भारत में इसके विपरीत था। यहां तो वेद (यजु. 2/33) की व्यवस्था है :- ”(विद्यार्थी के माता-पिता उसके गुरू से निवेदन कर रहे हैं) हे गुरूजनो! कमल पुष्प की माला पहने इस बालक को अपने गुरूकुल में स्वीकार करें, जिसमें […]
हर युग में और हर स्थिति-परिस्थिति में भारत के महान लोगों ने मानवतावाद को पुष्ट करने वाले चिंतन को प्रस्तुत किया और उसी के आधार पर लोगों को जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। जब तक भारत की ऐसी शिक्षा प्रणाली विश्व का मार्गदर्शन करती रही तब तक संसार में किसी भी प्रकार का वितण्डावाद […]
गुरूकुलों की परीक्षा प्रणाली हमारे यहां प्राचीनकाल में गुरूकुलों में विभिन्न परीक्षाओं की व्यवस्था की जाती थी। उन परीक्षाओं को आजकल की अंक प्रदान करने वाली परीक्षाओं की भांति आयोजित नहीं किया जाता था। उसका ढंग आज से सर्वथा विपरीत था। तब आचार्य अपने विद्यार्थियों की परीक्षा के लिए कई प्रकार के ढंग अपनाते थे। […]
यदि अस्पृश्यता आदि विकृतियां भारत की संस्कृति होतीं तो अलग-अलग कालखण्डों में आये अनेकों समाज सुधारकों को उनके विरूद्घ आवाज उठाने की ही आवश्यकता नहीं पड़ती, और ना ही उनके सत्कार्यों का इतिहास वन्दन करता। राष्ट्र सर्वप्रथम भारत में विद्यार्थियों के भीतर राष्ट्र सेवा का भाव जागृत करने के लिए राजा और रंक के बच्चों […]
हमारे प्राचीन ऋषियों ने पशु-पक्षियों की अनेकों प्रेरणास्पद कहानियों का सृजन किया, और उन्हें बच्चों को बताना व पढ़ाना आरंभ किया। उसे बच्चे के मनोविज्ञान के साथ जोड़ा गया और परिणाम देखा गया कि बच्चों पर उसका आशातीत प्रभाव पड़ा। वेद और उपनिषदों की गूढ़ बातों को पशु-पक्षियों की कहानियों के माध्यम से आचार्य लोग […]
अपनी बात को मनवाने के लिए महर्षि दयानंद ने अंग्रेज सरकार को सितंबर 1874 में एक ज्ञापन दिया था। जिसमें उन्होंने आर्ष संस्कृत शिक्षा को भारत में पुन: लागू कराने का आग्रह सरकार से किया था। ज्ञापन में लिखा था-”इससे मेरा विज्ञापन है-आर्यावर्त देश का राजा अंग्रेज बहादुर से कि संस्कृत विद्या की ऋषि-मुनियों की […]