राकेश आर्य (बागपत) देवियों और सज्जऩों ! आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने ‘सत्यार्थप्रकाश’ नामक ग्रन्थ की रचना करके मानव जाति का अवर्णनीय उपकार किया है। सत्य का ग्रहण और असत्य का परित्याग करना ही इस ग्रन्थ का मुख्य उद्देश्य है। जिसने भी इस ग्रन्थ को पूरा पढ़ा उसी का जीवन बदल […]
श्रेणी: धर्म-अध्यात्म
पिछले अंक से आगे…. दयानंद महाविद्यालय गुरुकुल डौरली की स्थापना 1925 में हुई। श्री अलगू राय शास्त्री इसके प्रथम आचार्य नियुक्त हुए। इस विद्यालय की स्थापना हेतु भूमिदान पंडित शिव दयालु ने किया। यह विद्यालय प्रारंभ से ही राष्ट्रीयता की भावना को प्रभावी बनाने का कार्य करने लगा। फलस्वरूप गुरुकुल के आचार्यों, ब्रह्मचारियों तथा कर्मचारियों […]
राकेश आर्य (बागपत) देवियों और सज्जऩों ! आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने ‘सत्यार्थप्रकाश’ नामक ग्रन्थ की रचना करके मानव जाति का अवर्णनीय उपकार किया है। सत्य का ग्रहण और असत्य का परित्याग करना ही इस ग्रन्थ का मुख्य उद्देश्य है। जिसने भी इस ग्रन्थ को पूरा पढ़ा उसी का जीवन बदल […]
भारत में आर्य समाज की स्थापना चैत्र शुक्ल 5 विक्रम संवत् 1932 तदनुसार 10 अपै्रल 1875 को बम्बई में गिरगांव रोड स्थित डाक्टर माणिक चन्द की वाटिका में हुयी। बाद में इसने एक प्रभावी लोकप्रिय भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण आन्दोलन का रूप ले लिया। इसकी सक्रिय राष्ट्रवादी एवं सुधारात्मक गतिविधियों के कारण अंगे्रज सरकार आर्य समाज […]
देश के लगभग एक हजार केंद्रीय विद्यालयों में पढऩे वाले विद्यार्थियों को संस्कृत और हिंदी में प्रार्थना कराई जाती हैं। वर्षों से यह प्रार्थनाएं हो रही हैं। परंतु, आज तक देश में कभी विद्यालयों में होने वाली प्रार्थनाओं पर विवाद नहीं हुआ। कभी किसी को ऐसा नहीं लगा कि प्रार्थनाओं से किसी धर्म विशेष का प्रचार […]
भारतीय सांस्कृतिक जीवन में मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम को जो महत्व प्राप्त है, वही स्थान उनकी अद्र्धांगिनी सीता माता को भी प्राप्त है तथा जिस प्रकार समाज में रामनवमी का महात्म्य है, उसी प्रकार जानकी नवमी या सीता नवमी का भी महात्म्य माना जाता है । लोक मान्यतानुसार सीता नवमी के पावन पर्व पर व्रत रख […]
भारतीय सभ्यता – संस्कृति में वर्ष की सभी पूर्णिमाओं का अपना अलग विशिष्ट महत्व है परन्तु सभी पूर्णिमाओं में माघ मास की पूर्णिमा की तिथि अत्यंत पवित्र मानी गई है और इस दिन किए गए स्नान- ध्यान, यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्त्व माना जाता है। पौराणिक ग्रन्थों में माघ स्नान एवं माघी पूर्णिमा […]
भारतीय साहित्य की भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक और मैथिली भाषा के सर्वोपरि कवि के रूप में प्रख्यात विद्यापति का संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं मातृभाषा मैथिली पर समान अधिकार था। हिन्दी साहित्यभ के अभिनव जयदेव के नाम से प्रख्यात विद्यापति का बिहार प्रान्त के मिथि?ला क्षेत्रवासी होने के कारण इनकी भाषा मैथिल […]
पृथ्वी के उत्तर और दक्षिण में दो ध्रुव – उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव हैं। दोनों ध्रुवों को ही पृथ्वी की धुरी कहा जाता हैं और दोनों में ही असाधारण शक्ति केन्द्रीभूत मानी जाती हैं। इसी भान्ति चेतन तत्त्व के भी दो ध्रुव हैं जिन्हें माया और ब्रह्म कहा जाता है। जीव इन्हीं दोनों के […]
दो पैर वाले शरीरधारी प्राणी को मनुष्य कहते हैं। ज्ञान व कर्म की दृष्टि से इसके मुख्य दो भेद हैं। ज्ञानी व सदाचार मनुष्य को आर्य तथा ज्ञान व अज्ञान से युक्त आचारहीन मनुष्य को दस्यु कहते हैं। महषि दयानन्द जी ने ‘स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश’ में आर्य और दस्यु का भेद बताते हुए कहा है कि आर्य […]