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धर्म-अध्यात्म

ऋतम्भरा तुलाधार और जाजलि

ॐ ।। आध्यात्मिक योग यात्रा ।। ॐ काशी में तुलाधार नामक वैश्य रहते थे, जो भक्तिमान, कर्तव्यनिष्ठ, धर्मात्मा, चिन्तनशील और सत्यवादी थे। ये व्यापार करते हुए भी जल में रहने वाले कमलपत्र के समान निर्लिप्त रहे। प्राणिमात्र के साथ प्रेम का व्यापार करते थे। श्रद्धा, सदाचार, वर्णाश्रम, धर्म,समता सत्य और निष्काम सेवा आदि गुणों के […]

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ओ३म् “वैदिक धर्म एवं संस्कृति की रक्षा गुरुकुलीय शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार से ही सम्भव”

============ वेद ईश्वरीय ज्ञान होने के साथ धर्म और संस्कृति सहित सभी विद्याओं का आदि स्रोत भी है। वेद धर्म व संस्कृति विषयक पूर्ण ज्ञान प्रस्तुत करता है। वेदों की विद्यमानता में धर्म व संस्कृति के ज्ञान व उसके प्रचार व प्रचलन के लिये किसी अन्य ज्ञान की पुस्तक की आवश्यकता नहीं है। वेद नित्य […]

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महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के अमूल्य उपदेश

प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ भाग 1 १. जैसे शीत से आतुर पुरुष का अग्नि के पास जाने से शीत निवृत्त हो जाता है वैसे परमेश्वर के समीप प्राप्त होने से सब दोष दुःख छूटकर परमेश्वर के गुण कर्म स्वभाव के सदृश जीवात्मा के गुण कर्म स्वभाव पवित्र हो जाते हैं। (सत्यार्थप्रकाश समुल्लास ७) २. जो परमेश्वर […]

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2 सितम्बर विश्व नारियल दिवस- नारियल सनातन और पूरा फल; जो भोजन आय और कल्याणक है

– सुरेश सिंह बैस” शाश्वत” एवीके न्यूज सर्विस भारत समेत एशिया-प्रशांत क्षेत्र के कई देशों में 2 सितंबर को हर साल ‘विश्व नारियल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य नारियल के महत्व और निवेश को प्रोत्साहित करने, गरीबी को कम करने और नारियल उद्योग के विकास को बढ़ावा देने […]

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हमारे पूर्वज पिताओं अर्थात् पितरों ने दिव्य ज्ञान कैसे प्राप्त किया?

हमारे पूर्वज पिताओं अर्थात् पितरों ने दिव्य ज्ञान कैसे प्राप्त किया? हमें परमात्मा की पूजा अर्थात् ईश्वर भक्ति के मार्ग का अनुसरण क्यों करना चाहिए?अपने जीवन को पूर्ण और संरक्षित कैसे करें? प्र वो महे महि नमो भरध्वमाङ्गूष्यं शवसानाय साम। येना नः पूर्वे पितरः पदज्ञा अर्चन्तो अङ्गिरसो गा अविन्दन् ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.62.2 (कुल मन्त्र […]

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संध्या क्या है?

संध्या शब्द ‘सम्’ उपसर्गपूर्वक ‘ध्यै चिन्तायाम्’ धातु से निष्पन्न होने से इसका अर्थ है- सम्यक् रूप से चिन्तन, मनन, ध्यान, विचार करना आदि। संध्या को परिभाषित करते हुए ऋषि दयानन्द पञ्चमहायज्ञ-विधि में लिखतेहैं- ‘सन्ध्यायन्ति सन्ध्यायते वा परब्रह्म यस्यां सा सन्ध्या’ अर्थात् जिसमें परब्रह्म परमात्मा का अच्छी प्रकार से ध्यान किया जाता है, उसे संध्या कहते […]

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ओ३म् “एक अकेला ईश्वर सृष्टि की उत्पत्ति व पालन कैसे कर सकता है?”

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। वैदिक धर्मी मानते हैं कि संसार में ईश्वर एक है और वही इस सृष्टि का रचयिता, पालनकर्ता तथा प्रलयकर्ता है। वही ईश्वर असंख्यजीवों के सभी कर्मों का साक्षी होता है तथा उन्हें उनके अनेक जन्म-जन्मान्तरों में सभी कर्मों के सुख व दुःख रूपी फल देता है। एक ईश्वरीय सत्ता के लिये […]

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आत्मा हमारे शरीर में कहां रहता है? भाग 20

गतांक से आगे20वीं किस्त। छांदोग्य उपनिषद के आधार पर पृष्ठ संख्या 814. प्रजापति और इंद्र की वार्ता। प्रजापति ने इंद्र से प्रश्न किया है। “हे इंद्र !यह शरीर निश्चय मरण धर्मा है, और मृत्यु से ग्रसा अर्थात ग्रसित है। यह शरीर उस अमर, शरीर रहित जीवात्मा का अधिष्ठान अर्थात निवास स्थान है। निश्चय शरीर के […]

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हमें परमात्मा की प्रशंसा और महिमा किस प्रकार करनी चाहिए?

परमात्मा की प्रशंसा और महिमागान के क्या परिणाम होते हैं? परमात्मा की प्रशंसा और महिमा के लिए मूल लक्षण क्या हैं? गौरवशाली सम्पदा क्या है? तं त्वा वयं पतिमग्ने रयीणां प्र शंसामो मतिभिर्गोतमासः। आशुं न वाजम्भरं मर्जयन्तः प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात् ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.60.5 (कुल मन्त्र 694) (तम्) उसको (त्वा) आप (वयम्) हम (पतिम्) स्वामी और […]

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आत्मा हमारे शरीर में कहां रहती है? भाग 19

गतांक से आगे 19वीं किस्त छांदोग्य उपनिषद के आधार पर। भारतीय मनीषा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण उपनिषद हैं। यह आध्यात्मिक चिंतन के सर्वोच्च नवनीत हैं ।’उपनिषद ‘शब्द का अर्थ ‘रहस्य’ भी है। उपनिषद अथवा ब्रह्म -विद्या अत्यंत गूढ होने के कारण साधारण विधाओं की भांति हस्तगत( प्राप्त)नहीं हो सकती ।इन्हें ‘रहस्य ‘कहा जाता है। इसके अतिरिक्त […]

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