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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय -17 घ राहत शिविर की कठिनाइयां

हम सब उस राहत शिविर के खुले मैदान में चार मास तक रहे। दिनभर में एक परिवार को एक लोटा पानी और सदस्यों के हिसाब से आधी रोटी मिलती थी। पानी में नमक घोल कर उसके साथ रोटी खाते थे। दो घूंट पीने का पानी मिलता। गर्मी के दिन थे। हम सब दिन भर भूख […]

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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय -17 ग मुसलमान मित्र की मानवता

हमारा मकान बहुत बड़ा था। बहुत बड़े आंगन में चारपाईयां डली हुई थीं। पिताजी इस बात को लेकर बहुत ही चिंतित और आशंकित रहते थे कि न जाने बदमाशों की कोई टोली कब घर में प्रवेश करने में सफल हो जाए ? और यदि वह इस प्रकार प्रवेश करने में सफल हो गई तो उससे […]

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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय -17 ख पिताजी के बारे में…

मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरे पूजनीय पिताश्री राणा सखीर चन्द जी कपूर मधियाना जिला झंग में मिडल स्कूल के प्राचार्य थे। समाज में उनका बड़ा सम्मान था। उन दिनों प्राचार्य के प्रति लोग विशेष श्रद्धा रखते थे। सभी लोग उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते थे। घर में पूरी तरह शांति थी। समृद्धि […]

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इतिहास के पन्नों से संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय -17 क नन्हीं आंखों ने देखा बंटवारा

( जूम मीटिंग के माध्यम से चल रहे मेरे एक भाषण में जब मैंने देश विभाजन के समय की घटनाओं का उल्लेख किया और बताया कि किस प्रकार उस समय लगभग 20 लाख हिंदुओं को मार दिया गया था, तब उस मीटिंग में उपस्थित रहीं माताजी आर्या चंद्रकांता जी की आंखें सजल हो उठीं और […]

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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय -16 ख ‘वदतोव्याघात’ का उदाहरण-

“मुसलमानों का पराभव करने का अत्यंत अनुकूल अवसर प्राप्त होने पर भी प्रारंभ से ही हिंदुओं को ऐसा भय लगता रहा कि भ्रष्ट किए गए हिंदुओं को अथवा जन्मजात मुसलमानों को शुद्ध कर आज हमने यदि पुनः हिंदू बना लिया, तो उसके परिणामस्वरूप आस- पास के मुसलिम राज्य और लोग कल हम पर अधिक शक्ति […]

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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर : अध्याय 15 ख , सावरकर जी और ‘कोढ़ की बीमारी’

नेहरू जी और गांधी जी जैसे राष्ट्र निर्माता उस समय अनुनय विनय के साथ जूनागढ़ और हैदराबाद को एक अलग रियासत ( राष्ट्र ) मानते हुए अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे थे। जबकि सावरकर जी जैसे लोग इस बात को लेकर आंदोलित और व्यथित थे कि भारतीय राष्ट्र की भूमि के भीतर ही […]

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संपादकीय

‘इंडिया’ की नाव डुबो सकती है आम आदमी पार्टी

सत्ताकेंद्रित राजनीति कभी राष्ट्र का भला नहीं कर सकती। जो राजनीति सत्ताकेंद्रित न होकर राष्ट्र केंद्रित हो जाती है वह राजनीति न होकर राष्ट्रनीति बन जाती है। उसी को राष्ट्र धर्म कहा जाता है । जब उसके प्रति ही समर्पित होकर नीतियां बनाई जाती हैं और उन्हें पूर्ण विवेक, पूर्ण संयम और पूर्ण संतुलन के […]

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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर : अध्याय 15 क निजाम हैदराबाद का देश विरोधी आचरण

‘सावरकर समग्र’ के खंड 6 के पृष्ठ संख्या 342 पर सावरकर जी तैमूर लंग के विषय में बताते हैं कि तैमूर लंग तुर्क था। प्रारंभ में उसने इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया था। उसने बगदाद को जीतने के पश्चात वहां के समस्त मुस्लिम ग्रंथों और अनेक स्थानों की मस्जिदों को जला डाला था। ईसवी सन […]

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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय -14 ख सुचेता कृपलानी की पीड़ित महिलाओं को सलाह

वे उनकी बातों को बीच में ही काटते हुए उन पर लगभग गरजते हुए बोलीं कि “मैं पंजाब और नोआखाली में सरेआम घूमती हूँ। मेरी तरफ तो कोई भी मुस्लिम गुंडा तिरछी निगाह से देखने की भी हिम्मत नहीं करता। क्योंकि मैं न तो भड़कीला मेकअप करती हूँ और ना ही लिपस्टिक लगाती हूँ। आप […]

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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय -14 क मालवीय, अंबेडकर और गांधीजी

इस्लाम के खूनी इतिहास को समझ कर भी उसके प्रति लापरवाह रहे गांधीजी लोगों के द्वारा बार-बार यह समझाने पर कि मुस्लिम किस प्रकार उनका अपमान कर रहे हैं ? हत्या कर रहे हैं और महिलाओं के साथ अत्याचार कर रहे हैं , अपनी मान्यताओं से तनिक भी हटने को तैयार नहीं थे। उनके बारे […]

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