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धर्म-अध्यात्म

कंकर कंकर में है शंकर

इस प्रकार जब हम यह कहते हैं कि ‘कंकर-कंकर में शंकर हैं’-तो उसका अभिप्राय यही है कि हर कंकर शंकर का निर्माण करने में सहायक है। इसे आप यूं भी कह सकते हैं कि जब हर ‘कंकर’ की एक दूसरे के साथ जुडऩे की भावना होती है तो वह एक विशाल चित्र का रूप बन […]

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शरीर के आठ चक्रों और प्राणायाम का संबंध

मानव शरीर में कुल 8 चक्र होते हैं । जिनका प्राणायाम से भी बड़ा गहरा संबंध है । इस अध्याय में हम यही स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे कि प्राणायाम के करने से चक्रों को कैसे सकारात्मक ऊर्जा और शक्ति प्राप्त होती है ?अथर्ववेद का यह मंत्र है :-अष्टाचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या, तस्यां हिरण्यमय: कोश […]

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धर्म-अध्यात्म

आज क्या हो गई है देश की स्थिति

  देश से वेद-विद्या लुप्त की जा रही है, और देश का मूल संस्कार परमार्थ के स्थान पर स्वार्थ बनाया जा रहा है। देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली और बाजारीकरण पर केन्द्रित देश की अर्थव्यवस्था इस स्थिति के लिए उत्तरदायी हैं। सर्वत्र मारा-मारी और एक दूसरे के अधिकारों के हनन की भावना मनुष्य पर हावी […]

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क्या है भारत का अष्टांग योग?

युधिष्ठिर धर्म के अनुसार आचरण करने वाले होने के कारण ‘धर्मराज’ कहलाए । जिनके मन, वचन और कर्म में सदा सत्य समाहित होता था । इसी प्रकार से रघुकुल में अयोध्या के राजा हरिश्चंद्र ने धर्म की रक्षा के लिए वाराणसी अर्थात काशी में स्वयं अपने आप को और अपने पुत्र व पत्नी को भंगी […]

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इदं न मम की भारतीय परंपरा

भारत में अत्यंत प्राचीन काल से ‘इदन्नमम्’ की सार्थक जीवन परंपरा रही है और हमारे पूर्वजों ने इसी सार्थक जीवन परंपरा के माध्यम से विश्व व्यवस्था का विकास किया है। इस परंपरा का प्रारंभ देखिये कहां से होता है? निश्चय ही उस पल से जब ईश्वर ने अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा नाम के ऋषियों […]

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चित्त की वृत्तियां और उनका निरोध

हमारे शरीर में स्थित अंतःकरण में चित्त स्थित होकर अपना कार्य करता है। उसका बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। चित् से वृत्तियां उठा करती हैं। चित्त से उठने वाली ये वृत्तियां दो प्रकार की होती हैं – प्रथम बहुमुखी और द्वितीय अंतर्मुखी। मनुष्य को सफल जीवन जीने के लिए चित्त की वृत्तियों को एकाग्र करना […]

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संकल्प के धनी व्यक्ति ही पाते हैं मंजिल

इस पर भर्तृहरिजी अपने एक श्लोक में प्रकाश डालते हैं :- क्वाचिद्भूमौ शय्याक्वचिदपि च पर्यंकशयनम् क्वचिच्छाकाहारी क्वचिदपि च शाल्योदन रूचि:। क्वचिन्तकन्थाधारी क्वचिदपि च दिव्याम्बर धरो, मनस्वी कार्यार्थी न गणपति दुखं न च सुखम्।। (नीतिशतक 83) भर्तहरि जी स्पष्ट कर रहे हैं कि जो व्यक्ति संकल्प शक्ति के धनी होते हैं, विचारधील और उद्यमी होते हैं, […]

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धर्म-अध्यात्म

अग्निहोत्र यज्ञ से रोग निवारण पर शोध एवं अनुसंधान की आवश्यकता

मनमोहन कुमार आर्य यज्ञ के अनेक प्रकार के भौतिक एवं आध्यात्तिमक लाभ होते हैं। यज्ञ से स्वस्थ जीवन सहित रोग निवारण भी होते हैं। यज्ञ से रोग निवारण के बारे में देश की जनता को ज्ञान नहीं है। ऋषि दयानन्द ने यज्ञ के लाभों का वर्णन करते हुए लिखा है कि देवयज्ञ न करने से […]

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ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है – प्रमाणों के आधार पर

मनमोहन कुमार आर्य प्रायः सभी मत–मतान्तरों में ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है परन्तु उनमें से कोई ईश्वर के यथार्थ स्वरूप को जानने तथा उसका अनुसंधान कर उसे देश–देशान्तर सहित अपने लोगों में प्रचारित करने का प्रयास नहीं करते। ईश्वर यदि है तो वह दीखता क्यों नहीं है, इसका उत्तर भी मत–मतान्तरों के […]

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ओ३म के उपासक महर्षि दयानंद एक देश और एक देव के समर्थक थे

(ओ३म )”ओंकार शब्द परमेश्वर का सर्वोत्तम नाम है , क्योंकि इसमें जो अ, उ और म तीन अक्षर मिलकर एक ‘ओ३म’ समुदाय हुआ है इस एक नाम से परमेश्वर के बहुत नाम आते हैं । जैसे अकार विराट , अग्नि , और विश्व आदि । उकार हिरण्यगर्भ , वायु और तैजस आदि ,मकार ईश्वर ,आदित्य […]

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