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संपादकीय

मोदी जी!…..बचके रहना रे बाबा तुझपे नजर है

  देश में कुछ ऐसे चेहरे हैं जो अपने किसी न किसी उल्टे सीधे बयान के द्वारा छपने को लालायित रहते हैं। इन्हीं में से एक हैं जस्टिस काटजू ,जो कि पूर्व में भी कई बार अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में बने रहे हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे मार्कंडेय काटजू ने […]

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संपादकीय

नए संसद भवन का निर्माण और कांग्रेस का वैचारिक दिवालियापन

  राजाओं के राज भवन कैसे हों ? उसकी अपनी वेशभूषा कैसी हो? और उसकी राज्यसभा, धर्मसभा, न्याय सभा आदि कैसी हों? इस विषय में हमारे प्राचीन कालीन राजनीतिशास्त्र के मनीषियों ने बड़ा स्पष्ट लिखा है कि इन सब में वैभव और देश का गौरव स्पष्ट दिखाई देना चाहिए। राजा दीन ,- हीन, फटे हाल […]

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महत्वपूर्ण लेख संपादकीय

हरीश रावत आखिर किस आधार पर दिलवाना चाहते हैं सोनिया गांधी को भारत रत्न ?

  किसी भी देश का रत्न वही व्यक्ति हो सकता है जो देश की अनुपम सेवा करने में अपनी सर्वमान्यता सिद्ध कर चुका हो। यदि किसी व्यक्ति ने किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर या किसी संकीर्ण मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए या किसी वर्ग विशेष का तुष्टीकरण करते हुए अपनी राजनीति की है या अपने […]

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संपादकीय

आम मतदाता के साथ हुए छल प्रपंच के चलते बन रहा है संयोग : पश्चिमी बंगाल में ‘कुछ बड़ा’ होने वाला है

  कहते हैं कि जब जहाज डूबने लगता है तो चूहे डूबते जहाज को छोड़कर भागने लगते हैं । बस, यही बात इस समय पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस में मची अफरा-तफरी को देखकर कही जा सकती है । तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बैनर्जी इस समय अपने राजनीतिक सफर के सबसे नाजुक दौर से […]

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संपादकीय

किसी भी प्रकार की राजनीतिक सांप्रदायिकता के नहीं, राष्ट्र के समर्थक बनो

  हमारे देश में ऐसे बहुत लोग हैं जो इस बात में विश्वास रखते हैं कि ”मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” – इस प्रकार के ये लोग ‘तोता रटन्त’ की भांति इस पंक्ति को रट चुके हैं । लेकिन जब धर्म और राजनीति को एक साथ चलाने की बात की जाती है तो […]

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संपादकीय

जम्मू कश्मीर डीडीसी चुनाव : उत्कर्ष व अपकर्ष का आता समय विशेष

  जम्मू कश्मीर में कमल नहीं खिला है ,बल्कि राष्ट्रवाद मुखरित हुआ है । डीडीसी चुनावों ने यह स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि जम्मू कश्मीर की जनता लोकतंत्र और भारत के साथ है । डीडीसी चुनाव परिणामों से उन देश विरोधी शक्तियों को जवाब मिला है जो कुछ समय पूर्व ही यह कह रही […]

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राजनीति संपादकीय

राजभर को डूब मरना चाहिए चुल्लू भर पानी में

  यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत के जिन महान योद्धाओं ने भारत की जिस गौरवपूर्ण सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करने के लिए और इसके धर्म को बचाने के लिए अपना प्राणोत्सर्ग किया, उन्हीं महापुरुषों के नाम पर राजनीति करने वाले अवसरवादी और इतिहासबोध व राष्ट्रबोध से सर्वथा शून्य राजनीतिक लोग उनके पौरुष, प्रताप, शौर्य, […]

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इतिहास के पन्नों से संपादकीय

फूट डालो और राज करो की नहीं ‘तोड़ डालो और राज करो’ की नीति थी अंग्रेजों की

अंग्रेजों ने भारत का विभाजन करते हुए कई बफर स्टेट बनाए। जिनमें अफगानिस्तान का नाम सर्वोपरि है। बफर स्टेट के नाम पर वास्तव में भारत के विभाजन की प्रक्रिया को ही अंग्रेजों ने बलवती किया था। रूसी व ब्रिटिश भारत के बीच हुई गंडामक संधि से अफगानिस्तान नाम के एक बफर स्टेट जन्म हुआ था। […]

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मुद्दा राजनीति संपादकीय

मुद्दों को भूल जाना हम भारतीयों का पुराना रोग है

वर्तमान केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए किसानों संबंधित कानूनों को लेकर देश के कुछ किसान आंदोलनरत हैं , उन पर आरोप है कि उनमें से अधिकांश यह नहीं जानते कि केंद्र सरकार जो कानून लाई है उसकी विषय वस्तु क्या है ? और वह किस का विरोध कर रहे हैं। वास्तव में मुद्दों के […]

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संपादकीय

नेताओं का अहंकार और संसार का भविष्य

  वर्तमान में सभी देशों की राजनीति और विदेश नीति पूर्णतया अहमकेंद्रित हो गई है । स्वार्थों की पूर्ति के लिए एक देश दूसरे देश को नीचा दिखाने की योजनाओं में लगा हुआ है । मानवता का हितचिन्तन और सारे भूमंडलवासियों को अपना मानने की पवित्र भावना राजनीति और राजनीतिक लोगों के मन मस्तिष्क से […]

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