ऋषि दयानंद सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं कि यह मूर्त्तिपूजा अढ़ाई तीन सहस्र वर्ष के इधर-इधर वाममार्गी और जैनियों से चली है। प्रथम आर्यावर्त्त में नहीं थी। और ये तीर्थ भी नहीं थे। जब जैनियों ने गिरनार, पालिटाना, शिखर, शत्रुञ्जय और आबू आदि तीर्थ बनाये, उन के अनुकूल इन लोगों ने भी बना लिये। जो […]
Category: धर्म-अध्यात्म
प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज इसमें मुख्य बात यह है कि धर्मशास्त्रों में जो व्यवस्थायें हैं, वे जाति व्यवस्था को अत्यधिक गतिशील और व्यापक व्यवस्था सिद्ध करते हैं जिसमें कई प्रकार की उन्नति और अवनति व्याख्यायित है। साथ ही इन विषयों में धर्मशास्त्रों के प्रतिपादन भी अनेक प्रकार के हैं। इससे स्पष्ट है कि यह एक […]
ओ३म् ========== श्री वीरेन्द्र कुमार राजपूत जी आर्यसमाज के एक ऐसे प्रथम विद्वान हैं जिन्होंने चारों वेदों के प्रत्येक मन्त्र पर काव्यार्थ लिखने का कार्य आरम्भ किया है। वह यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद के लगभग दस सहस्र मन्त्रों का काव्यार्थ कर चुके हैं जो उनके प्रयत्नों एवं सहयोगी प्रकाशकों से समय समय पर अनेक खण्डों में […]
*”धर्म क्या है, और अधर्म क्या है?”
*”धर्म क्या है, और अधर्म क्या है?” यह बड़ा जटिल प्रश्न है। लाखों करोड़ों वर्षों से लोग इस प्रश्न में उलझे हुए हैं। बहुत कम लोग ही इसे समझ पाते हैं, कि धर्म क्या है? और अधर्म क्या है?”* *”वेदों और ऋषियों के ग्रंथों के अनुसार धर्म उस आचरण का नाम है, जो कार्य हमें […]
कोई भी चोर, पापी कभी उत्पन्न न हो
उत्तम कर्म की सिद्धि के लिए ईश्वर की प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए । ईश्वर का सानिध्य और सामीप्य प्राप्त करने से हमें असीम आनंद की अनुभूति होती है। धीरे धीरे जैसे-जैसे अभ्यास बढ़ता जाता है वैसे वैसे उस अतुलित आनंद की अनुभूति हमें अपने साथ बांधने लगती है। उत्तम कर्म की सिद्धि के लिए ईश्वर […]
योगेश्वर कृष्ण जी का कहना है कि हमें अपना मन ‘परब्रह्म’ से युक्त कर देना चाहिए, उसके साथ उसका योग स्थापित कर देना चाहिए। उससे मन का ऐसा तारतम्य स्थापित कर देना चाहिए कि उसे ब्रह्म से अलग करना ही कठिन हो जाए। भाव है कि जिन लोगों को अपनी समाधि में ऐसी उच्चावस्था प्राप्त […]
प्राचीन अरब का समाज और भारत के वेद
प्राचीन अरबी काव्य-संग्रह ‘शायर-उल्-ओकुल’ में एक महत्त्वपूर्ण कविता है। इस कविता का रचयिता ‘लबी-बिन-ए-अख़्तर-बिन-ए-तुर्फा’ है। यह मुहम्मद साहब से लगभग 2300 वर्ष पूर्व (18वीं शती ई.पू.) हुआ था । इतने लम्बे समय पूर्व भी लबी ने वेदों की अनूठी काव्यमय प्रशंसा की है तथा प्रत्येक वेद का अलग-अलग नामोच्चार किया है— ‘अया मुबारेक़ल अरज़ युशैये […]
*”ओ३म्”* *सत्यार्थप्रकाशः क्यों पढ़ें ?* इसका उत्तर निम्नलिखित है :– १. जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त (तक) मानव जीवन की लौकिक – परालौकिक समस्त समस्याओं को सुलझाने के लिए यह ग्रन्थ एक मात्र अमूल्य ज्ञान का भण्डार है | २. यह एक ऐसा ग्रन्थ है, जो पाठकों को इस ग्रन्थ में प्रतिपादित सर्वतंत्र, सार्वजनीन, सनातन […]
जीवन में कर्म की प्रधानता और वेद
पण्डित गंगाप्रसाद उपाध्याय कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतँ समा:। एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे।। (यजुर्वेद अध्याय ४०, मन्त्र २) अन्वय :- इह कर्माणि कुर्वन् एव शतं समा: जिजीविषेत्। एवं त्वयिनरे न कर्म लिप्यते। इत: अन्यथा न अस्ति। अर्थ- (इह) इस संसार में (कर्माणि) कर्मो को (कुर्वन् एव) करते हुए ही मनुष्य (शतं समा:) सौ वर्ष […]
बहुवित से भी श्रेष्ठ है, चित्तपावन व्यवहार। दत्तचित होकर सुने, अनुगामी संसार॥1667॥ व्याख्या:- अधिकांशत:इस संसार में ऐसे लोग बहुत मिल जाएंगे जो बहुत कुछ जानते हैं, और उसे अपनी वाणी से अभिव्यक्त भी करते हैं तथा स्वयं को श्रेष्ठ होने का मिथ्या दम्भ पाले रखते हैं किन्तु वास्तव में वही व्यक्ति श्रेष्ठ है,जो अपने चित्त […]