सरदार वल्लभभाई पटेल भारतीय स्वातंत्र्य समर के एक दैदीप्यमान नक्षत्र हैं। उनकी स्पष्टवादिता और कड़े निर्णय लेने में दिखायी जाने वाली निडरता आज तक लोगों को रोमांचित कर देती है। बात उस समय की है जब देश की संविधान सभा में संयुक्त निर्वाचन पद्घति पर बहस चल रही थी। तब श्री नजीरूद्दीन अहमद जैसे कई […]
श्रेणी: संपादकीय
भारत अपना 68वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। अब से ठीक 68 वर्ष पूर्व भारत ने अपने गणतान्त्रिक स्वरूप की घोषणा की थी। 26 जनवरी 1950 से देश ने अपने राजपथ के गणतंत्रीय स्वरूप को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान किया। अब 68 वर्ष पश्चात देश के कई लोगों को चिन्ता होने लगी है कि भारत का […]
भारत के 68वें गणतंत्र दिवस की पावन बेला है। मैंने सोचा कि अपने सुबुद्घ पाठकों के लिए कोई ऐसी भेंट इस अवसर पर दी जाए जो उन्हें गणतंत्र के पुजारी इस भारत देश की सनातन ज्ञान परम्परा से जोड़े और उन्हें आनन्दित व रोमांचित कर डाले। इसी क्रम में यह आलेख तैयार हो गया। हमारी […]
गीता का दसवां अध्याय और विश्व समाज ”तुझे पर्वतों में खोजा तो लिये पताका खड़ा था। तुझे सागर मेें खोजा तो मां के चरणों में पड़ा था। सर्वत्र तेरे कमाल से विस्मित सा था मैं, मुझे पता चल गया तू सचमुच सबसे बड़ा था।।” ईश्वर को खोजने वाली दृष्टि होनी चाहिए-फिर सारी सृष्टि में वही […]
गीता का दसवां अध्याय और विश्व समाज सत्य है परमात्मा सृष्टि का आधार। उसके साधे सब सधै जीव का हो उद्घार।। वह परमपिता-परमात्मा सत्य है। सत्य वही होता है जो इस सृष्टि से पूर्व भी विद्यमान था और इसके पश्चात भी विद्यमान रहेगा, जो अविनाशी है। वह परमपिता परमात्मा अपने स्वभाव में अविनाशी है। वह […]
गीता का दसवां अध्याय और विश्व समाज शस्त्रों में वज्र मैं हूं, गायों में कामधेनु मैं हूं, प्रजनन में कामदेव मैं हूं, सर्पों में वासुकि मैं हूं। यहां श्रीकृष्णजी किसी भी जाति में या पदार्थादि में सर्वोत्कृष्ट को अपना रूप बता रहे हैं। सर्वोत्कृष्ट के आते ही छोटे उसमें अपने आप आ जाते हैं। जैसे […]
गीता का दसवां अध्याय और विश्व समाज ऐसी उत्कृष्ट श्रद्घाभावना के साथ जो लोग ईश भजन करते हैं-उनके लिए गीता का कहना है कि उन्हें मैं (भगवान) बुद्घि भी ऐसी प्रदान करता हूं कि जिसके द्वारा वे मेरे पास ही पहुंच जाते हैं। उन पर अपनी अनुकम्पा करने के लिए मैं उनके आत्मा के भाव […]
गीता का दसवां अध्याय और विश्व समाज ”पत्ते-पत्ते की कतरन न्यारी तेरे हाथ कतरनी कहीं नहीं-” कवि ने जब ये पंक्तियां लिखी होंगी तो उसने भगवान (प्रकत्र्ता) और प्रकृति को और उनके सम्बन्ध को बड़ी गहराई से पढ़ा व समझा होगा। हर पत्ते की कतरन न्यारी -न्यारी बनाने वाला अवश्य कोई है-पर वह दिखायी नहीं […]
गीता का नौवां अध्याय और विश्व समाज अन्य देवोपासक और भक्तिमार्गी पीछे हम कह रहे थे कि गीता बहुदेवतावाद की विरोधी है और एकेश्वरवाद की समर्थक है। यहां पुन: उसी बात को श्रीकृष्ण जी दोहरा रहे हैं, पर शब्द कुछ दूसरे हैं। जिन्हें सुनकर लगता है कि वे बहुदेवतावाद को बढ़ावा दे रहे हैं। वह […]
दिल्ली में हर साल की तरह इस बार भी स्मॉग ने अपना कहर बरपा किया है। इसकी गिरफ्त में आकर बहुत से लोगों को हृदय की बीमारियों ने घेर लिया है, तो कईयों को ऐसी ही दूसरी घातक बीमारियों के उभरने की शिकायत रही है। यह सब इसलिए हुआ है कि हमारे किसानों ने अपने […]