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धर्म-अध्यात्म

स्वामी दयानन्द जी ने ईसाईमत की समीक्षा क्यों की?

उन्नीसवीं शताब्दी का प्रचलित हिन्दू धर्म, धर्म न रहकर उसका विद्रूप मात्र रह गया था। वेदों, उपनिषदों तथा वैदिक दर्शनों में प्रतिपादित अध्यात्म, दर्शन तथा नैतिकता के सूत्र विलुप्त प्रायः हो गये थे। वेदों तथा अन्य ऋषि कृत ग्रन्थों का अध्ययन-अध्यापन समाप्त हो गया था। पठित हिन्दू अधिक से अधिक भगवद्गीता, तुलसीदास की रामचरित मानस […]

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धर्म-अध्यात्म

“ईश्वर की उपासना का फल मनुष्य को जीवन में शीघ्र मिलता है”

हमें आज दिनांक 27-11-2022 को आर्यसमाज राजपुर, देहरादून के तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव के समापन समारोह में उपस्थित होने का अवसर मिला। आयोजन का आरम्भ प्रातः यज्ञ से हुआ। यज्ञ में आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी, आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी, आचार्य प्रदीप शास्त्री, श्री प्रेमप्रकाश शर्मा आदि ऋषिभक्त उपस्थित थे। यज्ञ की समाप्ति के बाद एक बड़े पण्डाल […]

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धर्म-अध्यात्म

ईश्वर की उपासना का फल मनुष्य को जीवन में शीघ्र मिलता है

हमें आज दिनांक 27-11-2022 को आर्यसमाज राजपुर, देहरादून के तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव के समापन समारोह में उपस्थित होने का अवसर मिला। आयोजन का आरम्भ प्रातः यज्ञ से हुआ। यज्ञ में आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी, आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी, आचार्य प्रदीप शास्त्री, श्री प्रेमप्रकाश शर्मा आदि ऋषिभक्त उपस्थित थे। यज्ञ की समाप्ति के बाद एक बड़े पण्डाल […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व धर्म-अध्यात्म

गीता कर्मयोग का सुन्दर प्रबोधन है

ह्रदय नारायण दीक्षित गीता दर्शन ग्रंथ है। इसका प्रारम्भ विषाद से होता है और समापन प्रसाद से। विषाद पहले अध्याय में है और प्रसाद अंतिम में। अर्जुन गीता समझने का प्रभाव बताते हैं, “नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।“ हे कृष्ण आपके प्रसाद से – त्वत्प्रसादान्मयाच्युत मोह नष्ट हो गया। प्रश्न उठता है कि यह विषाद क्या […]

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धर्म-अध्यात्म

स्वाहा का अर्थ क्या होता है ?

प्रश्न :- स्वाहा का अर्थ क्या होता है ? उत्तर :- निरुक्तकार यास्क जी कहते हैं की “स्वाहाकृतयः स्वाहेत्येतस्तु आहेति वा स्वा वागाहेति वा स्वं प्राहेति वा स्वाहुतं हविर्जुहोतीति वा तासामेषा भवति || ||निरुक्त अध्याय 8/खण्ड २०||” स्वाहा शब्द का अर्थ यह है – १) (सु आहेति वा) सु अर्थात् कोमल, मधुर, कल्याणकारी, प्रिय वचन […]

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आज का चिंतन धर्म-अध्यात्म

दुःखों से मुक्ति व आनन्दमय मोक्ष की प्राप्ति के चार साधन’

मनुष्य को अपने पूर्वजन्म के शुभकर्मों के परिणामस्वरूप परमात्मा से यह श्रेष्ठ मानव शरीर मिला है। सब प्राणियों से मनुष्य का शरीर श्रेष्ठ होने पर भी यह प्रायः सारा जीवन दुःख व क्लेशों से घिरा रहता है। दूसरों लोगों को देख कर यह अपनी रुचि व सामथ्र्यानुसार विद्या प्राप्त कर धनोपार्जन एवं सुख-सुविधा की वस्तुओं […]

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धर्म-अध्यात्म

क्या ‘हिन्दू’ नाम विदेशियों ने दिया ?

अनिरुद्ध जोशी शतायु विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है हिन्दू धर्म। सिर्फ 5 हजार वर्ष पहले तक कोई दूसरा धर्म अस्तित्व में नहीं था तो स्वाभाविक है कि हिन्दुओं में कभी यह खयाल नहीं आया कि कोई नया धर्म जन्म लेगा और फिर वह हमें मिटाने के लिए सबकुछ करेगा। मात्र 2 हजार वर्ष पूर्व […]

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धर्म-अध्यात्म

वैदिक प्रश्नोत्तरी

प्रश्न: हमारे देश का सबसे पुराना नाम क्या है? उत्तर: आर्यावर्त्त प्रश्न: क्या आर्य बाहर से आये हैं? उत्तर: नहीं ! आर्य भारत के मूल निवासी थे। “ऋग्वेद में आर्य शब्द का प्रयोग 37 बार आया है।” आर्य बाहर से नहीं बल्कि यहीं के मूल निवासी हैं।वेद में परमात्मा कहता है-“मैंने यह भूमि आर्यों को […]

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धर्म-अध्यात्म

महा काल पूजा का वास्तविक विशलेषण

डॉ डी के गर्ग,  ईशान इंस्टिट्यूट ग्रेटर नोएडा इस विषय मे सबसे पहले काल और महाकाल का अंतर जानने का प्रयास करते हैं। काल क्या है*:- 1.काल शब्द समय वाची है। सूर्य एवं पृथ्वी के पारस्परिक दिन सम्बन्ध का ज्ञान जिससे होता है उसे समय या काल कहते हैं। अस्तु- महर्षियों ने काल को मुख्य […]

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धर्म-अध्यात्म

शंकराचार्यों को इसीलिए कोई भी गंभीरता से नहीं लेता

आचार्य श्री विष्णुगुप्त दुनिया का सबसे प्राचीन सनातन धर्म आज विनाश के कगार पर क्यों पहुंच गया है? अपने ही देश में भगाये, लतियाये और मारे क्यों जा रहे हैं हिन्दू?, अपने ही देश में सिर तन से जुआ क्यों कर दिये जा रहे हैं हिन्दू? इन प्रश्नों को समझने के लिए अभी-अभी मौत को […]

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