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इसलाम और शाकाहार धर्म-अध्यात्म स्वास्थ्य

मांसाहार के दुष्परिणाम

  मांसाहार का दुष्परिणाम विश्व स्तर पर कोरोना वायरस के संक्रमण व मृत्यु दर के माध्यम से समूचे विश्व के सामने आ चुका है कि मांसाहार शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को कमजोर करता है, जिस कारण मांसाहार जितना अधिक किया जाता है उन देशों में संक्रमण व मृत्यु दर उतनी ही अधिक है। सिद्धान्त सर्वोपरि […]

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सर्गारम्भ से ही बिना किसी भेदभाव मनुष्यों की अविद्या दूर करते आ रहे हैं वेद

ओ३म् ========== हमारी यह सृष्टि सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सच्चिदानन्दस्वरूप, अनादि व नित्य परमात्मा से बनी है। ईश्वर, जीव तथा प्रकृति तीन अनादि व नित्य सत्तायें हैं। सृष्टि प्रवाह से अनादि है। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति तथा प्रलय का क्रम अनादि काल से चला आ रहा है और अनन्त काल तक चलता रहा है। सभी […]

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मनुष्य जीवन की सार्थकता वेदों के अध्ययन और वेदों के आचरण में है

ओ३म् ========== हम मनुष्य है और अपनी बुद्धि व ज्ञान का उपयोग कर हम सत्य और असत्य का निर्णय करने में समर्थ हो सकते हैं। परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद का ज्ञान दिया था। यह ज्ञान सभी मनुष्यों के लिए दिया गया था। यह ज्ञान ज्ञानी व अज्ञानी […]

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आत्मा का जन्म मृत्यु और पुनर्जन्म का सिद्धांत सत्य सिद्धांत है

ओ३म् =========== मनुष्य एक चेतन प्राणी है। चेतन प्राणी होने से प्रत्येक मनुष्य व इतर प्राणियों के शरीर में एक जैसी आत्मा का वास होता है। यह आत्मा अनादि, नित्य, अविनाशी, अजर व अमर सत्ता है। इसका आकार अत्यन्त सूक्ष्म एवं आंखों से न देखे जा सकने योग्य होता है। आत्मा से भी सूक्ष्म परमात्मा […]

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ईश्वर की न्याय व्यवस्था सर्वज्ञता पर आधारित होने के कारण निर्दोष है

ओ३म् ========= संसार में अनेक देश हैं जिनमें अपनी अपनी न्याय व्यवस्था स्थापित वा कार्यरत है। सभी देशों की न्याय व्यवस्थायें एक समान न होकर अलग-अलग हैं। भारत की न्याय व्यवस्था अन्य देशों से भिन्न प्रकार की है जिसका एक कारण भारत का अपना संविधान है। हमारे देश में वादों के निर्णय होने में वर्षों […]

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ईश्वर और वेद ही संसार में सच्चे अमृत हैं

ओ३म् =========== संसार में तीन सनातन, अनादि, अविनाशी, नित्य व अमर सत्तायें हैं। यह हैं ईश्वर, जीव और प्रकृति। अमृत उसे कहते हैं जिसकी मृत्यु न हो तथा जिसमें दुःख लेशमात्र न हों और आनन्द भरपूर हो। ईश्वर अजन्मा अर्थात् जन्म-मरण धर्म से रहित है। अतः ईश्वर मृत्यु के बन्धन से मुक्त होने के कारण […]

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ईश्वर का ध्यान करते हुए साधक को होने वाले कतिपय अनुभव

ओ३म् =========== मनुष्य का आत्मा चेतन सत्तस वा पदार्थ है। उसका कर्तव्य ज्ञान प्राप्ति व सद्कर्मों को करना है। ज्ञान ईश्वर व आत्मा संबंधी तथा संसार विषयक दो प्रकार का होता है। ईश्वर भी आत्मा की ही तरह से चेतन पदार्थ है जो सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वज्ञ, निराकार, सर्वव्यापक एवं सर्वान्तर्यामी सत्ता है। ईश्वर व आत्मा दोनों […]

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ईश्वर का ध्यान करते हुए साधक को होने वाले कतिपय अनुभव

ओ३म् =========== मनुष्य का आत्मा चेतन सत्तस वा पदार्थ है। उसका कर्तव्य ज्ञान प्राप्ति व सद्कर्मों को करना है। ज्ञान ईश्वर व आत्मा संबंधी तथा संसार विषयक दो प्रकार का होता है। ईश्वर भी आत्मा की ही तरह से चेतन पदार्थ है जो सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वज्ञ, निराकार, सर्वव्यापक एवं सर्वान्तर्यामी सत्ता है। ईश्वर व आत्मा दोनों […]

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दुष्ट व्यक्ति यदि विद्वान भी है तो भी उसका संग नहीं करना चाहिए

ओ३म् =========== वैदिक साहित्य में वेद से इतर ऋषियों व विद्वानों के अनेक ग्रन्थ उपलब्ध हैं जिनमें जीवन को अपने लक्ष्य आनन्द व मोक्ष तक पहुंचाने के लिये उत्तम विचार व शिक्षायें दी गई हैं। ऐसी ही एक शिक्षा है कि मनुष्य को दुष्ट व्यक्तियों की संगति नहीं करनी चाहिये। इसका परिणाम यह होता है […]

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पौराणिक हिंदू समाज और सत्य सनातन वैदिक धर्म को मानने वाले आर्य समाज में अंतर

………………………………………….. १. हिन्दू परमात्मा के भिन्न भिन्न प्रकार के अवतारों को मानते है। तैंतीस कोटि का अर्थ तैंतीस करोड देवी देवता लेकर उन्हें भी परमात्मा या परमात्मा का अवतार मानता है। आर्य एक निराकार ईश्वर को मानते हैं जो अवतार नहीं लेता । राम, कृष्ण, पतंजलि, जैमिनि, कणाद, दयानंद जैसे महापुरुषों के जन्म लेने को […]

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