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धर्म-अध्यात्म

हम अग्निहोत्र किस उद्देश्य व लाभ प्राप्ति के लिये करते हैं?”

वेद ईश्वरीय ज्ञान है। वेदों का अध्ययन करते हैं तो यह ज्ञात होता है कि ईश्वर ने मनुष्यों को अग्निहोत्र करने की आज्ञा दी है। वेदों में अग्निहोत्र करने के अनेक वचन व वाक्य हैं। ऐसा ही यजुर्वेद के तीसरे अध्याय का प्रथम मन्त्र है ‘समिधाग्निं दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम्। आस्मिन् हव्या जुहोतन।।’ इसका अर्थ है समिधाओं […]

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धर्म-अध्यात्म

ईश्वरीय ज्ञान वेद के जन-जन में प्रचार के लिए समर्पित महर्षि दयानंद

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादूनवेद कहानी किस्से अथवा किसी धर्म प्रचारक मनुष्य के उपदेशों का ग्रन्थ नहीं है अपितु यह इस संसार की रचना करने व इसका पालन कर रहे सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान एवं सच्चिदानन्दस्वरूप परमात्मा का दिव्य ज्ञान है जो उसने सृष्टि के आरम्भ में चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा को अमैथुनी सृष्टि […]

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धर्म-अध्यात्म

हम कहां से आए हैं और हमें कहां जाना है

ओ३म्-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। हम सब मनुष्यों का कुछ वर्ष पूर्व इस संसार में जन्म हुआ है और तब से हम इस शरीर में रहते हुए अपना समय अध्ययन-अध्यापन अथवा कोई व्यवसाय करते हुए अपने सांसारिक कर्तव्यों का निर्वाह कर रहे हैं। जब हमारा जन्म हुआ था तो हम अपने माता के शरीर से इस […]

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धर्म-अध्यात्म

सत्यार्थ प्रकाश ‘एक अनुपम ग्रन्थ’ भाग-6

राकेश आर्य (बागपत) गतांक से आगे……. 28. जो दुष्टों का ताडऩ और अव्यत्क तथा परमाणुओं का अन्योअन्य संयोग या वियोग करता है, वह परमात्मा ‘जल’ संज्ञक कहाता है। 29. जो सब ओर से सब जगत् का प्रकाशक है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘आकाश’ है। 30,31,32. यह व्यासमुनिकृत शारीरक सूत्र है। जो सब को भीतर […]

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धर्म-अध्यात्म

सत्यार्थ प्रकाश ‘एक अनुपम ग्रन्थ’ भाग-5

राकेश आर्य (बागपत) महर्षि दयान्द सीधे-सीधे वेदों के मंत्रो से अर्थ करके बताते है कि परमेश्वर के जितने नाम है उन सबका अर्थ ओंकार से होता है। क्योंकि परमेश्वर उसको कहते है जो अपने गुण, कर्म, स्वभाव और सत्य-सत्य व्यवहार में न सिर्फ सब से अधिक हो, सबसे श्रेष्ठ भी हो तथा उसके तुल्य भी […]

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सत्यार्थ प्रकाश ‘एक अनुपम ग्रन्थ’ भाग-4

राकेश आर्य (बागपत) महर्षि दयानन्द का तात्पर्य बिलकुल साफ है सबसे पहले वेदानुसार वे परमेश्वर को निराकार अजर, अमर, अजन्मा, सर्वशक्तिमान तो बताते ही है साथ ही साथ ईश्वर एक है और सर्व व्यापक यानि कण-कण में विद्ममान मानते है अत: उसकी कोई प्रतिमा नहीं हो सकती है। विभिन्न नामों का वर्णन जैसे भाग-3 में […]

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धर्म-अध्यात्म

मेरठ में राष्ट्रीय स्वाभिमान की पुनस्र्थापना में आर्य समाज का योगदान, भाग-3

स्वामी दयानन्द की इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि महर्षि दयानंद सरस्वती जनता में इतना संभल कर बोलते थे कि स्वतंत्रता की भावना तो जनमानस में रच-बस जाए, परंतु क्रूर अंग्रेज शासकों के पंजे से भी बचा जा सके, स्वदेशी आंदोलन का प्रचार प्रसार करने, उसके लिए जनमत तैयार करने एवं पराकाष्ठा तक पहुंचाने में […]

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सत्यार्थ प्रकाश ‘एक अनुपम ग्रन्थ’ भाग-3

राकेश आर्य (बागपत)     देवियों और सज्जऩों ! आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने ‘सत्यार्थप्रकाश’ नामक ग्रन्थ की रचना करके मानव जाति का अवर्णनीय उपकार किया है। सत्य का ग्रहण और असत्य का परित्याग करना ही इस ग्रन्थ का मुख्य उद्देश्य है। जिसने भी इस ग्रन्थ को पूरा पढ़ा उसी का जीवन बदल […]

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मेरठ में राष्ट्रीय स्वाभिमान की पुनस्र्थापना में आर्य समाज का योगदान, भाग-2

पिछले अंक से आगे…. दयानंद महाविद्यालय गुरुकुल डौरली की स्थापना 1925 में हुई। श्री अलगू राय शास्त्री इसके प्रथम आचार्य नियुक्त हुए। इस विद्यालय की स्थापना हेतु भूमिदान पंडित शिव दयालु ने किया। यह विद्यालय प्रारंभ से ही राष्ट्रीयता की भावना को प्रभावी बनाने का कार्य करने लगा। फलस्वरूप गुरुकुल के आचार्यों, ब्रह्मचारियों तथा कर्मचारियों […]

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सत्यार्थ प्रकाश ‘एक अनुपम ग्रन्थ’ भाग-2

राकेश आर्य (बागपत)     देवियों और सज्जऩों ! आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने ‘सत्यार्थप्रकाश’ नामक ग्रन्थ की रचना करके मानव जाति का अवर्णनीय उपकार किया है। सत्य का ग्रहण और असत्य का परित्याग करना ही इस ग्रन्थ का मुख्य उद्देश्य है। जिसने भी इस ग्रन्थ को पूरा पढ़ा उसी का जीवन बदल […]

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