एक राजा का मंत्री अपने हर कार्य को ईश्वरीय इच्छा से संपन्न हुआ मानने का अभ्यासी था। वह हर कार्य पर यही कहता था कि ईश्वर जो करते हैं अच्छा ही करते हैं। एक बार वह मंत्री अपने राजा के साथ जंगल में शिकार खेलने गया था, शिकार खेलते-खेलते किसी कारणवश राजा की अपनी तलवार […]
श्रेणी: धर्म-अध्यात्म
जब तक ऐसी स्थिति किसी साधक की नहीं बनती है तब तक वह श्रद्घालु नही बन पाता है। आर्य वेदधर्म से इतर जितने भी मत-पंथ या संप्रदाय है, उन सबमें भी श्रद्घा को प्रमुखता प्रदान की गयी है। परंतु उनमें और वैदिक धर्म में अंतर केवल यह है कि ये अन्य मत वाले लोग श्रद्घा […]
‘सत्यार्थ-प्रकाश’ के ‘नवम समुल्लास’ में एक प्रश्न किया गया है कि मुक्ति के साधन क्या हैं? इस पर महर्षि दयानंद जी महाराज लिखते हैं :- (1) ‘‘जो मुक्ति चाहे वह जीवनमुक्त अर्थात जिन मिथ्याभाषाणादि पापकर्मों का फल दुख है, उनको छोड़ सुख रूप फल को देने वाले सत्यभाषाणादि धर्माचरण अवश्य करे। जो कोई दुख का […]
‘‘महर्षि याज्ञवल्क्य की दो पत्नियां थीं । एक दिन उन्होंने अपनी पत्नियों को बुलाकर कहा – ” मैं दीक्षा लेना चाहता हूं। तुम दोनों परस्पर मेरी सारी संपत्ति का विभाजन कर लो और सुख शांति के साथ जीवन यापन करो।’’ उनकी एक पत्नी का नाम मैत्रेयी था। तब उस पत्नी ने पूछा-‘‘मुझे बंटवारे में जो […]
बिखरे मोती सूर्य की किरणों में सात प्रकार के रंग होते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अनेकों प्रकार से लाभप्रद होते हैं, जैसे – सूर्य की किरणों से ही हमें विटामिन ‘सी’ तथा विटामिन ‘डी’ की प्राप्ति होती है। सूर्य की किरणें अथहा ऊर्जा का भंडार हैं। जिन देशों में सूर्य की धूप नहीं […]
अनूपशहर में महर्षि का आगमन सात बार हुआ। अनूपशहर लघु काशी के नाम से जाना जाता है । यहां कबीर के समकालीन सेनापति कवि हुए हैं । यहां का मस्तराम घाट महर्षि की तप:स्थली रही है । आज मस्तराम गंगा घाट देखने योग्य है । अनूपशहर कभी आर्य समाज का बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता […]
जिस प्रकार हमारा धर्म हमें उत्तम ज्ञानवान बनाना चाहता है उसी प्रकार हमारी मर्यादा हमारे उत्तम ज्ञान को संसार के कल्याण के लिए व्यय कराना चाहती है। वह हमें संसार के कल्याण मार्ग का पथिक बनाकर उत्कृष्ट जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। इस प्रकार इस संगम पर आकर धर्म और मर्यादा एक ही […]
कृतज्ञ बनो जब हम अपने गंतव्यस्थल पर पहुंचे तो हमारा धर्म और हमारी मर्यादा हमसे कह उठे कि इस मार्ग में जिन-जिन लोगों ने जितनी देर तक और जितनी दूर तक साथ दिया उन सबका आभार व्यक्त कर। यह मत सोच कि यहां तक मैं अकेला ही आ गया हूं, तुझे अपने कदमों के साथ […]
पूजनीय प्रभो हमारे……अध्याय 6 किसी कवि ने कितना सुंदर कहा है :- ‘‘न हो दुश्मनों से मुझे गिला करूं मैं बदी की जगह भला। मेरे लब से निकले सदा दुआ, कोई चाहे कष्ट हजार दे।। नही मुझको ख्वाहिशें मरतबा, न है मालोजर की हवस मुझे। मेरी उम्र खिदमते खल्क में, मेरे हे पिता ! तू […]
कुटिलता युक्त पाप रूप कर्म स्पष्ट है कि ऐसा उत्तम प्रशंसनीय और अनुकरणीय जीवन यज्ञमयी परोपकारी भावना को आत्मसात करने से ही बनेगा। जिसके जीवन में यज्ञोमयी भावना नही, वह तो निरा लोहा होता है। लोहा लाल होकर भी भट्टी से निकलते ही जैसे ही ठण्डा होता है तो फिर काला पड़ जाता है। इसी […]