हमारे देश को आजाद हुए 70 वर्ष हो गये हैं। पर दु:ख का विषय है कि देश की सबसे समृद्घ और सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा ‘हिन्दी’ स्वतंत्रता के सात दशकों में भी अपना सही स्थान और सही सम्मान प्राप्त करने में असफल रही है। देश में धर्म, संस्कृति और इतिहास की व्याख्या करने […]
श्रेणी: संपादकीय
गीता का चौथा अध्याय और विश्व समाज गीता में आगे गीताकार श्रीकृष्णजी के मुखारविन्द से कहलवाता है कि हे पार्थ! इस संसार में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो आहार को सन्तुलित और नियमित करके अपने प्राणों से प्राणों में ही आहुति देेते हैं। (भारतवर्ष में ऐसे ऐसे योगी भी हो गये हैं जो प्राण […]
हिमालय और गुजरात के चुनावों में हमने नेताओं की कुछ हल्की बातें देखी हैं। जब ‘हल्के’ लोगों को बड़ी जिम्मेदारी दी जाती है या वे हमारे द्वारा अपने नेता मान लिये जाते हैं तो उनसे ऐसी हल्की बातों की अपेक्षा की जा सकती है। हमारे नेताओं को कौन समझाये कि विकास कभी ‘पागल’ या ‘बदतमीज’ […]
अथर्ववेद (7/109/6) में राज्य के अधिकारियों और कर्मचारियों के कत्र्तव्य बताये गये हैं। कहा गया है कि ये लोग प्रजा की स्थिति का अध्ययन करके राजा को उससे अवगत कराएंगे तदुपरान्त राजा जो नीति निर्धारित करे उसको लागू कराने हेतु ये लोग योजना बनायें, राजा जो कार्य दे-उसे नीचे तक अपने सहयोगियों में बांट दें। […]
कांग्रेस का सोनिया कालकांग्रेस से सोनिया काल विदा ले चुका है। अब वह अस्ताचल की ओर है। बेशक उन्होंने कांग्रेस की तथाकथित शानदार परम्परा का निर्वाह करते हुए अपना ‘सिंहासन’ अपने पुत्र राहुल को सौंप दिया है, पर वह अब बुझता हुआ दीप ही कही जाएंगी। क्योंकिअब वह कांग्रेस अध्यक्ष पद पर या भारत के […]
गीता का चौथा अध्याय और विश्व समाज अर्जुन! तुझे याद रखना चाहिए कि जो व्यक्ति सहज प्राप्त वस्तु से सन्तुष्ट है, सुख-दु:खादि द्वन्द्वों से दूर है उनसे परे हो गया है अर्थात उन्हें अपने पास फटकने तक नहीं देता और न स्वयं उधर कभी जाता हुआ देखा जाता है अर्थात चोरी करते हुए देर सवेर […]
गीता का चौथा अध्याय और विश्व समाज इसी आनन्दमयी सांसारिक परिवेश को ‘विश्वशान्ति’ कहा जाता है। जिनका चित्त मैला कुचैला है, हिंसक है, दूसरों पर अत्याचार करने वाला है-उनका भीतरी जगत उपद्रवी और उग्रवादी होने से हिंसक हो जाता है, जिसमें शुद्घता नाम मात्र को भी नहीं होती। फलस्वरूप उनका बाहरी जगत भी तदनुरूप बन […]
भारत में एक समय था जब गर्मियों के दिनों में विवाह समारोहों को इसलिए नहीं रखा जाता था कि उन दिनों में दूध की कमी पड़ जाती थी। लोग सर्दियों में विवाहादि करना उचित मानते थे। पर आज की स्थिति में व्यापक परिवर्तन आ चुका है। अब आप एक छोटे कस्बे में भी यदि 50 […]
भारत की अंतश्चेतना में सहनशक्ति का अनन्त ऊर्जा स्रोत उपलब्ध है। सचमुच भारत जैसी सहनशक्ति विश्व के किसी अन्य देश में देखने को नहीं मिलती। यह भारत ही है जिसने महात्मा गांधी और नेताजी सुभाषचंद्र बोस को भी अपशब्द बोलने वाले और 1962 के युद्घ में चीन का साथ देने वाले कम्युनिस्टों को सहन किया […]
मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेस के लिए गुजरात में बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। उन्होंने भाजपा के स्टार प्रचारक और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए ‘नीच’ शब्द का प्रयोग करके स्पष्ट किया है कि उनके पास शब्दों की दरिद्रता है और वे प्रधानमंत्री के विरूद्घ घृणा से भरे हैं। वास्तव में लोकतंत्र एक […]