गीता का तीसरा अध्याय और विश्व समाज आज के संसार में दुर्जन आतंकी संगठन सिर उठा रहे हैं। इनके विरूद्घ सारे संसार के लोग यदि पूर्ण मनोयोग से उठ खड़े हों तो विश्व को आतंकवाद से मुक्त होने में कोई देर नहीं लगेगी। कर्म को सही गति और सही दिशा देने की आवश्यकता है। योगीराज […]
श्रेणी: संपादकीय
गीता का तीसरा अध्याय और विश्व समाज हमने पाकिस्तान के विरूद्घ भारत के प्रधानमंत्री मोदी को ‘सर्जिकल स्ट्राईक’ करते देखा। संयुक्त राष्ट्र में अपनी विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज को पाकिस्तान की बखिया उधेड़ते हुए देखा-ऐसे हर अवसर पर देश में भावनात्मक एकता का परिवेश बना, लोगों में सांस्कृतिक और सांगठनिक एकता का भाव बना। […]
गीता का तीसरा अध्याय और विश्व समाज सन्त का यह कार्य आपको शिक्षा दे रहा है कि यज्ञीय बन जाओ, जो भी कुछ मिलता है-उसे बांट दो। ज्ञान को भी बांट दो और मिले हुए दान को भी बांट दो। चोर, डकैती या लुटेरा व्यक्ति ऐसा क्यों नहीं कर पाता? इसका कारण यही है कि […]
सं न्यासी जीवन का भारतीय संस्कृति में विशेष सम्मान और महत्व है। हमारे पूर्वजों ने संन्यास आश्रम की स्थापना इस उद्देश्य से की थी कि जीवनभर की आध्यात्मिक कमाई को और अनुभवजन्य ज्ञान को व्यक्ति इस आश्रम में जाकर लोकहित में बिना कोई मूल्य लिये समाज को बांटेगा, कोई लेने भी नहीं आएगा तो उसके […]
गीता का तीसरा अध्याय और विश्व समाज यहां श्रीकृष्णजी अर्जुन को पुन: उसके धर्म का स्मरण करा रहे हैं कि तू स्वधर्म को पहचान और उसी के अनुसार आचरण कर, अर्थात कर्म कर। यदि तू यह मान रहा है कि कर्म करना ही नहीं है अर्थात स्वधर्म का पालन करना ही नहीं है तो यह […]
गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार योगेश्वर कृष्ण जी का कहना है कि हमें अपना मन ‘परब्रह्म’ से युक्त कर देना चाहिए, उसके साथ उसका योग स्थापित कर देना चाहिए। उससे मन का ऐसा तारतम्य स्थापित कर देना चाहिए कि उसे ब्रह्म से अलग करना ही कठिन हो जाए। भाव है कि जिन […]
फिलीपींस की राजधानी मनीला में हुए आसियान देशों के सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति से इस सम्मेलन का महत्व बढ़ गया। भारत, जापान, ऑस्टे्रलिया और अमरीका ने इस सम्मेलन में चतुष्कोणीय नौसैनिक सहयोग के रास्ते पर चलने का महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय लिया है। इस निर्णय […]
गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार गीता यह भी स्पष्ट करती है कि ”हे कौन्तेय! पुरूष चाहे कितना ही यत्न करे, कितना ही विवेकशील हो-ये मथ डालने वाली इन्द्रियां बल पूर्वक मन को विषयों की ओर खींच लेती हैं। मन विषयों के पीछे भागता है और इस प्रकार भागता हुआ एक दिन मनुष्य […]
गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार ‘गीता’ का कहना है कि योगस्थ होकर कर्मयोग का अभ्यासी बनकर मनुष्य को कर्म के फल की आसक्ति से स्वयं को मुक्त रखना चाहिए। कर्म की सिद्घि या असिद्घि दोनों में ही मनुष्य को समता का भाव अपनाने का अभ्यासी हो जाना चाहिए। जब मन ऐसी अवस्था […]
गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार ‘गीता’ कहती है कि इस आत्मा को संसार का कोई शस्त्र छेद नहीं सकता। न इसको अग्नि जला सकती है, और न इसे पानी गला सकता है, इसे वायु सुखा नहीं सकती। अग्नि जला न पाएगा, शस्त्र करे नहीं छेद। पानी गला न पाएगा, हो वायु को […]