ओ३म् ========== वेदों का आविर्भाव सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा से हुआ था। सृष्टि के आरम्भ में न कोई भाषा थी न ही ज्ञान। ज्ञान भाषा में ही निहित होता है। मनुष्यों की प्रथम उत्पत्ति से पूर्व भाषा व ज्ञान का होना असम्भव व अनावश्यक था। भाषा तो मनुष्यों की उत्पत्ति के बाद ही हो […]
Category: धर्म-अध्यात्म
ओ३म् ========== किसी भी वस्तु या पदार्थ का स्वरूप कुछ विशिष्ट गुणों को लिये हुए होता है। उन गुणों को जानकर उसके अनुरूप उसके बारे में विचार रखना व उसका सदुपयोग करना ही उचित होता है। ईश्वर भी एक द्रव्य व पदार्थ है जिसमें अपने कुछ गुण, कर्म व स्वभाव आदि हैं। हमें ईश्वर के […]
ओ३म् ========== हम इस संसार में रहते हैं और हमसे पहले हमारे पूर्वज इस सृष्टि में रहते आये हैं। संसार में प्रचलित मत-मतान्तर तो कोई लगभग दो हजार और कोई पन्द्रह सौ वर्ष पुराना है, कुछ इनसे भी अधिक प्राचीन और कुछ अर्वाचीन हैं, परन्तु यह सृष्टि वैदिक मत व गणना के अनुसार 1.96 अरब […]
========= मनुष्य विचार करे तो उसे संसार में अपने लिये सबसे अधिक महत्वपूर्ण व उपकारी माता-पिता का संबंध प्रतीत होता है। माता-पिता न होते तो हम व अन्य कोई मनुष्य इस कर्मभूमि रूपी संसार में जन्म नहीं ले सकता था। माता-पिता की भूमिका यदि जन्म तक ही सीमित होती तो भी उनका अपनी सन्तानों के […]
भारत की संस्कृति की अमूल्य धरोहर उपनिषद न केवल भारतीयों की आध्यात्मिक तृप्ति का साधन बने , अपितु उन्होंने अपने दिव्य ज्ञान की आभा से पश्चिमी विद्वानों को भी प्रभावित किया । अनेकों पश्चिमी विद्वानों ने भारत के उपनिषदों को पढ़कर अपने जीवन में भारी परिवर्तन किए । इतना ही नहीं कइयों ने तो बाइबल […]
ओ३म् =========== अपनी रक्षा करना प्रत्येक मनुष्य का धर्म व कर्तव्य है। यह रक्षा न केवल शत्रुओं से अपितु आदि-व्याधि वा रोगों से भी की जाती है। अपने चरित्र की रक्षा भी सद्नियमों के पालन से की जाती है। वेद व धर्म को खतरा किससे है? इसका उत्तर है कि जो वेद को नहीं मानते, […]
ओ३म् ============= महाभारत युद्ध के बाद देश का सर्वविध पतन व पराभव हुआ। इसका मूल कारण अविद्या था। महाभारत के बाद हमारे देश के पण्डित, ज्ञानी वा ब्राह्मण वर्ग ने वेद और विद्या के ग्रन्थों का अध्ययन-अध्यापन प्रायः छोड़ दिया था जिस कारण से देश के सभी लोग अविद्यायुक्त होकर असंगठित हो गये और ईश्वर […]
ओ३म् ============ यह निर्विवाद है कि मूल वेद संहितायें ही संसार में सबसे पुरानी पुस्तकें हैं। वेद शब्द का अर्थ ही ज्ञान होता है। अतः चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद ज्ञान की पुस्तकें हैं। इन चारों वेदों पर ऋषि दयानन्द का आंशिक और अनेक आर्य वैदिक विद्वानों का भाष्य वा टीकायें उपलब्ध हैं। […]
ओ३म ========== परमात्मा ने जीवात्माओं को स्त्री या पुरुष में से एक प्राणी बनाया है। हम सामाजिक प्राणी हैं। हम अकेले नहीं रह सकते। परिवार में माता-पिता, दादी-दादा, भाई-बहिन, बच्चे व अन्य कुटुम्बी-जन होते हैं। परिवार समाज की एक इकाई होता है। परिवार प्रायः संगठित होता है। जो परिवार विचारों एवं भावनाओं की दृष्टि से […]
=========== मनुष्यों की सन्तानें जन्म के समय व उसके बाद ज्ञान की दृष्टि से ज्ञानहीन होती हैं। उन बच्चों को उनके माता-पिता, कुटुम्बी जन तथा आचार्यगण ज्ञान देते हैं। यदि माता-पिता व आचार्य आदि बच्चों को ज्ञान न दें तो वह सद्ज्ञान व सद्गुणों का ग्रहण नहीं कर सकते। माता-पिता व आचार्यों का यही मुख्य […]