वैदिक संस्कृति में गृहस्थ धर्म को सर्वोत्तम माना गया है। वेद ने एक सदगृहस्थ का चित्र खींचते हुए कहा है :- ”तुम दोनों व्यवहारों में (पति-पत्नी की ओर संकेत है) सदा सत्य बोलते हुए भरपूर धन कमाओ। हमारी प्रभु से कामना है कि यह पत्नी तुझ पति के साथ प्रेम से रहे, पति भी मधुर […]
श्रेणी: धर्म-अध्यात्म
ओ३म् ============ हमारा यह ब्रह्माण्ड स्वयं नहीं बना। संसार की कोई भी उपयोगी वस्तु स्वतः नहीं बनती अपितु इन्हें कुछ ज्ञान-विज्ञान से पूर्ण मनुष्यों द्वारा उत्पन्न किया जाता है। किसी भी वस्तु की रचना के तीन प्रमुख कारण होते हैं। प्रथम कारण चेतन निमित्त कर्ता हुआ करता है। दूसरा प्रमुख कारण उपादान कारण होता है […]
भाग 73 दसवाँ समुल्लास राकेश आर्य बागपत अथ दशमसमुल्लासारम्भः अथाऽऽचाराऽनाचारभक्ष्याऽभक्ष्यविषयान् व्याख्यास्यामः इस समुल्लास में महऋषि दयानन्द सरस्वती धर्मयुक्त कामों का आचरण, सुशीलता, सत्पुरुषों का संग, सद्विद्या के ग्रहण में रुचि आदि आचार और इन से विपरीत अनाचार कहाता है; तथा मनुष्य को क्या खाना चाहिये और क्या नही खाना चाहिए उस को लिखते हैं- विद्वद्भिः […]
बाबा रामदेव ने अपनी विलुप्त होती जा रही चिकित्सा प्रणाली को पुनर्जीवन देकर लोगों को ध्यान आयुर्वेद की ओर मोडऩे में भी भारी सफलता प्राप्त की है। वेद कहता है :– असूर्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृता:। तांस्ते प्रेत्यापि गच्छन्ति ये के चात्महनो जना:।। (यजु. अ. 40) अर्थात जो लोग आत्मा के विरूद्घ कार्य करते […]
वेद, सृष्टि का पहला ग्रंथ है । इसे आदि संविधान के नाम से भी जाना जा सकता है । वास्तव में संसार चक्र को चलाना और इसकी अनजानी अनेकों उलझनों को या गुत्थियों को सुलझाने के सारे उपाय सृष्टि प्रारंभ में ईश्वर ने वेद के माध्यम से मनुष्य को प्रदान किये । भारतीय संस्कृति में […]
ओ३म् =========== संसार में अनेक मत-मतान्तर एवं संस्थायें हैं जो अतीत में भिन्न-भिन्न लोगों द्वारा स्थापित की गई हैं व अब की जाती हैं। इन संस्थाओं को स्थापित करने का इसके संस्थापकों द्वारा कुछ प्रयोजन व उद्देश्य होता है। सभी लोग पूर्ण विज्ञ वा आप्त पुरुष नहीं होते। वह सभी अल्पज्ञ ही होते हैं। अल्पज्ञ […]
अब जिस-जिस गुण से जिस-जिस गति को जीव प्राप्त होता है उस-उस को आगे 11 श्लोकों के द्वारा लिखते हैं- देवत्वं सात्त्विका यान्ति मनुष्यत्वञ्च राजसाः। तिर्यक्त्वं तामसा नित्यमित्येषा त्रिविधा गतिः।।१।। से इन्द्रियाणां प्रसंगेन धर्मस्यासेवनेन च। पापान् संयान्ति संसारान् अविद्वांसो नराधमाः।।११।। तक जो मनुष्य सात्त्विक हैं वे देव अर्थात् विद्वान्, जो रजोगुणी होते हैं वे मध्यम […]
✍🏻 लेखक – पदवाक्यप्रमाणज्ञ पण्डित ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु प्रस्तुति – 🌺 ‘अवत्सार’ इसके दो ही प्रकार हो सकते हैं, कि या तो जगदीश्वर ने आदि मनुष्यों वा ऋषियों को आजकल की भाँति बैठकर पढ़ाया वा लिखकर दे दिया या लिखा दिया हो, यह सब एक ही प्रकार कहा जा सकता है और ईश्वर के शरीरधारी होने […]
यज्ञ का स्थान बहुत ही शुद्घ और पवित्र रखना चाहिए। उसकी शुद्घता और पवित्रता हमारे हृदय को प्रभावित करती है, दुर्गंधित स्थान पर बैठकर हमें उसकी दुर्गंध ही कष्ट पहुंचाती रहेगी, और हमारा मन ईश्वर के भजन में नही लगेगा और न ही हमें यज्ञ जैसे पवित्र कार्य में कोई आनंद आएगा। यज्ञ का स्थान […]
लेखक- पण्डित हरिदेव जी तर्क केसरी प्रस्तुति- ज्ञान प्रकाश वैदिक प्रश्न १- नास्तिक का क्या लक्षण है? अर्थात् नास्तिक किसे कहते हैं? उत्तर- जो ईश्वर की सत्ता से इन्कार करे वह मुख्य रूप से नास्तिक कहा जाता है। परन्तु स्वामी दयानन्द सरस्वती ने दस प्रकार के लोगों को नास्तिक संज्ञा दी है। यथा- (१) जो […]