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संपादकीय

अब मत …धोखे में आना…… देशवासियों !

मंदिरों में रखी जाने वाली मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा करने की भारत की पौराणिक परंपरा कितनी वैज्ञानिक है और कितनी अवैज्ञानिक है ?- इस पर हमें कोई चर्चा नहीं करनी है। पर आज हम इतना अवश्य कहना चाहते हैं कि हिंदू समाज की राष्ट्र और धर्म के प्रति बढ़ती जा रही निष्क्रियता और तटस्थता की […]

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संपादकीय

मदनी और अतिथि धर्म का अतिक्रमण

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा के फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ ने मौलाना अरशद मदनी द्वारा ओ३म और अल्लाह के एक होने संबंधी दिए गए बयान के संदर्भ में यह कहना उचित ही है कि भारत हिंदू राष्ट्र था, है और आगे भी रहेगा। यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हिंदू कोई मजहब […]

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संपादकीय

स्वामी दयानंद की चिंतन शैली और भारत देश

भारत के लोग अपने आप को सनातनधर्मी कहने और मानने में इसीलिए गर्व और गौरव की अनुभूति करते हैं कि उनका ज्ञान का खजाना शाश्वत है , सनातन है । वेदज्ञान जब सृष्टि दर सृष्टि चलता है तो इसका अर्थ यही है कि यह ज्ञान कभी समाप्त होने वाला नहीं है , यह कभी पुरातन […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़े और भारत की अर्थव्यवस्था

भारत अपनी जीवंतता का परिचय देते हुए निरंतर ऊंचाई की ओर अग्रसर है। कई क्षेत्रों में इस समय भारत विश्वगुरु के अपने दायित्व का निर्वाह करता हुआ दिखाई दे रहा है। राजनीतिक क्षेत्र में जहां भारत की शक्ति को संसार के बड़े से बड़े देश ने पहचाना है, वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भी भारत को […]

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संपादकीय

अमृत महोत्सव के उषाकाल में बसंत और गणतंत्र का पर्व

देश के लिए सचमुच वह ऐतिहासिक पल थे जब हमने पहली बार 26 जनवरी 1950 को एक गणतंत्र के रूप में आगे बढ़ने का निर्णय लिया था। उस दिन सारे देश में खुशी का एक अलग ही मंजर था। हम सबने एक साथ, एक दिशा में, एक सोच के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया […]

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संपादकीय

मूल में हो रही भूल के चलते बिहार के शिक्षा मंत्री कितने गलत ?

ढोल ,गवार, शुद्र, पशु ,नारी – को लेकर जिस प्रकार बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर सिंह के बयान को लेकर इस समय तूफान मचा हुआ है उस के संदर्भ में आप तुलसीदास जी की रामचरित मानस को देखें कि उन्होंने नारी जाति के लिए अन्यत्र भी ऐसी अशोभनीय, धर्मविरूद्घ और नीति विरूद्घ बातें कही हैं […]

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संपादकीय

भारत का संविधान, संविधान सभा और गणतंत्र

डॉक्टर अंबेडकर के बारे में यह बात बड़ी प्रमुखता से स्थापित की गई है कि उन्होंने भारत का संविधान बनाया था। जबकि यह बात सिरे से ही गलत है ।जिसे उन्होंने स्वयं ने ही अपने जीवन काल में भरी पार्लियामेंट के भीतर खारिज कर दिया था। वे नहीं चाहते थे कि देश में बाबा छाप […]

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संपादकीय

हम कब तक 1 जनवरी से अपना नववर्ष मनाते रहेंगे ?

भारत प्राचीन काल से ज्ञान – विज्ञान के क्षेत्र में सारे संसार का नेतृत्व करता आया है। धर्म की मर्यादा, नैतिकता और धर्म के नैतिक मानवीय ,नियमों व मूल्यों के माध्यम से सारी मानवता को एकता के सूत्र में पिरोकर देखने की अद्भुत और पवित्र भावना का नाम ही भारत ने ‘वसुधैव कुटुंबकम’ और ‘कृण्वंतो […]

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संपादकीय

हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और उसकी संभाल

“भारत को समझो” हम सबके लिए एक सांझा मिशन होना चाहिए। अपनी समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत की ओर ध्यान देना हम सबका राष्ट्रीय दायित्व है। इस दायित्व की पूर्ति के लिए भारत को गहराई से समझना पड़ेगा। मिट्टी के एक-एक कण से पूछना पड़ेगा कि तेरा इतिहास क्या है ? तेरी सांस्कृतिक विरासत क्या […]

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संपादकीय

भारतोन्मुखी चिंतन और वैश्विक विकास का मॉडल

भारत के वैदिक चिंतन में समस्त प्राणी जगत का कल्याण निहित है। समस्त मानवता के कल्याण में रत वैदिक चिंतन एकांगी न होकर सर्वांगीण है। मनुष्य के विकास के लिए इसने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक सभी क्षेत्रों में सुव्यवस्था स्थापित की है। इस सुव्यवस्था को ही हम धर्म कहते हैं। प्रकृति के साथ […]

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