ओ३म् =========== मनुष्य जन्म लेता है परन्तु उसे यह पता नहीं होता कि उसके जन्म लेने व परमात्मा के जन्म देने का प्रयोजन किया है? जन्म के प्रयोजन का ज्ञान हमें वेदों सहित ऋषियों के दर्शन व उपनिषद आदि ग्रन्थों सहित ऋषि दयानन्द के सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं आर्य विद्वानों के ग्रन्थों से होता है। निष्कर्ष […]
Category: धर्म-अध्यात्म
ओ३म् ========== हम एक बहु प्रचारित विचार को पढ़ रहे थे जिसमें कहा गया है‘ईश्वर में आस्था है तो मुश्किलों में भी रास्ता है।’ हमें यह विचार अच्छा लगा परन्तु यह अपने आप में पूर्ण न होकर अपूर्ण विचार है। इसको यदि ठीक से समझा नहीं गया तो इससे लाभ के साथ कभी कभी बड़ी […]
ओ३म् ========== मनुष्य के जीवन की आवश्यकता है सद्ज्ञान की प्राप्ति और उसको धारण करना। बिना सद्ज्ञान के उसका जीवन सही दिशा को प्राप्त होकर जीवन के उद्देश्य व लक्ष्य को प्राप्त नहीं हो सकता। मनुष्य एक मननशील प्राणी है। इसे मनन करना आना चाहिये और मननपूर्वक सत्य व असत्य का निर्णय करना भी आना […]
ओ३म् ========== महर्षि दयानन्द ने ईश्वर प्रदत्त ज्ञान चार वेदों की भूमिका स्वरूप जिस ग्रन्थ का निर्माण किया है उसका नाम है‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’। इस ग्रन्थ में ऋषि दयानन्द जी ने चार वेदों के मन्त्रों के प्रमाणों से अनेक ज्ञान विज्ञ़़ान से युक्त विषयों को प्रस्तुत किया है। सृष्टि विद्या विषय भी इस ग्रन्थ में सम्मिलित है। […]
डॉ विवेक आर्य ब्राह्मण शब्द को लेकर अनेक भ्रांतियां हैं। इनका समाधान करना अत्यंत आवश्यक है। क्यूंकि हिन्दू समाज की सबसे बड़ी कमजोरी जातिवाद है। ब्राह्मण शब्द को सत्य अर्थ को न समझ पाने के कारण जातिवाद को बढ़ावा मिला है। शंका 1 ब्राह्मण की परिभाषा बताये? समाधान- पढने-पढ़ाने से,चिंतन-मनन करने से, ब्रह्मचर्य, अनुशासन, […]
ओ३म् ============ मनुष्य चेतन प्राणी है। चेतन होने के कारण इसे सुख व दुख की अनुभूति होती है। सभी मनुष्य सुख चाहते हैं, दुःख प्राप्त करना कोई मनुष्य नहीं चाहता। ऐसा होने पर भी अनेक कारणों से हमें सुख व दुःख दोनों ही प्राप्त होते हैं। मनुष्य को सुख प्राप्त करने के लिये प्रयत्न व […]
-मनमोहन कुमार आर्य प्रकाश करने की आवश्यकता वहां होती है जहां अन्धकार होता है। जहां प्रकाश होता है वहां दीपक जलाने वा प्रकाश करने की आवश्यकता नहीं होती। हम महाभारत काल के उत्तरकालीन समाज पर दृष्टि डालते हैं तो हम देखते हैं कि हमारा समाज अनेक अज्ञान व अविद्यायुक्त मान्यताओं के प्रचलन से ग्रस्त था। […]
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। मनुष्य जब किसी कार्य को उचित रीति से ज्ञानपूर्वक करता है तो उसका इष्ट व प्रयोजन सिद्ध होता है। उपासना भी ईश्वर को उसके यथार्थ स्वरूप में जानकर उचित विधि से करने पर ही सार्थक व लाभकारी सिद्ध होती है। उपासना के लिये ही प्राचीन काल में ऋषि पतंजलि ने योगदर्शन […]
पेट की आग और कामाग्नि
कभी सोचा है कि “पेट की आग”, या फिर “काम-वासना से दग्ध होना” जैसे जुमलों में आग या जलने का भाव क्यों प्रयोग किया जाता है? दुधमुंहे या छोटे बच्चों के लिए इसे समझना मुश्किल होगा लेकिन जो जो प्रेमी-प्रेमिका जैसे संबंधों, विवाहित होने का अनुभव रखते हों उनके लिए इसे समझना मुश्किल नहीं होगा। […]
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून हम इस संसार में जन्में हैं व इसमें निवास कर रहे हैं। हमारी आंखें सीमित दूरी तक ही देख पाती हैं। इस कारण हम इस ब्रह्माण्ड को न तो पूरा देख सकते हैं और अपनी अल्पज्ञता के कारण इसको पूरा पूरा जान भी नहीं सकते हैं। सभी मनुष्यों में यह इच्छा […]