• महर्षि दयानंद सरस्वती का संदेश – वैज्ञानिक सोच (साइंटिफिक टेंपर) तथा प्रखर बुद्धिवाद को अपनाएं • डॉ. भवानीलाल भारतीय दयानन्द ने जहां मानव की चिन्तन-शृंखला को नये आयाम दिये हैं, वहां उनके क्रांतिकारी चिन्तन का एक प्रमुख सूत्र बुद्धिवाद तथा मानवी विवेक को अपने कार्य-अकार्य का पथ-निर्देशक बनाना भी था। उनका पदे पदे यह […]
Category: धर्म-अध्यात्म
=============== परमात्मा ने जीवात्मा को उसके पूर्वजन्म के कर्मानुसार मनुष्य जीवन एवं प्राणी योनियां प्रदान की हैं। हमारा सौभाग्य हैं कि हम मनुष्य बनाये गये हैं। मनुष्य के रूप में हम एक जीवात्मा हैं जिसे परमात्मा ने मनुष्य व अन्य अनेक प्रकार के शरीर प्रदान किये हैं। विचार करने पर ज्ञान होता है कि मनुष्य […]
============= वैदिक धर्म वेदों पर आधारित संसार का ज्ञान व विज्ञान सम्मत प्राचीनतम धर्म है। वैदिक धर्म का आरम्भ सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा द्वारा अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न आदि चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा को वेदों का ज्ञान देने के साथ आरम्भ हुआ था। वेद के मर्मज्ञ ऋषियों सहित ऋषि दयानन्द के […]
जीवन का अर्थ होता है, *”जीने का समय.”* जब कहते हैं, कि *”प्रत्येक व्यक्ति का जीवन बहुत मूल्यवान है।”* तो इसका अर्थ होता है, कि *”उसके पास जो एक दिन में 24 घंटे हैं, वे बहुत कीमती हैं। उन 24 घंटे में उसे नए पुण्य कर्म भी कमाने हैं, और पिछले कर्मों का फल भी […]
-अशोक “प्रवृद्ध” वर्तमान में नवरात्र में अष्टभुजाओं वाली भगवती दुर्गा की प्रतिमा स्थापन, पूजन, आराधना की परिपाटी है। भगवती दुर्गा की प्रतिमा में हाथों की संख्या विभिन्न पुराणों में अलग-अलग अंकित है। वराह पुराण 95/41 में अंकित है कि माता वाराही अपनी बीस हाथों में अस्त्र-शस्त्र एवं धार्मिक-सांस्कृतिक प्रतीकों- शंख,चक्र, गदा, पद्म, शक्ति, महोल्का, हल,मूसल, […]
-अशोक “प्रवृद्ध” वैदिक मतानुसार वेद सब सत्य विधाओं की पुस्तक है। वेद अपौरुषेय हैं। वेद ईश्वर की वाणी है। वेद सब सत्य विद्याओं का मूल है। इसलिए केवल वेद विद्या पर ही विश्वास करना चाहिए। ईश्वर प्राप्ति का एकमात्र उपाय महर्षि पतंजलि प्रणीत यम ,नियम, आसान, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि है। महर्षि दयानंद सरस्वती […]
एक समय वह भी था जब सारे संसार का एक ही धर्म था-वैदिक धर्म।एक ही धर्मग्रन्थ था वेद।एक ही गुरु मंत्र था-गायत्री।सभी का एक ही अभिवादन था-नमस्ते।एक ही विश्वभाषा थी-संस्कृत।और एक ही उपास्य देव था-सृष्टि का रचयिता परमपिता परमेश्वर,जिसका मुख्य नाम ओ३म् है।तब संसार के सभी मनुष्यों की एक ही संज्ञा थी-आर्य।सारा विश्व एकता के […]
वेद मे जीवात्मा
================== अपश्यं गोपामनिपद्यमानमा च परा च पथिभिश्चरन्तम् | स सध्रीची: स विषूचीर्वसान आ वरीवर्ति भुवनेष्वन्त: || ऋग्वेद 1.164.31 शब्दार्थ : अनिपद्यमानम् = अविनाशी आ = सीधे = आगे च = और परा = उलटे, वापसी च = भी पथिभि: = मार्गों से चरन्तम् = विचरण करनेवाले गोपाम् = इन्द्रियों के स्वामी को अपश्यम् = मैने […]
============= हमारी यह सृष्टि सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सच्चिदानन्दस्वरूप, अनादि व नित्य परमात्मा से बनी है। ईश्वर, जीव तथा प्रकृति तीन अनादि व नित्य सत्तायें हैं। सृष्टि प्रवाह से अनादि है। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति तथा प्रलय का क्रम अनादि काल से चला आ रहा है और अनन्त काल तक चलता रहा है। सभी अनन्त […]
============ संसार की अधिकांश जनसंख्या ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करती है। बहुत बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी किसी न किसी रूप में इस सृष्टि को बनाने व चलाने वाली सत्ता के होने का संकेत करते हुए उसे दबी जुबान से स्वीकार करते हैं। हमारा अनुमान व विचार है कि यदि यूरोप के वैज्ञानिकों ने वेदों को […]