कुटिलता युक्त पाप रूप कर्म स्पष्ट है कि ऐसा उत्तम प्रशंसनीय और अनुकरणीय जीवन यज्ञमयी परोपकारी भावना को आत्मसात करने से ही बनेगा। जिसके जीवन में यज्ञोमयी भावना नही, वह तो निरा लोहा होता है। लोहा लाल होकर भी भट्टी से निकलते ही जैसे ही ठण्डा होता है तो फिर काला पड़ जाता है। इसी […]
श्रेणी: धर्म-अध्यात्म
कुटिलता युक्त पाप रूप कर्म स्पष्ट है कि ऐसा उत्तम प्रशंसनीय और अनुकरणीय जीवन यज्ञमयी परोपकारी भावना को आत्मसात करने से ही बनेगा। जिसके जीवन में यज्ञोमयी भावना नही, वह तो निरा लोहा होता है। लोहा लाल होकर भी भट्टी से निकलते ही जैसे ही ठण्डा होता है तो फिर काला पड़ जाता है। इसी […]
अश्वमेध अधिक रचनाएं यज्ञ पर उपकार को भाग 4 सत्य को अपनाएं हमारी संस्कृति कहती है-‘‘मिथ्या को छोड़ें और सत्य को अपनायें। सरल रहें , अभिमान न करें। स्तुति करें-निंदा न करें। नीचे आसन पर बैठें-ऊंचे न बैठें। शांत रहें, चपलता न करें। आचार्य की ताडऩा पर प्रसन्न रहें, क्रोध कभी न करें। जब कुछ […]
प्रियांशु सेठ हिन्दू समाज में मान्यता है कि वेद में उसी शिव का वर्णन है जिसके नाम पर अनेक पौराणिक कथाओं का सृजन हुआ है। उन्हीं शिव की पूजा-उपासना वैदिक काल से आज तक चली आती है। किन्तु वेद के मर्मज्ञ इस विचार से सहमत नहीं हैं।उनके अनुसार वेद तथा उपनिषदों का शिव निराकार ब्रह्म […]
पूजनीय प्रभु हमारे , अध्याय 5 अश्वमेध क्या है ? अब आते हैं इस अध्याय के उस विषय पर जो इसके शीर्षक में लिखा है कि-‘अश्वमेधादिक रचायें…..।’ इसमें यह अश्वमेध क्या है? कुछ लोगों ने अश्वमेध का बड़ा ही घृणास्पद अर्थ कर दिया, जिससे घोड़े को मार कर यज्ञ करना-ऐसा अर्थ अभिप्रेत कर लिया गया, […]
पूजनीय प्रभु हमारे… अध्याय — 4 जीवन एक साधना है, इतनी ऊंची साधना कि जिसकी ऊंचाई को कोई नाप नही सकता। जितनी ऊंची जिसकी साधना होती है उतना ही महान उसका जीवन होता है। भारत में हमारे पूर्वजों ने दीर्घकाल तक महान जीवन की महान साधना की, जिसके परिणाम स्वरूप युग-युगों तक यह विश्व जीवन […]
✍🏻 लेखक – पदवाक्यप्रमाणज्ञ पण्डित ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु प्रस्तुति – 🌺 ‘अवत्सार’ इसके दो ही प्रकार हो सकते हैं, कि या तो जगदीश्वर ने आदि मनुष्यों वा ऋषियों को आजकल की भाँति बैठकर पढ़ाया वा लिखकर दे दिया या लिखा दिया हो, यह सब एक ही प्रकार कहा जा सकता है और ईश्वर के शरीरधारी होने […]
✍🏻 लेखक – पदवाक्यप्रमाणज्ञ पण्डित ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु प्रस्तुति – 🌺 ‘अवत्सार’ इसके दो ही प्रकार हो सकते हैं, कि या तो जगदीश्वर ने आदि मनुष्यों वा ऋषियों को आजकल की भाँति बैठकर पढ़ाया वा लिखकर दे दिया या लिखा दिया हो, यह सब एक ही प्रकार कहा जा सकता है और ईश्वर के शरीरधारी होने […]
पूजनीय प्रभो हमारे…… अध्याय 2 प्रार्थना की अगली पंक्ति-‘छोड़ देवें छल-कपट को मानसिक बल दीजिए’ है। यह पंक्ति भी बड़ी सारगर्भित है। इसमें भी भक्त अपने शुद्घ, पवित्र अंतर्मन से पुकार रहा है कि मेरे हृदय में कोई कपट कालुष्य ना हो, कोई मलीनता न हो । यह पंक्ति पहली वाली पंक्ति अर्थात ‘पूजनीय प्रभो! […]
पूजनीय प्रभो हमारे… अध्याय 1, जब हम किसी भी शुभ अवसर पर या नित्य प्रति दैनिक यज्ञ करते हैं तो उस अवसर पर हम यह प्रार्थना अवश्य बोलते हैं :– पूजनीय प्रभो हमारे, भाव उज्ज्वल कीजिये । छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिये ।। 1।। वेद की बोलें ऋचाएं, सत्य को धारण करें […]