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संपादकीय

‘आप है अराजकतावादियों की बाप’

राजनीति  के लिए अराजकतावाद का शब्द सर्वप्रथम क्रोपटकिन नामक राजनीतिक मनीषी ने दिया। क्रोपटकिन ने इस शब्द को यूं परिभाषित किया-”अराजकवाद जीवन तथा आचरण के उस सिद्घांत और वाद को कहते हैं  जिसके अधीन समाज की कल्पना राज्यसंस्था से विरहित रूप में की जाती है। इस समाज में सामंजस्य उत्पन्न करने के लिए किसी कानून […]

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संस्थागत भ्रष्टाचार और गाय

आज हम लोकतांत्रिक पूंजीवाद की शोषणात्मक व्यवस्था में रह रहे हैं। स्वतंत्रता के पश्चात इस व्यवस्था में एक ऐसा शोषक वर्ग बड़ी तेजी से उभरा है जिसने पूरी अर्थव्यवस्था पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया है। पहले भारी उद्योग स्थापित करके लोगों को बेरोजगार किया गया और अब मशीनी युग में और भी अधिक तेजी […]

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गौ और गोवंश की रक्षा कैसे की जाए, भाग-2

गोदुग्ध को हमारे यहां प्राचीन काल से ही स्वास्थ्य सौंदर्य के दृष्टिकोण से अत्यंत लाभदायक माना गया है। हमारे देश में स्वतंत्रता के वर्षों पश्चात भी गोदुग्ध, छाछ, लस्सी आदि हमारे राष्ट्रीय पेय रहे हैं। सुदूर देहात में आप आज भी जाएंगे तो लोग आपको चाय-कॉफी के स्थान पर दूध आदि ही देंगे। हां, इतना […]

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यदि आज महामति चाणक्य होते तो..भाग-३

इनकी जानकारी होने पर स्वयं सेल्यूकस ने बुरा माना। किंतु राष्ट्रधर्म के समक्ष सेल्यूकस के बुरा मानने का चाणक्य ने बुरा नही माना। अपने कत्र्तव्य पथ पर यथावत आरूढ़ रहे। गुप्तचरों के पीछे गुप्तचर रखने की अनूठी परंपरा में घुसपैठ का प्रश्न ही नही था। आज प्रधानमंत्री की तो बात ही छोडिय़े पुलिसकर्मी तक के […]

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कैसे हो भारत में देवतुल्य गौ और गोवंश की सुरक्षा-भाग-1

(पिछले दिनों 29 दिसंबर को राजस्थान के नागौर जिले के कुचामन सिटी में गौ रक्षा अधिवेशन का आयोजन गौ-पुत्र सेना के तत्वावधान में किया गया। जिसमें लेखक को मुख्य वक्ता के रूप में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया। प्रस्तुत लेख उसी अधिवेशन में दिये गये भाषण और चिंतन पर आधारित है, इसका पहला भाग […]

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यदि आज महामति चाणक्य होते तो..भाग-1

आज की राजनीति में कांट-छांट, उठापटक, तिकड़मबाजी से काम निकालने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। कुटिल नीतियों से, छल-बल से, दम्भ से, पाखण्ड से अन्याय से, अत्याचार से किसी भी उचित अनुचित ढंग से अपने वैचारिक विरोधी को नीचा दिखाने की इस प्रवृत्ति को ही आज के राजनीतिज्ञों ने कूटिनीति की संज्ञा दे दी […]

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यह जनापेक्षाओं की जीत है

राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली प्रदेशों की विधानसभाओं के संपन्न हुए चुनावों ने जो परिणाम दिये हैं, उनसे स्पष्ट हो गया है कि देश की जनता परिवर्तन की पक्षधर है। लोकतंत्र में हम भूल जाते हैं कि जीत किसी पार्टी की नही हुआ करती है, अपितु जनापेक्षाओं की हुआ करती है। हां, जनापेक्षाओं को […]

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‘ये न्याय नही निर्णय है’

आरूषि-प्रकरण में न्यायालय ने आरूषि और नौकर हेमराज की हत्या के आरोप में तलवार दंपत्ति को दोषसिद्घ करार देते हुए आजन्म कारावास का दण्ड है। तलवार-दंपत्ति ने न्यायालय के इस निर्णय को चुनौती देने की घोषणा करते हुए कहा है कि वह दिये गये निर्णय से न्याय से वंचित किये गये हैं, इसलिए सक्षम न्यायालय […]

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बदहवास लोग और खोखले दरख्त

महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि रेगिस्तान में अरण्ड का पौधा भी बड़ा पेड़ दिखाई देता है। यही स्थिति समाज और राष्ट्र के लिए उस समय बन जाया करती है जब वास्तव में राष्ट्र में बड़े नेता ना हों और छोटे छोटे दीपक स्वयं को सूर्य समझने लगें या समझाने का प्रयास […]

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काँग्रेस और कम्युनिस्टों का छलिया लोकतंत्र

जब लार्ड मैकाले भारत आया था तो यहां की न्याय व्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक व्यवस्था को दखकर दंग रह गया था। उसके आने से पूर्व सदियों से भारत विदशी शासकों की दासता से लड़ रहा था, परंतु अपनी न्याय व्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक व्यवस्था को बचान में वह सफल रहा था। सैकड़ों वर्ष […]

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