Categories
संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय 8 ( ख ) राष्ट्रीय प्रतीक और देशवासी

प्रत्येक राष्ट्र जीवित रहने के लिए अपने ऐसे प्रतीकों की खोज करता है और उनके प्रति समर्पित होकर रहता है। जिनके भीतर राष्ट्रभक्ति होती है ऐसे लोग भूख प्यास सहन कर सकते हैं, रोग और शोक को सहन कर सकते हैं, गरीबी – फटेहाली और भूखमरी को भी सहन कर सकते हैं पर उन्हें अपने […]

Categories
इतिहास के पन्नों से संपादकीय

देश विभाजन और सावरकर, अध्याय 8 ( क ) वंदेमातरम् और सुरासुर संग्राम

देश के प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान से यह अपेक्षा की जाती है कि वह राष्ट्र के मूल्यों को जीवंत बनाए रखने के लिए उनके प्रति समर्पण का भाव दिखाएं और अपने विद्यार्थियों में राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने वाली बंधुता को बढ़ाने का हर संभव प्रयास करें। ऐसे प्रयासों में किसी भी प्रकार की […]

Categories
संपादकीय

देश विभाजन और सावरकर, अध्याय 7 ( ख ) सावरकर जी और आर्य समाज

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद जी महाराज 1857 की क्रांति के समय मात्र 33 वर्ष की अवस्था के थे। परंतु उन्होंने उस समय बाबा औघड़नाथ के नाम से क्रांति के लिए भूमिका तैयार की और मेरठ में क्रांतिकारियों के बीच रहकर क्रांति को बलवती करने में अपनी अग्रणी भूमिका निभाई थी। जिस आर्य समाज […]

Categories
संपादकीय

देश विभाजन और सावरकर, अध्याय 7 ( क ) सावरकर और हिंदू-हित

मुस्लिम लीग की स्थापना से भी पहले से और 1857 की क्रांति के बाद से अंग्रेजों ने मुस्लिम तुष्टिकरण का कार्ड भारत में खेलना आरंभ कर दिया था। जिससे मुसलमान ब्रिटिश सत्ता के चहेते बन चुके थे। मुस्लिम नेतृत्व इस बात से बहुत प्रसन्न था कि उसे ब्रिटिश सरकार से मनचाही सुविधाएं प्राप्त हो रही […]

Categories
इतिहास के पन्नों से संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर , अध्याय 6 ( ख ) सावरकर जी का हिंदुत्व

उपरोक्त लेखक हिमांशु की मान्यता है कि मुसलमानों की इस प्रकार की भारत विरोधी सोच को समझकर ही सावरकर जी जैसे नेताओं ने अपनी लेखनी को पैना किया था। उन्होंने देशवासियों का जागरण करते हुए ‘हिंदुत्व’ जैसी पुस्तक की रचना की। इसके बारे में उपरोक्त गांधीवादी लेखक महोदय लिखते हैं कि ‘भारत को हिंदू राष्ट्र […]

Categories
इतिहास के पन्नों से संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर , अध्याय 6 ( क ) वीर सावरकर का हिंदुत्व

कांग्रेस या तो इस्लाम के फंडामेंटलिज्म के प्रति जानबूझकर आंखें मूंदे रही या उसकी समझ में इस्लाम के फंडामेंटलिज्म का सच आया नहीं। ऐसा भी हो सकता है कि कांग्रेस पर ब्रिटिश सरकार का भी यही दबाव रहा हो कि वह मुस्लिम लीग के साथ मिलकर चले। कुछ भी हो सच यही है कि कांग्रेस […]

Categories
संपादकीय

गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन को जब यासर अराफात बीच में छोड़कर लौटने लगे थे अपने देश

बात 1983 की है। जब गुटनिरपेक्ष आंदोलन का सातवां शिखर सम्मेलन भारत में आयोजित किया गया था। नई दिल्ली को उस समय दुल्हन की तरह सजाया गया था। उस समय देश का नेतृत्व एक सक्षम और मजबूत प्रधानमंत्री के रूप में श्रीमती इंदिरा गांधी कर रही थीं। उनके समय में कई ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय लिए […]

Categories
संपादकीय

मुस्लिम वक्फ बोर्ड और आम नागरिक

1947 के बंटवारे को हम सब देशवासियों को एक गंभीर चुनौती और दुखद त्रासदी के रूप में लेना चाहिए । देश के संजीदा लोग इस बात पर सहमत भी हैं कि हमें देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए। इसके उपरांत भी कुछ लोग हैं जो अभी भी देश […]

Categories
Uncategorised संपादकीय

क्या भाजपा ‘इण्डिया’ से ‘भारत’ को कर पाएगी मुक्त ?

इस समय देश में ‘भारत बनाम इंडिया’ की बहस चल रही है। जो लोग इसे भारत के ‘नाम परिवर्तन’ के साथ जोड़कर देख रहे हैं उनका तर्क है कि देश के संविधान निर्माताओं ने जो नाम रख दिया, वही उचित है। उनके दृष्टिकोण में भारत का नाम ‘इंडियन यूनियन’ ही रहना चाहिए । जो लोग […]

Categories
संपादकीय

‘एक देश एक चुनाव’ समय की आवश्यकता

‘एक देश एक चुनाव’ के विचार की आवश्यकता बहुत देर से अनुभव की जा रही थी। यदि प्रशासनिक स्तर पर दृष्टिपात किया जाए तो पता चलता है कि हर छठे महीने कोई ना कोई चुनाव देश में होता रहता है। इससे सरकारी तंत्र का दुरुपयोग होता है। धन भी अधिक खर्च होता है । इसके […]

Exit mobile version