ओ३म् =========== संसार में मनुष्य पाप व पुण्य दोनों करते हैं। पुण्य कर्म सच्चे धार्मिक ज्ञानी व विवेकवान लोग अधिक करते हैं तथा पाप कर्म छद्म धार्मिक, अज्ञानी, व्यस्नी, स्वार्थी, मूर्ख व ईश्वर के सत्यस्वरूप से अनभिज्ञ लोग अधिक करते हैं। इसका एक कारण यह है कि अज्ञानी लोगों को कोई भी बहका फुसला सकता […]
Category: धर्म-अध्यात्म
ओ३म् =========== विज्ञान एवं दर्शन का नियम है कि अभाव से भाव पदार्थ उत्पन्न नहीं होता और भाव पदार्थों का अभाव नहीं होता। इसी आधार पर ईश्वर, जीवात्मा और इस सृष्टि का उपादान कारण त्रिगुणात्मक प्रकृति भाव पदार्थ सिद्ध होते हैं जो सदा से हैं तथा जिनका अभाव कभी नहीं होगा। यदि इस जगत् में […]
ओ३म् ============ मनुष्य को यह जन्म उसके पूर्वजन्मों के पाप-पुण्यरूपी कर्मों के आधार पर मिला है। वह इस जन्म में जो पाप व पुण्य कर्म करेगा, उससे उसका भावी जन्म निर्धारित होगा। जिस प्रकार फल पकने के बाद वृक्ष से अलग होता है, इसी प्रकार हम भी ज्ञान प्राप्ति और शुभ कर्मों को करके ही […]
ईश्वर निराकार और सर्व व्यापक है
ओ३म् ========= हम अपने शरीर व संसार को देखते हैं तो विवेक बुद्धि से यह निश्चय होता है कि यह अपौरुषेय रचनायें हैं जिन्हें ईश्वर नाम की एक सत्ता ने बनाया है। वह ईश्वर आकारवान या साकार तथा एकदेशी वा स्थान विशेष में रहने वाला कदापि नहीं हो सकता। ईश्वर सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान सिद्ध होता […]
ओ३म् ============ मनुष्य के अनेक कर्तव्य होते हैं। जो मनुष्य अपने सभी आवश्यक कर्तव्यों का पालन करता है वह समाज में प्रतिष्ठित एवं प्रशंसित होता है। जो नहीं करता वह निन्दा का पात्र बनता है। मनुष्य का प्रथम कर्तव्य स्वयं को तथा परमात्मा को जानना होता है। हम स्वयं को व परमात्मा को कैसे जान […]
ओ३म् ============ मनुष्य दुःख से घबराता है तथा सुख की प्राप्ति के लिये ही कर्मों में प्रवृत्त होता है। वह जो भी कर्म करता है उसके पीछे उसकी सुख प्राप्ति की इच्छा व भावना निहित होती है। मनुष्यों को दुःख प्राप्त न हो तथा अपनी क्षमता के अनुरूप सुख प्राप्त हो, इसके लिये उसे क्या […]
प्रस्तुति : आचार्य ज्ञान प्रकाश वैदिक ***** “यज्ञ नमश्च। यज्ञ और नमस्कार” – यज्ञ में या यज्ञसमाप्ति पर नमस्कार की क्रिया करनी चाहिए। यज्ञ के साथ नमस्कार क्रिया का सम्बन्ध उक्त वेदवाक्य प्रकट कर रहा है। प्रायः ऐसी विचारधारा लोगों में व्याप्त हो गई है कि यदि यज्ञ में हाथ जोड़कर नमस्कार की क्रिया की […]
ओ३म् ‘धर्म का सत्यस्वरूप एवं मनुष्य के लिये धर्म पालन का महत्व’ =========== संसार में धर्म एवं इसके लिये मत शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। यदि प्रश्न किया जाये कि संसार में कितने धर्म हैं तो इसका एक ही उत्तर मिलता है कि संसार में धर्म एक ही है तथा मत-मतान्तर अनेक हैं। […]
ओ३म् ============ हम मनुष्य के रुप में जन्में हैं। हमें यह जन्म हमारी इच्छा से नहीं मिला। इसका निर्धारण सृष्टि के रचयिता परमात्मा ने किया। परमात्मा ने अपनी सृष्टि व व्यवस्था के अनुसार हमारे माता-पिता के द्वारा हमें जन्म दिया है। हमारे माता-पिता व उनके सभी पूर्वजों सहित सभी प्राणियों को भी परमात्मा ही जन्म […]
ओ३म् =========== मनुष्य व सभी प्राणी इस मृत्यु लोक में जन्म लेते हैं। शैशवावस्था से बाल, किशोर, युवा, सम्पूर्ति तथा वृद्धावस्था को प्राप्त होकर वह मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। आज का युग विज्ञान का युग है। विज्ञान ने अनेक विषयों पर अनेक गम्भीर प्रश्नों का समाधान किया है। जीवन के सम्बन्ध में विज्ञान […]