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धर्म-अध्यात्म

वेदों और वेद अनुकूल शिक्षाओं से ही जीवन में उन्नति संभव

ओ३म् =========== मनुष्य जो भी कर्म करता है उससे उसे लाभ व हानि दोनों में से एक अवश्य होता है। लाभ उन कर्मों से होता है जो उसके वास्तविक कर्तव्य होते हैं। मनुष्य का प्रथम कर्तव्य अपने स्वास्थ्य की रक्षा करना है। इसके लिये समय पर सोना व जागना, प्रातः ब्राह्म मुहुर्त में 4.00 बजे […]

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धर्म-अध्यात्म

वैदिक सिद्धांतों का पालन ही आदर्श मानव जीवन का पर्याय है

संसार में अनेक मत-मतान्तर प्रचलित हैं। जो मनुष्य जिस मत व सम्प्रदाय का अनुयायी होता है वह अपने मत, सम्प्रदाय व उसके आद्य आचार्य के जीवन की प्रेरणा से अपने जीवन को बनाता व उनके अनुसार व्यवहार करता है। महर्षि दयानन्द सभी मत व सम्प्रदायों के आचार्यों से सर्वथा भिन्न थे और उनकी शिक्षायें भी […]

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धर्म-अध्यात्म

धर्म सत्य गुणों के धारण और वेद अनुकूल आचरण को कहते हैं

मनुष्य की प्रमुख आवश्यकता सद्ज्ञान है जिससे युक्त होकर वह अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत कर सके और संसार व जीवन विषयक सभी शंकाओं व प्रश्नों के सत्य उत्तर वा समाधान प्राप्त कर सके। यह कार्य कैसे सम्भव हो? यदि सृष्टि के आरम्भ की स्थिति पर विचार करें तो परिस्थितियों के आधार पर यह स्वीकार करना […]

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धर्म-अध्यात्म

सत्यार्थ प्रकाश अविद्या दूर करने और विद्या वृद्धि करने वाला ग्रंथ है

सत्यार्थप्रकाश ऋषि दयानन्द द्वारा सन् 1874 में लिखा गया ग्रन्थ है। ऋषि दयानन्द ने सन् 1883 में इसको संशोधित किया जिसका प्रकाशन उनकी मृत्यु के पश्चात सन् 1884 में हुआ था। यही ग्रन्थ आजकल ऋषि की प्रतिनिधि संस्था आर्यसमाज द्वारा प्रचारित होता है। सत्यार्थप्रकाश का उद्देश्य इसके नाम में ही निहित है। असत्य को दूर […]

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धर्म-अध्यात्म

आत्मा की उन्नति के बिना सामाजिक और देशोन्नती संभव नहीं

मनुष्य मननशील प्राणी को कहते हैं। मनन का अर्थ सत्यासत्य का विचार करना होता है। सत्यासत्य के विचार करने की सामथ्र्य मनुष्य को विद्या व ज्ञान की प्राप्ति से होती है। विद्या व ज्ञान प्राप्ति के लिये बाल्यावस्था में किसी आचार्य से किसी पाठशाला, गुरुकुल या विद्यालय में अध्ययन करना होता है। विद्या प्राप्ति के […]

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धर्म-अध्यात्म

संसार की सभी अपौरुषेय रचनाएं ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण

अधिकांश मनुष्यों को यह नहीं पता कि संसार में ईश्वर है या नहीं? जो ईश्वर को मानते हैं वह भी ईश्वर के पक्ष में कोई ठोस प्रमाण प्रायः नहीं दे पाते। ऋषि दयानन्द ने अपने समय में ईश्वर की उपस्थिति व अस्तित्व के विषय में विचार कर स्वयं ही ईश्वर के होने के प्रमाण अपने […]

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धर्म-अध्यात्म समाज

महर्षि मनु की सामाजिक व्यवस्था और कर्माशय

मनुस्मृति में उल्लेख मिलता है कि गुरुजन वृद्धजन, माता-पिता और सज्जन के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करने से व्यक्ति की आयु ,विद्या ,यश और बल में वृद्धि होती है ।अद्भुत लाभों का वैज्ञानिक आधार व्यक्ति के द्वारा अभिवादन की विधि में सुरक्षित है। प्रत्येक मानव देह धारी के शरीर में विभिन्न प्रकार की शक्तियों […]

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धर्म-अध्यात्म व्यक्तित्व

ऋषि दयानंद ने सच्चे धर्म के बारे में मानवता को कराया था परिचय

महर्षि दयानन्द (1825-1883) ने देश में वैदिक धर्म के सत्यस्वरूप को प्रस्तुत कर उसका प्रचार किया था। उनके समय में धर्म का सत्यस्वरूप विस्मृत हो गया था। न कोई धर्म को जानता था न अधर्म को। धर्म पालन से लाभ तथा अधर्म से होने वाली हानियों का भी मनुष्यों को ज्ञान नहीं था। ईश्वर का […]

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धर्म-अध्यात्म

उपयोग की सभी वस्तुओं का स्वदेश में ही उत्पादन देशोन्नति तथा आत्मनिर्भरता का मूल है

भारत विश्व का सबसे प्राचीन राष्ट्र है। भारत ने ही सृष्टि के आरम्भ से विश्व के लोगों को भाषा एवं ज्ञान दिया है। विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थों में प्रमुख मनुस्मृति के अनुसार भारत वा आर्यावर्त देश ही विश्व में विद्वान, चरित्रवान व गुणी लोगों को उत्पन्न करने वाला देश है। यहां के ऋषि, मुनि, विद्वान […]

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धर्म-अध्यात्म

पुनर्जन्म सिद्धांत समीक्षा

प्रश्न :- पुनर्जन्म किसे कहते हैं ? उत्तर :- आत्मा और इन्द्रियों का शरीर के साथ बार बार सम्बन्ध टूटने और बनने को पुनर्जन्म या प्रेत्याभाव कहते हैं । प्रश्न :- प्रेत किसे कहते हैं ? उत्तर :- जब आत्मा और इन्द्रियों का शरीर से सम्बन्ध टूट जाता है तो जो बचा हुआ शरीर है […]

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