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धर्म-अध्यात्म

हमारे पूर्वज पिताओं अर्थात् पितरों ने दिव्य ज्ञान कैसे प्राप्त किया?

हमारे पूर्वज पिताओं अर्थात् पितरों ने दिव्य ज्ञान कैसे प्राप्त किया? हमें परमात्मा की पूजा अर्थात् ईश्वर भक्ति के मार्ग का अनुसरण क्यों करना चाहिए?अपने जीवन को पूर्ण और संरक्षित कैसे करें? प्र वो महे महि नमो भरध्वमाङ्गूष्यं शवसानाय साम। येना नः पूर्वे पितरः पदज्ञा अर्चन्तो अङ्गिरसो गा अविन्दन् ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.62.2 (कुल मन्त्र […]

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संध्या क्या है?

संध्या शब्द ‘सम्’ उपसर्गपूर्वक ‘ध्यै चिन्तायाम्’ धातु से निष्पन्न होने से इसका अर्थ है- सम्यक् रूप से चिन्तन, मनन, ध्यान, विचार करना आदि। संध्या को परिभाषित करते हुए ऋषि दयानन्द पञ्चमहायज्ञ-विधि में लिखतेहैं- ‘सन्ध्यायन्ति सन्ध्यायते वा परब्रह्म यस्यां सा सन्ध्या’ अर्थात् जिसमें परब्रह्म परमात्मा का अच्छी प्रकार से ध्यान किया जाता है, उसे संध्या कहते […]

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ओ३म् “एक अकेला ईश्वर सृष्टि की उत्पत्ति व पालन कैसे कर सकता है?”

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। वैदिक धर्मी मानते हैं कि संसार में ईश्वर एक है और वही इस सृष्टि का रचयिता, पालनकर्ता तथा प्रलयकर्ता है। वही ईश्वर असंख्यजीवों के सभी कर्मों का साक्षी होता है तथा उन्हें उनके अनेक जन्म-जन्मान्तरों में सभी कर्मों के सुख व दुःख रूपी फल देता है। एक ईश्वरीय सत्ता के लिये […]

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आत्मा हमारे शरीर में कहां रहता है? भाग 20

गतांक से आगे20वीं किस्त। छांदोग्य उपनिषद के आधार पर पृष्ठ संख्या 814. प्रजापति और इंद्र की वार्ता। प्रजापति ने इंद्र से प्रश्न किया है। “हे इंद्र !यह शरीर निश्चय मरण धर्मा है, और मृत्यु से ग्रसा अर्थात ग्रसित है। यह शरीर उस अमर, शरीर रहित जीवात्मा का अधिष्ठान अर्थात निवास स्थान है। निश्चय शरीर के […]

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हमें परमात्मा की प्रशंसा और महिमा किस प्रकार करनी चाहिए?

परमात्मा की प्रशंसा और महिमागान के क्या परिणाम होते हैं? परमात्मा की प्रशंसा और महिमा के लिए मूल लक्षण क्या हैं? गौरवशाली सम्पदा क्या है? तं त्वा वयं पतिमग्ने रयीणां प्र शंसामो मतिभिर्गोतमासः। आशुं न वाजम्भरं मर्जयन्तः प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात् ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.60.5 (कुल मन्त्र 694) (तम्) उसको (त्वा) आप (वयम्) हम (पतिम्) स्वामी और […]

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आत्मा हमारे शरीर में कहां रहती है? भाग 19

गतांक से आगे 19वीं किस्त छांदोग्य उपनिषद के आधार पर। भारतीय मनीषा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण उपनिषद हैं। यह आध्यात्मिक चिंतन के सर्वोच्च नवनीत हैं ।’उपनिषद ‘शब्द का अर्थ ‘रहस्य’ भी है। उपनिषद अथवा ब्रह्म -विद्या अत्यंत गूढ होने के कारण साधारण विधाओं की भांति हस्तगत( प्राप्त)नहीं हो सकती ।इन्हें ‘रहस्य ‘कहा जाता है। इसके अतिरिक्त […]

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आत्मा के कल्याण की कौन इच्छा करता है?

आत्मा के कल्याण की कौन इच्छा करता है? कौन हमारे मन में निवास करता है? हमारी सम्पदा का स्वामी कौन है? कौन परमात्मा को हृदय में धारण करता है? किसकी सम्पदा परमात्मा की महिमा के साथ चमकती है? उशिक्पावको वसुर्मानुषेषु वरेण्यो होताधायि विक्षु। दमूना गृहपतिर्दम आँ अग्निर्भुवद्रयिपती रयीणाम् ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.60.4 (कुल मन्त्र 693) […]

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आत्मा शरीर में कहां रहता है? ___ भाग 18

18वीं किस्त छांदोग्य उपनिषद के आधार पर , हमारे इस शरीर को ब्रह्मपुर भी उपनिषद में कहा गया है। और उसमें जो अंतराकाश है उसको कमल ग्रह भी पुकारा गया है। पृष्ठ संख्या 787 “अब इस ब्रह्मपुर (शरीर) में जो यह सूक्ष्म कमल ग्रह है इसमें जो सूक्ष्म अंतराकाश है और उसमें जो स्थित है, […]

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आत्मा शरीर में कहां रहती है? भाग ___17

17वीं किस्त आत्मा का शरीर में महत्व कितना है? छांदोग्य उपनिषद पृष्ठ संख्या 776 (महात्मा नारायण स्वामी कृत,उपनिषद रहस्य, एकादशो पनिषद)पर इस विषय में बहुत ही महत्वपूर्ण और सुंदर विवरण आया है, जो निम्न प्रकार है। “आत्मा ही नीचे, आत्मा ही ऊपर, आत्मा ही पीछे अर्थात पश्चिम में, आत्मा ही पूर्व अर्थात आगे, आत्मा ही […]

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आत्मा शरीर में कहां रहती है? भाग 15

पृष्ठ संख्या 1149 (बृहदारण्यक उपनिषद) ” उस जीवन मुक्त के लिए जब तक वह शरीर में रहता है, नेत्र पुरुष– नेत्र शक्ति अर्थात आंखों की ज्योति सर से पांव तक ईश्वर के रूप में रंगी हुई रहती है। जब भी वह जीवन मुक्त आंखों से देखता है तो उस ईश्वर का स्वरूप उसे हर जगह […]

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