पं० क्षितिश कुमार वेदालंकार [संसार के सभी मत वाले अपने-अपने धर्म ग्रन्थों को ईश्वरीय ज्ञान कहते हैं, तब प्रश्न उठता है कि वेद ही क्यों? इस प्रश्न का सुलझा उत्तर आर्यसमाज के उच्च कोटि के विद्वान्, वक्ता और पत्रकार लेखक की लेखनी से पढ़िए। -डॉ० सुरेन्द्र कुमार] इस प्रश्न को उपस्थित करने वाले दो […]
Category: धर्म-अध्यात्म
मूढ जो होते हैं वह गूढ़ को न समझ कर रूढ़ की बात करते हैं। ऐसे लोगों से क्षमा चाहते हुए विचारवान विद्वान , सत्यान्वेषी, सत्यपारखी ,सत्याग्रही, लोगों के समक्ष एक प्रकरण उद्धत करना चाहूंगा। शिव किसको कहते हैं? शिवलिंग क्या है? कैलाशपति क्या है? शिव के पर्यायवाची क्या क्या हैं? शिवनाद और डमरु […]
जीवन में कर्म की प्रधानता
-पण्डित गंगाप्रसाद उपाध्याय कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतँ समा:। एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे।। (यजुर्वेद अध्याय ४०, मन्त्र २) अन्वय :- इह कर्माणि कुर्वन् एव शतं समा: जिजीविषेत्। एवं त्वयिनरे न कर्म लिप्यते। इत: अन्यथा न अस्ति। अर्थ- (इह) इस संसार में (कर्माणि) कर्मो को (कुर्वन् एव) करते हुए ही मनुष्य (शतं समा:) सौ वर्ष […]
ओ३म आजकल विज्ञान की उन्नति ने सबको आश्चर्यान्वित कर रखा है। दिन प्रतिदिन नये नये बहुपयोगी उत्पाद हमारे ज्ञान व दृष्टि में आते रहते हैं। बहुत कम लोग जानते होंगे कि उनकी अनेक समस्याओं का कारण भी विज्ञान व इसका दुरुपयोग ही है। इसका मुख्य उदाहरण तो वायु, जल और पर्यावरण प्रदुषण का है। यह […]
ओ३म् ========== मनुष्य के जीवन के दो यथार्थ हैं पहला कि उसका जन्म हुआ है और दूसरा कि उसकी मृत्यु अवश्य होगी। मनुष्य को जन्म कौन देता है? इसका सरल उत्तर यह है कि माता-पिता मनुष्य को जन्म देते हैं। यह उत्तर सत्य है परन्तु अपूर्ण भी है। माता-पिता तभी जन्म देते हैं जबकि ईश्वर […]
ओ३म् ========= सभी प्राणी योनियों में मनुष्य सबसे श्रेष्ठ प्राणी है। मनुष्य ज्ञान अर्जित कर सकता है परन्तु अन्य प्राणी, पशु व पक्षी आदि, ज्ञान प्राप्त कर उसके विश्लेषण द्वारा वह लाभ प्राप्त नहीं कर सकते जो कि मनुष्य करता है। इसलिये मनुष्य श्रेष्ठ प्राणी माना जाता है। मनुष्य संसार में आया है तो इसका […]
ओ३म् =========== हमें मनुष्य का जन्म मिला और हम जन्म से लेकर अब तक अपने पूर्वजन्मों सहित इस जन्म के क्रियमाण कर्मों के फल भोग रहे हैं। हम जीवात्मा हैं, शरीर नहीं है। जीवात्मा चेतन पदार्थ है। चेतन का अर्थ है कि यह जड़ न होकर संवेदनशील है और ज्ञान प्राप्ति एवं कर्म करने की […]
ओ३म् ========== हम मनुष्य कहलाते हैं। वस्तुतः सदाचार को धारण कर ही हम मनुष्य बन सकते हैं परन्तु सदाचारी व धर्मात्मा मनुष्य बनने के लिये सद्ज्ञान प्राप्त करने सहित पुरुषार्थ वा आचरण भी करना होता है। क्या हम सब ज्ञानी वा विद्यावान हैं? इसका उत्तर ‘न’ अक्षर व शब्द में मिलता है। जब हम विद्यावान […]
ओ३म् ========== वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की संहिताओं में निहित मंत्रों व इनके सभी मन्त्रों में निहित ज्ञान को कहते हंै। वेदों का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी की यह सृष्टि पुरानी है। हमारे प्राचीन काल के मनीषियों से लेकर ऋषि दयानन्द (1825-1883) तक ने वेदों की उत्पत्ति, इसके रचयिता व ज्ञान […]
एक अनुमान के अनुसार, भारत में यात्रा एवं पर्यटन उद्योग 8 करोड़ व्यक्तियों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से रोज़गार प्रदान कर रहा है एवं देश के कुल रोज़गार में पर्यटन उद्योग की 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। भारत में प्राचीन समय से धार्मिक स्थलों की यात्रा, पर्यटन उद्योग में, एक विशेष स्थान रखती है। […]