आपातकाल के दौरान जनता पर किए गए अत्याचारों से खिन्न भारत का मतदाता कांग्रेस के विरुद्ध हो चुका था। इंदिरा गांधी ने यद्यपि पांचवी लोकसभा का कार्यकाल 1 वर्ष बढ़ा लिया था परंतु अंत में उन्हें जनमत के सामने झुकना पड़ा और देश में आम चुनाव की घोषणा कर दी गई। 16 से 20 मार्च […]
श्रेणी: संपादकीय
कहा जाता है कि राजनीति में कभी कोई किसी का स्थाई शत्रु या मित्र नहीं होता। यहां लोगों के संबंध पानी के बुलबुले के समान होते हैं । जब तक किसी के साथ रहकर स्वार्थ पूरे हो रहे होते हैं तब तक वह मित्र होता है पर जैसे ही राजनीतिक स्वार्थ पूरे हो जाते हैं […]
चौथी लोकसभा – 1967 – 197 देश की चौथी लोकसभा के चुनाव 1967 में संपन्न हुए। पंडित जवाहरलाल नेहरू के पश्चात होने वाले यह पहले आम चुनाव थे। लाल बहादुर शास्त्री जी को किसी आम चुनाव का सामना नहीं करना पड़ा। उनके पश्चात देश की कमान श्रीमती इंदिरा गांधी के हाथों में आई। श्रीमती इंदिरा […]
नेहरू जी के अश्वमेध के घोड़े को कोई रोक पाने की क्षमता नहीं रखता था। उन्होंने अपने राजनीतिक चातुर्य और बुद्धि बल से अपने आप को पूर्णत: निष्कंटक बना लिया था। यही कारण था कि अब वह अजेय नेहरू के रूप में शासन कर रहे थे। भारत से बाहर भी उन्होंने सम्मानपूर्वक कदम बढ़ाए और […]
आजादी से पहले भारत की संसद को ‘केंद्रीय विधानसभा’ के नाम से जाना जाता था। जब देश का नया संविधान बनने लगा और उसके लिए पूरे देश से सदस्य चुनकर आए तो इसे ‘संविधान सभा’ के नाम से पुकारा गया। 26 जनवरी 1950 को जब देश का संविधान लागू हो गया तो इसका नाम ‘संसद’ […]
आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को न्यायालय के द्वारा ‘चुनावी मौसम का लाभ देकर’ जमानत दे दी गई है। न्यायालय के दृष्टिकोण से स्पष्ट होता है कि मी लॉर्ड केजरीवाल को एक अभियुक्त न मानकर एक प्रदेश का मुख्यमंत्री मानकर चल रहे थे। जब न्यायालय और कानून की दृष्टि […]
गाजियाबाद ।( ब्यूरो डेस्क ) प्रधानमंत्री श्री मोदी अपने दो कार्यकाल पूर्ण कर चुके हैं। 10 वर्ष के अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जो कुछ किया है उस पर निश्चय ही देश के इतिहास को गौरव की अनुभूति होगी। उन्होंने देश को प्रत्येक क्षेत्र में स्वाभिमान से भरने में किसी प्रकार की कमी […]
आजाद भारत का पहला चुनाव 1952 में हुआ था। भारत के संविधान में दी गई व्यवस्था के अनुसार संपन्न हुए इन चुनावों में उस समय मात्र 10.50 करोड रुपए खर्च हुए थे। भारत ने संसदीय लोकतंत्र को अपनाकर अपनी पुरातन राजतंत्रीय व्यवस्था को विदा कर दिया था। तब लोगों ने सोचा था कि अब बड़ी […]
सचमुच यह खबर दु:खी करने वाली है कि भारतवर्ष में पिछले 65 वर्ष में हिंदुओं की जनसंख्या 8% कम हो गई है। जबकि इस दौरान मुस्लिम जनसंख्या 9.84 प्रतिशत से बढ़कर 14.09% हो गई है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में ‘धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी का देशभर में विश्लेषण’ नामक विषय के माध्यम […]
जिन्हें हम अधिकार कहते हैं मातृभूमि के संदर्भ में वही हमारे लिए कर्तव्य होते हैं। वर्तमान शिक्षा प्रणाली अधिकार और कर्तव्य के बीच उतनी सूक्ष्मता से अंतर नहीं कर पाई जितनी अपेक्षा थी। जब बात राष्ट्र की आए तो वहां पर कर्तव्य अर्थात करणीय कर्म ही हमारे लिए सबसे बड़ा धर्म बन जाता है। वहां […]